दिल्ली की रफ्तार भरी जिंदगी में रोजाना 9 से 5 की जॉब और वीकेंड की छुट्टियों में घर के काम निपटाने, ज़्यादातर लोग जीवन के इसी ढर्रे पर जी रहे हैं। लेकिन लगातार जब लाइफ एक ही पटरी पर चलने लगती है तो सबकुछ रोबोटिक और बोरिंग लगने लगता है। फास्ट लाइफ से अगर आप भी उकता चुके हैं और शांति की तलाश में हैं तो दिल्ली से महज 252 किलोमीटर की दूरी पर हरिद्वार में स्थित शांतिकुंज एक ऐसा आश्रम है जहां ना केवल आप अपनी जड़ों से जुड़े रह सकते हैं, बल्कि जीवन की नई शैली, तमाम अच्छी आदतें और आत्मिकता भी महसूस कर सकते हैं। सुकून की तलाश में मैं भी वीकेंड्स में शांतिकुंज पहुंची तो वाकई खुशी महसूस हुई। आइए जानते हैं यहां के बारे में कुछ बेहद खास बातें-
शांतिकुंज के संस्थापक वेदमूर्ति गायत्री तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य हैं। उनका जन्म 20 सितम्बर 1911 को आगरा के आंवलखेड़ा गांव में हुआ था। बेहद सादा जीवन जीने वाले श्रीराम ने अपने जीवनकाल में 3200 किताबें लिखीं और आजादी की लड़ाई में भी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने जाति प्रथा के इतर जाकर लोगों की काफी सेवा की। शांतिकुंज की स्थापना के पीछे उनका उद्देश्य था कि लोगों में देवत्व का भाव पैदा हो और दुनिया में प्रेम और भाई-चारा हो।
संगमरमर से बनी प्रखर प्रज्ञा और सजल श्रद्धा पर माथा टेकते ही मन श्रद्धा से भर जाता है। कुछ भक्त यहां पर अपनी परेशानियों की अर्जियां भी रखकर जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि मां गायत्री इन सभी परेशानियों का हल प्रदान करती हैं। प्रखर प्रज्ञा जहां श्री राम शर्मा आचार्य को समर्पित है तो वहीं सजल श्रद्धा मां भगवती देवी शर्मा को समर्पित है।
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शांतिकुंज में सुबह की शुरुआत यज्ञशाला में हवन के साथ होती है। सुबह 3 बजे से ही यज्ञ के लिए लोग लाइन में लग जाते हैं। हवन में पीले कपड़े पहनना जरूरी माना जाता है। वैदिक मंत्रों के साथ आहुतियां दी जाती हैं और पूरा माहौल आत्मिकता से भर जाता है। इसके अलावा भी यहां मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत, धार्मिक कर्मकांड संपन्न कराए जाते हैं।
यहां कदम के पेड़ के बगल वाले गेट में घुसते ही थोड़ा आगे जाकर सप्त ऋषियों (वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक) का मंदिर भी है। इसके थोड़ा और आगे जाकर गायत्री मंदिर है जहां रोज सुबह हवन से पहले आरती होती है। यहां 'भटका हुआ देवता' टाइटल से साथ शीशे लगे हैं जिनके नीचे आपके व्यक्तित्व को झलकाने वाली बातें लिखीं हैं जो स्वयं में निर्गुण ईश्वर की उपासना यानी 'अहम ब्रह्मासि' यानी 'मैं ही ब्रह्म हूं' का प्रतीक है। साधक यहां बैठकर गायत्री मंत्र का जप भी करते हैं।
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ये मंदिर हिमालय का खूबसूरत मॉडल पेश करने वाले देश का इकलौता मंदिर हैं। यहां बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री, विष्णु प्रयाग, नंद प्रयाग, कर्ण प्रयाग, रूद्र प्रयाग और रूद्र प्रयाग की झलक भी देख सकते हैं। प्राचीन समय में ऋषि तप के लिए हिमालय जाया करते थे। इसी तर्ज में इस मंदिर का भी निर्माण हुआ है। यहां बैठकर साधक मेडिटेशन के अलावा गायत्री मंत्र का जाप भी करते हैं। अगर आप कुछ पल थोड़ी शांति में बिताना चाहते हैं तो थोड़ी देर ही सही यहां मेडिटेशन जरूर करें।
हिमालय मंदिर से बिलकुल सटा हुआ है हरीतिमा देवालय। अगर आपको पेड़-पौधों और जड़ी-बूटियों के बारे में जानने में दिलचस्पी है तो आप यहां जरूर जाएं। यहां आप दुर्लभ जड़ीबूटियां, मसालों वाले कई पौधे, कई प्रजाति के गुलाब के पौधे और कई फ्लोरल प्लांट्स देख सकते हैं और केयरटेकर से इनके बारे में डिटेल्स भी ले सकते हैं।
शांतिकुंज में आप अखंड दीप का दर्शन भी कर सकते हैं। बता दें कि, पंडित श्री राम शर्मा आचार्य ने सन 1926 में बसंत पंचमी के मौके पर अपने गांव आंवलखेड़ा (आगरा, उत्तर प्रदेश) में ये दिया पहली बार जलाया था। तब से लेकर आज तक ये दिया लगातार बिना बुझे ऐसे ही जल रहा है। इसी के नाम पर पत्रिका 'अखण्ड ज्योति' का नाम भी रखा गया है। इसके आलावा 'युग निर्माण योजना' भी यहां की एक पत्रिका है।
शांतिकुंज के भोजनालय में आप सात्विक खाना यानी कि लहसुन और प्याज के बिना बना स्वादिष्ट खाना एन्जॉय कर सकते हैं। यहां खाने में कम मसाले और नमक का प्रयोग किया जाता है। अगर आप अस्वाद भोजन करना पसंद करते हैं तो आपको यहां बिना नमक का भी खाना मिल सकता ही। भोजन में रोटी, दाल, सब्जी, कढ़ी, छाछ, चावल, खिचड़ी, दलिया जैसी कई चीजें अलग-अलग दिन के हिसाब से होती हैं। यहां आप फ्री में खाना खा सकते हैं लेकिन अगर आपकी इच्छा है तो आप खाना सर्व करने और बनवाने में यहां कार्यकर्ताओं की हेल्प कर सकते हैं।
शांतिकुंज जाने से पहले नेट पर दिए गए नंबर पर बात करें और अपने आने का उद्देश्य बताएं। अगर आप 2 से 3 दिन के लिए जाना चाहते हैं तो आपको अतिथि सत्र का अंतर्गत रखा जाएगा। लेकिन अगर आप एक महीने, 1 साल या रिटायरमेंट के बाद यहां आकर यहां लंबे समय के लिए रहना चाहते हैं तो इसके लिए आपको यहां की दिनचर्या के अलावा कई दैनिक कार्य जैसे खाना बनाने में सहयोग, कैंटीन में हेल्प, मंत्र साधना, हवन, गार्डनिंग के अलावा भी कई ऐसे काम सिखाए जाते हैं जो एक महत्वपूर्ण लाइफ स्किल है।
दिल्ली से हरिद्वार के लिए बस या ट्रेन लें। हरिद्वार में उतरकर वहां से शांतिकुंज के लिए शेयरिंग या बुकिंग वाला ऑटो लें। कैब यहां मिलनी थोड़ी सी मुश्किल है। शांतिकुंज जाते समय आप रास्ते में गंगा के दर्शन कर सकत हैं, इसके आलावा पहाड़ों पर स्थित मनसा देवी के दर्शन भी कभी-कभार रास्ते में हो जाते हैं।
दिल्ली से आप बड़ी आसानी से शांतिकुंज पहुंच सकते हैं और यहां आत्मिक सुकून हासिल कर सकते हैं, यह लेख यदि आपको अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें, साथ ही इसी तरह की अन्य जानकारी पाने के लिए जुड़े रहें HerZindagi के साथ।
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