फिरोज शाह कोटला में मौजूद है बेहद पुरानी जामा मस्जिद, अब बन चुकी है खण्डहर

फिरोज शाह कोटला की जामा मस्जिद अपने साथ एक समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर समेटे हुए है। यह न केवल तुगलक वंश की स्थापत्य कला का सबूत है, बल्कि हमें हमारे अतीत को भी याद दिलाने का भी काम करती है।   
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दिल्ली अपने ऐतिहासिक धरोहर और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। इस शहर में कई ऐतिहासिक इमारतें और स्मारक हैं, जो अपने अंदर अतीत के कई अनकहे किस्से समेटे हुए हैं। इन्हीं में से एक है फिरोज शाह कोटला में स्थित एक बेहद पुरानी जामा मस्जिद, जो वक्त के साथ खंडहर बन चुकी है। एक वक्त था जब यहां पर नमाज पढ़ी जाती थी और राजाओं की हुकूमत थी। मगर वो कहते हैं ना वक्त सब बदल देता है।

बेशक इसकी हालत नाजुक है, लेकिन आज भी इसका उतना ही महत्व है जितना प्राचीन समय में हुआ करता था। फिरोज शाह कोटला, जिसे फिरोजाबाद भी कहा जाता है। यह दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक द्वारा 14वीं शताब्दी में बनवाया गया था। इसे 1354 में यमुना नदी के किनारे स्थापित किया गया था। इस क्षेत्र को तुगलक साम्राज्य के शासनकाल के दौरान राजधानी के रूप में चुना गया था।

इस परिसर में जामा मस्जिद के साथ-साथ अशोक स्तंभ और अन्य संरचनाएं भी थीं, जो उस समय की वास्तुकला और शाही वैभव का प्रतीक थीं। इसके अलावा, यह जामा मस्जिद बहुत ही खास है, जिसके बारे में यकीनन आपको पता होना चाहिए।

जामा मस्जिद का निर्माण और महत्व

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फिरोज शाह कोटला की जामा मस्जिद को 14वीं शताब्दी में बनाया गया था। यह दिल्ली की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है। इसे एक विशेष प्रकार की वास्तुकला में निर्मित किया गया, जिसमें संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया था।

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मस्जिद को उस समय के धार्मिक और सामाजिक केंद्र के रूप में देखा जाता था, जहां सुल्तान और उनके दरबार के लोग नमाज पढ़ने और धार्मिक सभाओं में भाग लेने आते थे।

मस्जिद की खासियत

  • मस्जिद की मीनारें और गुम्बद उस समय की उत्कृष्ट कारीगरी को दर्शाती थीं।
  • मस्जिद में एक विशाल आंगन था, जहां बड़ी संख्या में लोग एक साथ इबादत कर सकते थे।
  • मस्जिद में इस्लामी और भारतीय वास्तुकला का समावेश देखने को मिलता था।

आखिर कैसे हुई मस्जिद खंडहर?

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समय के साथ-साथ दिल्ली पर कई शासकों का शासन रहा और शहर में कई बार पुनर्निर्माण का दौर देखा। मुगलों, ब्रिटिशों और अन्य शासकों के शासनकाल के दौरान इस मस्जिद पर ध्यान नहीं दिया गया, जिससे इसकी हालत खराब होती गई।

14वीं शताब्दी में बनी यह मस्जिद कई सदियों तक खड़ी रही, लेकिन समय के साथ इसकी भव्यता धीरे-धीरे कम हो गई। इसके अलावा, ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण की अनदेखी के कारण मस्जिद खंडहर में बदलती गई।

सांस्कृतिक विरासत का है एक हिस्सा

आज जामा मस्जिद खंडहर में बदल चुकी है, लेकिन इसके अवशेष आज भी इसकी भव्यता की गवाही देते हैं। दीवारों पर की गई नक्काशी और जर्जर खंभे उस समय की उत्कृष्ट कला और कारीगरी को दर्शाते हैं।

यहां अक्सर इतिहास और वास्तुकला में रुचि रखने वाले शोधकर्ता और पर्यटक आते हैं। मस्जिद की खंडहर स्थिति के बावजूद, यह जगह उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और इतिहास को समझना चाहते हैं।

कैसे पहुंचें?

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अगर आप दिल्ली घूमने जा रहे हैं, तो फिरोज शाह कोटला और वहां स्थित जामा मस्जिद को अपनी सूची में जरूर शामिल करें। यह न केवल इतिहास के प्रति आपका दृष्टिकोण विस्तृत करेगा, बल्कि आपको एक अनूठा अनुभव भी देगा।

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इसका दीदार करने के लिए आईटीओ मेट्रो स्टेशन से जा सकते है। यह मस्जिद यहां से बहुत पास है। वहीं, यहां जाने के लिए सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक का वक्त बिल्कुल सही रहेगा।

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Image Credit- (@Freepik and Shutterstock)

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