'अरे नहीं... ये क्या कर दिया, दीया फूंक मारकर नहीं बुझाते...' मेरी दादी ने मुझे जब ऐसा कहा था तो बचपन में ये समझना मुश्किल हो गया था कि आखिर गलती क्या हुई। केक की मोमबत्ती भी तो हम ऐसे ही बुझाते हैं। बचपन में दादी से 'क्यों' पूछा था तब जवाब मिला था कि इससे हमारी सारी बरकत चली जाएगी, हम गरीब हो जाएंगे और अस्वस्थ भी रह सकते हैं। अब किसी बच्चे के लिए ये सब सुनना बड़ा अजीब हो सकता है ना।
पर इसका असली कारण क्या होता है ये तो शायद दादी को भी ठीक से नहीं पता होगा। यकीनन दीया फूंक मारकर बुझाना गलत माना जाता है, लेकिन इसके पीछे शास्त्रों के कारण के साथ-साथ साइंटिफिक कारण भी है। चलिए आज इसके बारे में ही बात करते हैं कि आखिर क्यों दीया बुझाने का तरीका सही या गलत माना जाता है।
आखिर क्यों शास्त्रों के अनुसार है यह गलत?
शास्त्रों के अनुसार दीपक को बहुत पवित्र माना जाता है। इसे ईश्वर को अर्पित किया जाता है। अग्नि देव भी शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं जो घर की खराब ऊर्जा को दूर करते हैं। ऐसे ही मुंह की फूंक को अशुद्ध माना जाता है क्योंकि हम दिन भर में कई तामसिक काम करते हैं और भोजन भी ग्रहण करते हैं। ऐसे में दीपक को फूंक मारकर बुझाने का मतलब होता है कि आप उसका अनादर कर रही हैं और अशुद्ध हवा उसपर फेंक रही हैं।
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अग्नि को बुझाना मतलब अपने घर की शुद्धता और समृद्धि को खत्म करना है। यही कारण है कि बुजुर्गों के अनुसार दीया फूंक मारकर बुझाने से धन और सेहत दोनों का नाश होता है।
कैसे बुझाएं दीया?
अगर इसे भगवान के लिए जलाया गया है, तो जब तक तेल या घी इसमें है तब तक इसे जलने दें ये अपने आप ही बुझ जाएगा। अगर सिर्फ रौशनी के लिए जलाया है, तो इसे पंखे या हाथ की हवा से बुझाया जा सकता है।
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क्या हो सकता है इसका साइंटिफिक कारण?
अब हमने ये तो जान लिया कि शास्त्रों के हिसाब से इसका मतलब क्या है, लेकिन अगर इसका साइंटिफिक लॉजिक समझा जाए, तो भी कुछ गलत नहीं होगा। दरअसल, दीया बुझाते समय मुंह ज्यादा पास ले जाने से आपके चेहरे पर आंच का असर आ सकता है और दीया अधिकतर तेल से जलाया जाता है जिसे बुझाने पर खराब धुआं निकलता है। इसे आप सांस के जरिए अंदर ले सकती हैं। ऐसा बार-बार करना सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। यही कारण है कि आपको दीया बुझाते समय मुंह ज्यादा पास नहीं ले जाना चाहिए।
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