सनातन धर्म में पितृपक्ष को पितरों का महीना माना गया है। इस दौरान पितरों की आत्मा शांति के लिए विधिवत रूप से पूजा-पाठ करते हैं। ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान पितृलोक से पितृ पृथ्वी लोक पर आते हैं। ऐसी मान्यता है कि अगर आपकी कुंडली में पितृदोष है, तो यह महीना दोषों से छुटकारा पाने के लिए उत्तम माना जाता है। आपको बता दें, परिवार के सदस्यों की कुंडली में अगर पितृदोष है, तो उन्हें किसी न किसी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसलिए इस दौरान श्राद्ध और पिंडदान करने की मान्यता है। अब ऐसे में पितृपक्ष में सत्तू क्यों नहीं खाना चाहिए। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
पितृपक्ष में क्यों नहीं खाना चाहिए सत्तू?
पितृपक्ष में सत्तू खाना शुभ नहीं माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सत्तू का संबंध गुरु बृहस्पति से है और बृहस्पति मांगलिक कार्यों के लिए शुभ फलदायी माने जाते हैं और पितृपक्ष में शुभ काम करना वर्जित माना जाता है। इसके अलावा सत्तू शुभ और पवित्रता का कारक है। इसलिए पितृपक्ष में इसे खाने की मनाही होती है।
सत्तू का है सूर्यदेव से संबंध
पितृपक्ष में पितरों के निमित्त श्राद्ध और तर्पण भी दिन में सूर्य की रोशनी में करने की मान्यता है। साथ ही सूर्यदेव मांगलिक कार्यों के कारक माने जाते हैं और सत्तू का संबंध सूर्यदेव से जोड़ा गया है। इसलिए पितृपक्ष में सत्तू भूलकर भी नहीं खाना चाहिए। इससे कुंडली में गुरुदोष लगता है। साथ ही व्यक्ति को जीवन में सफलता मिलने में परेशानियां आने लग जाती है। इसलिए पितृपक्ष में सत्तू खाने से बचें।
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सत्तू है पिंड के समान
पितृपक्ष में सत्तू सानकर भूलकर भी नहीं खाना चाहिए। क्योंकि यह पिंड के समान हो जाता है और पितृपक्ष में पिंडदान करने की विशेष मान्यता है। इसलिए पितृपक्ष के दौरान आटे को सानकर उससे पिंड बनाकर पिंडदान किया जाता है। इससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए पितृपक्ष में भूलकर भी सत्तू को सानकर न खाएं। इससे पितृदोष लगता है।
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सत्तू का है मंगल ग्रह से संबंध
मंगल ग्रह को ऊर्जा, शक्ति और साहस का कारक माना जाता है। यह ग्रह व्यक्ति में उत्साह, क्रोध और आक्रामकता भी पैदा करता है। इसलिए पितृपक्ष में सत्तू भूलकर भी नहीं खाना चाहिए। इससे पितृ क्रोधित हो सकते हैं। साथ ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है।
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Image Credit- HerZindagi
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