
सनातन धर्म में ब्रज भूमि को अत्यधिक पवित्र माना जाता है और इसका केंद्र है 'वृंदावन'। ब्रज क्षेत्र चौरासी कोस में फैला हुआ है जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने अपनी अलौकिक लीलाएं की थीं। इस पूरे क्षेत्र को शास्त्रों और पुराणों में 12 प्रमुख वनों और 24 उप-वनों में विभाजित किया गया है। ये बारह वन केवल वृक्षों के समूह नहीं हैं, बल्कि ये भगवान कृष्ण के बाल-जीवन और रास-लीलाओं के साक्षी रहे हैं। प्रत्येक वन का अपना एक विशेष आध्यात्मिक महत्व है और यह भक्तों को सीधे भगवान की लीला भूमि से जोड़ता है। इन वनों की परिक्रमा करना ब्रज यात्रा का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसे अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है। आइये जानते हैं वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से वृंदावन के इन 12 वनों का महत्व और इनके दर्शन के लाभ।
वृंदावन के 12 वनों को 'द्वादश वन' के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि वृंदावन तो हर कोई जाता है लेकिन इन वनों के दर्शन मात्र वही कर पाता है जिस पर श्री राधा रानी और श्री कृष्ण की असीम कृपा होती है। ब्रज मंडल के ये बारह प्रमुख वन इस प्रकार हैं:

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वृंदावन के 12 वनों की कहानी सीधे तौर पर भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं और ब्रज भूमि के आध्यात्मिक इतिहास से जुड़ी हुई है। ये वन द्वापर युग में अत्यंत सघन जंगल थे जहां हर ओर हरियाली, लताएं और कदम्ब तमाल आदि के वृक्ष होते थे।
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वृंदावन और इसके बारह वनों की भूमि स्वयं भगवान कृष्ण की उपस्थिति से पवित्र है। इन वनों का दर्शन करने से भक्त को अद्भुत आध्यात्मिक शांति मिलती है। जब कोई भक्त इन पवित्र स्थानों की यात्रा करता है तो वह सांसारिक चिंताओं से दूर होकर सीधे भगवान की लीलाओं से जुड़ जाता है।

यह यात्रा मन की शुद्धि करती है और व्यक्ति के भीतर भक्ति, प्रेम और वैराग्य की भावना को मजबूत करती है। ऐसा माना जाता है कि इन वनों की मिट्टी जिसे ब्रज में रज कहते हैं, उसका स्पर्श मात्र ही समस्त पापों का नाश कर देता है क्योंकि यह भूमि स्वयं कृष्ण के चरणों से पवित्र हुई है।
इन वनों का सबसे बड़ा लाभ कृष्ण प्रेम की प्राप्ति है। ये वन राधा और कृष्ण की प्रेम लीलाओं के साक्षी हैं। वृंदावन और भांडीरवन जैसे स्थानों के दर्शन से भक्त को सहज ही उस दिव्य प्रेम का अनुभव होता है जिसे 'प्रेम भक्ति' कहा जाता है।
कथाओं के अनुसार, इन वनों के कण-कण में आज भी राधा-कृष्ण का वास है। जब कोई भक्त श्रद्धा और प्रेम से इन वनों की परिक्रमा करता है तो उसे भगवान के निकट होने का अनुभव होता है जिससे उसकी भक्ति भाव में वृद्धि होती है और वह जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की बढ़ता है।
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