
हिंदू धर्म ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में भगवान विष्णु की संतानों को लेकर अलग-अलग मत पाए जाते हैं, लेकिन दक्षिण भारत की कथाओं में उनकी दो पुत्रियों का विशेष रूप से वर्णन मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु की दो पुत्रियां थीं और दोनों का जन्म भगवान विष्णु के वामन अवतार के समय उनके आनंद अश्रुओं की दो बूंदों से हुआ था। वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि भगवान विष्णु की दोनों बेटियां भगवान शिव और माता पार्वती की बहु भी हैं। हालांकि विष्णु पुत्री और शिव पुत्रवधू होने के बाद भी इनकी पूजा नहीं होती है। ऐसे में आइये जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
भगवान विष्णु की दो पुत्रियां हैं जिनका नाम अमृतवल्ली और सुंदरवल्ली है। कथाओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण करके असुर राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी और दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया तो इसके बाद तीसरा पग रखने की जगह ही नहीं थी। तब राजा बलि ने भगवान वामन को तीसरा पग उनके शीश पर रखने के लिए कहा।

असुर होते हुए भी वचन के पक्के और विष्णु सेवा में पूर्ण समर्पण को देखते हुए वामन भगवान राजा बलि से प्रसन्न हुए और उनकी भक्ति देख वामन भगवान के आंखों में आनंद के अश्रु यानी कि आसूं आ गए। इन्हीं आसुओं की दो बूंदे धरा पर गिरी और इनसे 2 कन्याओं का जन्म हुआ जो भगवान विष्णु की पुत्रियां कहलाईं। इन्हीं पुत्रियां का विवाह शिव परिवार में हुआ।
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जन्म के बाद भगवान विष्णु की दोनों बेटियां दक्षिण भारत में घोर तपस्या के लिए चली गईं। जब वह तपस्या पूर्ण कर अपने पिता से मिलने वैकुण्ठ लौट रही थीं तब उनकी भेंट भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय से हुई। कार्तिकेय भगवान को दक्षिण में मुरुगन देवता के रूप में पूजा जाता है। भगवान विष्णु की दोनों पुत्रियों को कार्तिकेय भगवान से प्रेम हो गया।
भगवान विष्णु और भगवान शिव को जब यह सत्य ज्ञात हुआ तो उन्होंने अमृतवल्ली और सुंदरवल्ली का विवाह कार्तिकेय से करा दिया। इस प्रकार, भगवान कार्तिकेय को भगवान विष्णु का दामाद भी माना जाता है। अमृतवल्ली का ही एक नाम देवसेना भी था और सुंदरवल्ली को वल्ली के नाम से जाना जाता है। इन दोनों से कार्तिकेय का विवाह असुरों के अंत हेतु आवश्यक था।
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भगवान विष्णु की दोनों पुत्रियों की पूजा इसलिए नहीं होती है क्योंकि वह देव पुत्री अवश्य हैं परंतु देवी नहीं है। असल में भगवान विष्णु की दोनों पुत्रियां भगवान कार्तिकेय की ऊर्जा शक्ति के रूप में जानी जाती हैं। ऐसे में इन दोनों की व्यापक यानी कि स्वतंत्र पूजा करना असंभव है क्योंकि आम गृहस्थ मनुष्य में ऊर्जा को साधने की शक्ति और सामर्थ दोनों नहीं है।

हालांकि भगवान विष्णु की दोनों बेटियों को दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय के साथ पूजा जाता है क्योंकि भगवान मुरुगन का बल केंद्र उनकी पत्नियां ही हैं, लेकिन दक्षिण में दोनों की पूजा अलग से नहीं होती है। एक अन्य तर्क के अनुसार, भगवान विष्णु की दोनों बेटियां कभी भी दक्षिण की सीमा के बाहर नहीं आई हैं, ऐसे में भारत के अन्य हिस्सों में उनकी पूजा नहीं होती है।
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