जगन्नाथ मंदिर की मान्यता सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में है। इस मंदिर को दुनिया के सबसे पूजनीय मंदिरों में से एक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में भगवान श्रीकृष्ण का दिल आज भी धड़कता है।ओड़िशा के पुरी में स्थित इस मंदिर को धरती का बैकुंठ भी कहा जाता है। यह मंदिर अपनी भव्यता और हर साल होने वाली रथयात्रा के लिए प्रसिद्ध है।800 साल पुराने इस मंदिर में हर साल दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु आते हैं और इससे जुड़े रहस्यमयी और चमत्कारी चीजों को सुनकर हैरान होते हैं।
जगन्नाथ मंदिर को लेकर एक नहीं, बल्कि कई कथाएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक मंदिर के चारों द्वार को लेकर भी मशहूर है। ऐसा माना जाता है कि जगन्नाथ मंदिर के चारों द्वारों पर अलग-अलग देवताओं का वास है। जगन्नाथ मंदिर के कौन-से द्वार में किस देव का वास है और इसका क्या महत्व है, इस बारे में हमें पंडित और ज्योतिष श्री राधे श्याम मिश्रा ने बताया है।
जगन्नाथ मंदिर के चारों द्वार में किस-किस देवता का वास है?
जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करने के लिए चार द्वार हैं। इन द्वारों यानी दरवाजों के नाम सिंह द्वार, हस्ति द्वार, व्याघ्र द्वार और अश्व द्वार हैं। यह सिर्फ मंदिर में प्रवेश करने के लिए आम द्वार नहीं, बल्कि चारों युगों यानी सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग के प्रतिनिधि माने जाते हैं। साथ ही इन्हें धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य का भी प्रतीक माना जाता है।
सिंह द्वार
जगन्नाथ मंदिर का मुख्य सिंह द्वार है। पूर्व में होने की वजह से ईस्ट गेट भी कहा जाता है। मान्यताओं के मुताबिक, इस द्वार पर जय और विजय विराजमान हैं। जय और विजय को भगवान विष्णु का द्वारपाल माना जाता है। सिंह द्वार पर जय और विजय के साथ गरुड़ देव भी मौजूद हैं। इसके अलावा शेर और अरुण स्तंभ भी है। सिंह द्वार को मोक्ष का द्वार और प्रतीक भी माना जाता है।
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सिंह द्वार की सबसे बड़ी खासियत यह है कि भगवान जगन्नाथ भी इसी द्वार से मंदिर से बाहर आते हैं और वापस भी इसी द्वार से जाते हैं। हर साल रथयात्रा के समय जब प्रभु मंदिर से बाहर आते हैं और अपनी मौसी के घर जाते हैं, तो वह सिंह द्वार से ही आते हैं। बता दें, मंदिर में श्रद्धालु भी इसी द्वार से प्रवेश करते हैं।
हस्ति द्वार
भगवान जगन्नाथ मंदिर का दूसरा द्वार हस्ति है। इस द्वार पर भगवान गणेश विराजते हैं और इसका प्रतीक हाथी है। हस्ति द्वार के दोनों तरफ हाथी की प्रतीमा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, हाथी को माता लक्ष्मी का वाहन माना गया है। यही वजह है कि इस द्वार को समृद्धि और ऐश्वर्य का प्रतीक भी कहा गया है। बता दें, इस द्वार से श्रद्धालु नहीं, बल्कि ऋषि-मुनि प्रवेश करते हैं।
अश्व द्वार
प्रभु जगन्नाथ मंदिर के मंदिर का तीसरा द्वार अश्व द्वार है। इस द्वार पर घोड़े की प्रतिमाएं मौजूद हैं और इन घोड़ों पर भगवान जगन्नाथ और बालभद्र युद्ध की स्थिति में सवार हैं। यही वजह है कि अश्व द्वार को विजय का प्रतीक भी माना गया है। ऐसी मान्यताएं हैं कि पुराने समय में जब राजा महाराजा युद्ध से पहले अपनी विजय की प्रार्थना करने के लिए भगवान जगन्नाथ के मंदिर में जाते थे तो वह इसी द्वार से प्रवेश करते थे।
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व्याघ्र द्वार
मंदिर का यह चौथा द्वार है। इसपर बाघ की प्रतिमा है। पौराणिक मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर का यह द्वार भगवान नृसिंह को समर्पित है और बाघ इसकी पहरेदारी कर रही हैं। यह द्वार हमेशा धर्ल का पालन करने का महत्व बताता है। इस द्वार से विशेष भक्त और संत ही प्रवेश करते हैं।
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Image Credit: Herzindagi
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