हिंदू धर्म में सुबह उठकर स्नान करके भगवान का ध्यान करने का विशेष स्थान है। सुबह-शाम ईश्वर का स्मरण करना, धूप-दीप जलाना और जल अर्पित करना अधिकतर लोगों की दिनचर्या का अभिन्न अंग है। पूजा के दौरान, देवी-देवताओं को जल अर्पित करना और कलश में जल भरकर रखना अत्यंत शुभ माना जाता है। भगवान को जल चढ़ाना पवित्रता, शीतलता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। अब ऐसे में हम सभी बड़े श्रद्धा भाव से यह कार्य करते हैं। लेकिन भागदौड़ भरी लाइफ में पूजा करने के दौरान कई ऐसी गलतियां हो जाती है, जिसका हमें आभास भी नहीं होता है। आमतौर लोग पूजा के बर्तन को मंदिर में रखते हैं। लेकिन क्या आपको पता है जल अर्पित करने के बाद खाली लोटा रखना सही नहीं माना जाता है। चलिए ज्योतिषाचार्य उदित नारायण त्रिपाठी से जानते हैं कि मंदिर में खाली लोटा रखने से क्या नुकसान होता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में कोई भी खाली बर्तन नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। जलपात्र को खाली छोड़ने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ सकता है, जिससे घर में कलह, अशांति और तनाव का वातावरण बन सकता है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में खाली जलपात्र छोड़ने से घर में धन की कमी हो सकती है और आर्थिक स्थिति खराब हो सकती है। यह धन आगमन के रास्तों को बाधित कर सकता है और बेवजह के खर्चे बढ़ा सकता है। खाली लोटा दरिद्रता का प्रतीक माना जाता है।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी-देवताओं को प्यास लगने पर वे मंदिर में रखे जल से अपनी प्यास बुझाते हैं। यदि जलपात्र खाली हो तो यह उन्हें अप्रसन्न कर सकता है, जिससे उनकी कृपा प्राप्त नहीं होती और आपके बनते हुए काम बिगड़ सकते हैं। साथ ही खाली लोटा दुर्भाग्य और असफलता का प्रतीक माना जाता है। पूजा के बाद इसे खाली छोड़ने से घर के सदस्यों के सौभाग्य में कमी आ सकती है और उन्हें अपने कार्यों में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, पूजा के बाद जलपात्र को खाली छोड़ना पितृ दोष का कारण भी बन सकता है।
पूजा समाप्त होने के बाद जलपात्र को रखते हुए, उसमें शुद्ध जल भरकर रखें। इसके साथ ही इसमें थोड़ा गंगाजल और एक तुलसी का पत्ता भी डाल दें। यह घर में सकारात्मकता ऊर्जा बनाए रखने में मदद करता है। ऐसा करने से देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है। साथ ही, जब भी आप मंदिर से वापस आएं तो अपने जल के लोटे को खाली लेकर न आएं। यदि सारा जल अर्पित कर दिया है तो मंदिर में मौजूद नल से थोड़ा जल भरकर ही वापस आएं।
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