जगन्नाथ धाम में रथ यात्रा के अलावा 13 ऐसे पर्व हैं, जो बहुत महत्वपूर्ण है। बहुत से लोगों को इन पर्व और त्योहारों के बारे में नहीं पता है, बता दें कि 12 महीने में ऐसे कई तिथियां है, जब जगन्नाथ भगवान के लिए विशेष अनुष्ठान और पूजा रखा जाता है। जगन्नाथ मंदिर के रथ यात्रा को ही बड़ा और महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में जाना जाता है। बता दें कि इसके अलावा और भी त्योहार है, जिसे जगन्नाथ में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। चलिए आज के इस लेख में हम आपको रथ यात्रा के अलावा इन और प्रमूख त्यौहारों के बारे में बताएंगे।
स्नान यात्रा या स्नान महोत्सव
हर साल यह त्योहार ज्येष्ठ मास के पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन मुख्य मूर्तियों को स्नान वेदी मंडप पर लाया जाता है। इन मूर्तियों पर चंदन, कपूर, फूल और अन्य सुगंधित चीजों से तैयार 108 मटके के पानी से स्नान करवाया जाता है।
रथ यात्रा
यह जगन्नाथ का सबसे बड़ा त्योहार है, जो आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इसमें विशाल रथ का निर्माण किया जाता है और जगन्नाथ जी, बल भद्र और सुभद्रा को रथ में बिठाकर गुंडिचा घर नामक मंदिर में ले जाया जाता है और यहां तीनों की मूर्तियां सात दिन के लिए रहती है।
सायण यात्रा
यह पर्व आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शाम को हरिशयन एकादशी नामक अनुष्ठान किया जाता है। बड़ा सिंहरा भोग के बाद जब महास्नान और पूजा समाप्त होती है, तब सायण ठाकुरों की तीनों प्रतिमाएं यानी वासुदेव, भुवनेश्वरी और नारायण को रथ में ले जाया जाता है। पूजा पंडा भोग, आरती जैसे विशेष अनुष्ठान करवा कर शयन कक्ष में ले जाया जाता है।
दक्षिणायन
कर्कट (वृश्चिक) संक्रांति के दिन जगन्नाथ में विशेष अनुष्ठान किया जाता है, इस दिन से सूर्य शरद विषुप की ओर बढ़ना शुरू करते हैं।
पार्श्व परिवर्तन
भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन भोग मंडप समाप्त होने के बाद तीनों देवताओं को महा स्नान करवा कर चंदन एवं नया वस्त्र पहनाया जाता है। सरबंग और बड़ा सिंघारा का भोग लगाया जाता है और सायण ठाकुर को सफेद फूल चढ़ाकर उनकी करवट को अपनी ओर बदला जाता है।
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देव उत्थपना
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन हरी उत्थापन का अनुष्ठान किया जाता है। इस दिन सयाना एकादशी की तरह बल्लभ से लेकर बड़ासिंघारा तक सभी विधि को किया जाता है।
प्रवरणा षष्ठी
मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन जगन्नाथ मंदिरमें प्रवरणा षष्ठी मनाया जाता है। देवता सर्दियों के कपड़े पहनते हैं और रत्न सिंहासन पर घोड़ा और रेशमी कपड़े चढ़ाने के बाद सोने के 6 गहने भी दिए थे।
पुष्यविषेक
यह पर्व पौष पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ का श्री राम के रूप में अभिषेक किया जाता है। इसे रामाभिषेक भी कहा जाता है।
मकर संक्रांति
यह पौष मास में मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है। इस देवताओं को फूटा पहरना (एक तरह का कपड़ा) चढ़ाया जाता है। त्रिमुंडी में मकर चूला चढ़ाया जाता है। इस दिन देवताओं को मकर चौरासी भोग लगाया जाता है।
डोला यात्रा
डोला यात्रा श्री मंदिर के महत्वपूर्ण त्यौहार में से एक है, यह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की दशमी से लेकर पूर्णिमा तक मनाया जाता है।
दमनक चतुर्दशी
चैत्र शुक्ल पक्ष की 13वीं और 14 वीं तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन प्रतिनिधि देवता राम, कृष्ण को जगन्नाथ बल्लभ मठ में जुलूस के रूप में ले जाया जाता हैं। जहां देवता मठ के बगीचे से अपने प्रिय दयाना के पत्ते उठाते हैं और 14वें दिन उन पत्तों को भगवान को अर्पित करते हैं।
अक्षय तृतीया और चंदन यात्रा
अक्षय तृतीया यानी बैसाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन चंदन यात्राशुरू होती है। इस दिन से रथ यात्रा के लिए रथ निर्माण कार्य प्रारंभ होता है। चंदन यात्रा 42 दिनों तक चलती है, 21-21 दिनों की दो अवधि में बांटी जाती है।
नीलाद्रि महोदय
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन देवताओं को 108 कलशों में जल चढ़ाया जाता है और अभिषेक अनुष्ठान जैसे विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।
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Image Credit: Freepik
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