Vat Savitri Vrat Katha 2024: वट सावित्री के दिन पढ़ें ये व्रत कथा, अखंड सौभाग्य का मिलेगा वरदान

वट सावित्री व्रत जिसे सावित्री अमावस्या सत्यवान-सावित्री व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलााएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। 

Vrat katha for husband Longlife ()
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(Vat Savitri 2024) हिंदू पंचांग के अनुसार वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है। इस साल अमावस्या तिथि की शुरुआत 05 जून को शाम 05 बजकर 54 मिनट पर हो रही है और इसका समापन 06 जून को शाम 06 बजकर 07 मिनट पर होगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और पूजा-पाठ करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही वैवाहिक जीवन भी सुखमय रहता है। इस दिन बरगद के पेड़ की विधिवत पूजा करने से पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हो सकती है। साथ ही हर तरह के कलह-क्लेश से भी छुटकारा मिल सकता है। अब ऐसे में इस दिन जो महिलाएं व्रत रख रही हैं, तो उन्हें व्रत कथा अवश्य पढ़ना और सुनना चाहिए। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से वट सावित्री की व्रत कथा के बारे में जानते हैं।

वट सावित्री के दिन पढ़ें व्रत कथा

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वट सावित्री व्रत करने से पति की आयु लंबी होती है और परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है। इतना ही नहीं सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का वरदान भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा का राज था और उनकी कोई संतान नहीं थी। राजा ने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया। जिसके शुभ परिणाम के बाद उनके घर एक कन्या का जन्म हुआ। इस कन्या का नाम सावित्री रखा गया। समय के साथ-साथ जब सावित्री बड़ी और विवाह के योग्य हुई, तब उन्होंने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पति रूप में वरण किया। बता दें, सत्यवान के पिता भी राजा ही थे। लेकिन उनसे उनका राजपाठ छिन गया था। जिसके चलते वह अपना जीवन दरिद्रता में व्यतीत कर रहे थे। सत्यवान के माता-पिता की भी आंखों की रोशनी चली गई थी और वह जंगल से लकड़ी काटकर अपना गुजारा कर रहे थे। वहीं जब सावित्री और सत्यवान के विवाह की बात चली। तब नारद मुनि ने सावित्री के पिता राजा अश्वपति को बताया कि सत्यवान अल्पायु है और विवाह के एक साल बाद ही उनकी मृत्यु हो जाएगी। नारद मुनि की ये बात सुनकर सावित्री के पिता ने उन्हें समझाने का बहुत प्रयास किया। लेकिन वह नहीं मानी। आखिर में सावित्री का सत्यवान से विवाह हो गया।

विवाह के बाद सावित्री अपने सास-ससुर और पति की सेवा भाव में लग गई। फिर एक दिन वो समय आया। जिसका जिक्र नारद मुनि ने सावित्री के पिता से किया था। कि सत्यवान की मृत्यु हो जाएगी। उसी दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन को गई। जंगल में सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगे कि उनके सिर में अचानक पीड़ा होने लग गई। कुछ समय के बाद वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गए। कुछ ही समय बाद उनके पास दूतों के साथ यमराज आए। यमराज सत्यवान की आत्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर जाने लगे। पतिव्रता सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी। आगे जाकर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे पतिव्रता नारी, जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है। तुमने अपने पति का साथ दिया। अब तुम चली जाओ। इस पर सावित्री ने कहा कि जहां मेरे पति जाएंगे। वहां तक मैं भी जाउंगी। यही सत्य है।

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यमराज सावित्री की ये बात सुनकर प्रसन्न हुए और उनसे तीन वर मांगने को कहा। यमराज की बात सुनकर सावित्री ने उत्तर दिया कि मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उनकी आंखों की रोशनी लौटा दें। तब यमराज ने तथास्तु कहकर उसे जाने को कहा। लेकिन सावित्री यम के पीछे चलती रही। तब यमराज दोबारा प्रसन्न होकर वर मांगने को कहते हैं, तब सावित्री ने वर मांगा कि मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मिल जाए। इसके बाद सावित्री ने वर मांगा कि मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं। सावित्री की पति-भक्ति को देखकर यमराज अत्यंत प्रसन्न हुएं और तथास्तु कहा। जिसके बाद सावित्री ने कहा कि मेरे पति के प्राण तो आप लेकर जा रहे हैं तो आपके पुत्र प्राप्ति का वरदान कैसे पूरा होगा। तब यमदेव ने अंतिम वरदान देते हुए सत्यवान को पाश से मुक्त कर दिया। सावित्री वापस बरगद के पेड़ के पास लौटी। जहां सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था। कुछ देर बाद सत्यवान उठकर बैठ गया। उधर सत्यवान के माता-पिता की आंखों की रोशनी आ गई। साथ ही उनका खोया हुआ राज्य भी उन्हें वापस मिल गया।

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Image Credit- HerZindagi

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