वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है। इस साल वट सावित्री व्रत 26 मई, दिन सोमवार को रखा जाएगा। यह व्रत हिन्दू धर्म में पालन किये जाने वाले सभी व्रतों में सबसे ज्यादा कठिन माना जाता है क्योंकि इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए निर्जल उपवास करती हैं। वट सावित्री के दिन जहां एक ओर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है तो वहीं, दूसरी ओर इस दिन वट वृक्ष यानी कि बरगद के पेड़ की पूजा का भी विधान है। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि क्या है वट सावित्री व्रत की संपूर्ण पूजा विधि।
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि (Vat Savitri Puja Vidhi)
प्रातः स्नान
वट सावित्री व्रत के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त के समय ही जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजा का संकल्प
स्नान के बाद, पूजा स्थान पर बैठकर हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें। आप मन ही मन या बोलकर कह सकती हैं कि 'मैं (अपना नाम) अपने पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए वट सावित्री व्रत कर रही हूं। भगवान मुझे इस व्रत को सफलतापूर्वक संपन्न करने की शक्ति दें'।
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वट वृक्ष पूजा आरंभ
पूजा के लिए किसी ऐसे स्थान पर जाएं जहां बरगद का पेड़ हो। यदि बरगद का पेड़ उपलब्ध न हो, तो आप घर में गमले में लगे छोटे बरगद के पौधे की भी पूजा कर सकती हैं। पेड़ के पास पहुंचकर, सबसे पहले पेड़ की जड़ में थोड़ा सा जल चढ़ाएं। इसके बाद, पेड़ के चारों ओर कच्चा सूत (कलावा या मौली) सात बार या अपनी श्रद्धा अनुसार परिक्रमा करते हुए लपेटें। हर परिक्रमा के साथ 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' या 'ॐ नमो वटवृक्षाय' मंत्र का जाप कर सकती हैं। सूत लपेटने के बाद, पेड़ को कुमकुम, हल्दी और चावल का तिलक लगाएं।
पूजन सामग्री अर्पण
अब धूप, अगरबत्ती और दीपक (घी का दीया जलाएं) जलाएं। बरगद के पेड़ को फूल अर्पित करें। इसके बाद, फल, मिठाई, बताशे और शक्कर चढ़ाएं। सुहाग का सामान भी पेड़ को अर्पित करें और पति की लंबी आयु व खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए कामना करें। कुछ महिलाएं वट वृक्ष के पास ही सावित्री-सत्यवान की तस्वीर या मूर्ति रखकर उनकी भी विधिवत पूजा करती हैं। उन्हें भी तिलक लगाकर, फूल चढ़ाकर, धूप-दीप दिखाकर और भोग लगाकर उनका आशीर्वाद लेती हैं।
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व्रत कथा, आरती और प्रार्थना
पूजा सामग्री अर्पित करने के बाद, वट सावित्री व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। इस कथा को सुनने से व्रत का महत्व और फल प्राप्त होता है। कथा में सावित्री द्वारा अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लाने की कहानी होती है, जो इस व्रत के पीछे की मुख्य प्रेरणा है। कथा समाप्त होने पर, बरगद के पेड़ की आरती करें। आरती के बाद, अपनी मनोकामनाओं के लिए प्रार्थना करें और पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और परिवार की सुख-शांति के लिए आशीर्वाद मांगें। बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना भी शुभ माना जाता है।
प्रसाद वितरण और पारण
पूजा समाप्त होने पर, चढ़ाए गए प्रसाद को पहले स्वयं ग्रहण करें और फिर परिवार के सदस्यों, विशेषकर पति, और अन्य लोगों में बांटें। कुछ जगहों पर महिलाएं ब्राह्मणी को दान-दक्षिणा भी देती हैं। व्रत का पारण अगले दिन सुबह सूर्योदय के बाद करें। पारण से पहले कुछ मीठा या फल खाकर व्रत खोलें। इस तरह से वट सावित्री व्रत की पूजा संपूर्ण होती है और पति की लंबी आयु के साथ-साथ परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
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