वट पूर्णिमा की पूजा के दौरान जरूर करें इन नियमों का पालन, मिलेगा सौभाग्य का आशीर्वाद

वट पूर्णिमा का दिन विवाहित महिलाओं के लिए बेहद शुभ फलदायी माना गया है। अब ऐसे में इस दिन जो महिलाएं व्रत रख रही हैं, उन्हें नियमों का पालन करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं। 
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हिंदू धर्म में वट पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण व्रत है जो विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए रखती हैं। यह ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत पति के अखंड सौभाग्य और लंबी आयु के लिए रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि वट वृक्ष की पूजा और परिक्रमा करने से घर और परिवार पर आने वाली नकारात्मक ऊर्जाएं, बुरी शक्तियां और दुर्भाग्य दूर होते हैं। यह व्रत घर में धन-धान्य और आर्थिक समृद्धि लाता है। यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम और विश्वास को मजबूत करता है। अब ऐसे में अगर जो महिलाएं वट पूर्णिमा के दिन व्रत रख रही हैं, उन्हें व्रत के दौरान किन नियमों का पालन करना लाभ हो सकता है। इसके बारे में इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

वट पूर्णिमा के दिन पूजा के दौरान जरूर करें इन नियमों का पालन

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वट पूर्णिमा का व्रत सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखा जाता है. यह व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और उत्तर भारत में वट सावित्री के नाम से जाना जाता है, जबकि महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में इसे वट पूर्णिमा कहते हैं।
पूजा के लिए किसी स्वस्थ और बड़े वट वृक्ष का चुनाव करें। अगर घर के आस-पास वट वृक्ष न हो, तो गमले में भी वट वृक्ष की टहनी लगाकर पूजा की जा सकती है, लेकिन बड़े वृक्ष के नीचे पूजा करना अधिक शुभ माना जाता है।
पूजा शुरू करने से पहले वट वृक्ष के चारों ओर साफ-सफाई करें। फिर वृक्ष की जड़ों में जल और कच्चा दूध अर्पित करें। इसके बाद रोली, कुमकुम, हल्दी, चंदन, अक्षत और फूल अर्पित करें।
वट वृक्ष के तने पर कच्चा सूत या मौली लपेटते हुए 7 या 108 बार परिक्रमा करें। हर परिक्रमा के साथ अपनी मनोकामना दोहराते रहें. सूत लपेटते समय सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करें।
परिक्रमा पूरी होने के बाद वट वृक्ष के नीचे धूप और दीपक जलाएं।
वट सावित्री व्रत कथा या वट पूर्णिमा व्रत कथा का श्रद्धापूर्वक पाठ करें या सुनें। कथा सुनने से व्रत का महत्व और फल मिलता है।
इस दिन दान का विशेष महत्व है। पूजा के बाद श्रृंगार का सामान किसी सुहागिन महिला को दान करना शुभ माना जाता है। साथ ही अनाज, वस्त्र और दक्षिणा का दान भी कर सकते हैं।

वट पूर्णिमा के दिन के पूजा का महत्व

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इस व्रत का सबसे प्रमुख महत्व पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य की कामना करना है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सावित्री ने इसी दिन अपने सतीत्व और दृढ़ संकल्प से यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लाए थे। इसी कारण महिलाएं सावित्री की तरह अपने पति के लिए व्रत रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि वट पूर्णिमा का व्रत करने से घर में धन-धान्य और आर्थिक समृद्धि आती है, जिससे परिवार की वित्तीय स्थिति मजबूत होती है।

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Image Credit- HerZindagi

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