
हिंदू धर्म में हर एक तिथि का एक अलग महत्व होता है। उत्पन्ना एकादशी इनमें से एक है। इस दिन कई सारे लोग व्रत रखते हैं। साथ ही भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह व्रत करने से व्रती के जाने-अनजाने में किए गए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही व्यक्ति को बैकुंठ धाम में स्थान मिलता है, लेकिन इस व्रत को संपन्न करने के लिए जरूरी होता है कि आप एकादशी की व्रत कथा को जरूर पढ़ें। व्रत कथा में आपको इस व्रत का सही अर्थ भी पता चलेगा। साथ ही इसकी महत्तता के बारे में आप जान पाएंगी। इसलिए आपको व्रत के दिन एक बार जरूर पौराणिक कथा पढ़नी चाहिए। इससे आपके व्रत रखने का फल आपको प्राप्त होगा।
पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग के समय 'मुर' नाम का एक अत्यंत बलशाली और क्रूर राक्षस था। उसने अपनी शक्ति के बल पर स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया और सभी देवताओं को पराजित कर दिया। भयभीत होकर, देवराज इंद्र सहित सभी देवता कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की शरण में गए। शिवजी ने देवताओं को भगवान विष्णु के पास जाने की सलाह दी। सभी देवता क्षीरसागर पहुंचे और भगवान विष्णु की स्तुति की। देवताओं ने उन्हें बताया कि राक्षस मुर के अत्याचारों के कारण वे स्वर्गलोक छोड़कर भटक रहे हैं, और मुर ने स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया है।

देवताओं की करुण पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने उनसे कहा, "मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूँगा।" यह कहकर, भगवान विष्णु ने मुर राक्षस को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों के बीच कई वर्षों तक भयंकर युद्ध चला। युद्ध करते-करते भगवान विष्णु बहुत थक गए। विश्राम करने के उद्देश्य से, भगवान विष्णु बद्रीकाश्रम में स्थित 'सिंहावती' नामक एक गुफा में जाकर सो गए। राक्षस मुर भी उनका पीछा करते हुए उसी गुफा में पहुंच गया। मुर ने सोचा कि जब भगवान विष्णु निद्रा में हैं, तब उन्हें मारना सबसे आसान होगा। जैसे ही राक्षस मुर ने भगवान विष्णु को मारने के लिए शस्त्र उठाया, तभी अचानक भगवान विष्णु के शरीर से एक अत्यंत तेजस्विनी और दिव्य कन्या प्रकट हुईं। यह देवी अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित थीं और क्रोध से भरी हुई थीं।

देवी ने मुर राक्षस को युद्ध के लिए ललकारा। मुर उस देवी के सौंदर्य और तेज को देखकर विस्मित हो गया, लेकिन फिर उसने युद्ध शुरू कर दिया। देवी और मुर के बीच घमासान युद्ध हुआ। अंततः, उस देवी ने अपनी शक्ति और पराक्रम से मुर राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया, जिससे मुर की मृत्यु हो गई।
जब भगवान विष्णु निद्रा से जागे, तो उन्होंने देखा कि मुर राक्षस मृत पड़ा है और उनके सामने एक दिव्य स्त्री खड़ी हैं। भगवान ने पूछा, "हे देवी, तुमने किस कारण से इस राक्षस का वध किया? "देवी ने पूरी कथा सुनाई। यह सुनकर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले, "हे देवी, तुमने मुझे गहरी निद्रा से बचाया और इस दुष्ट राक्षस का वध करके देवताओं को भयमुक्त किया है। चूंकि तुम मेरे शरीर से उत्पन्न हुई हो और तुमने यह कार्य मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन किया है, इसलिए आज से तुम्हारा नाम 'एकादशी' होगा।" भगवान विष्णु ने देवी एकादशी को वरदान दिया कि जो भी मनुष्य आज के दिन विधिपूर्वक तुम्हारा और मेरा व्रत करेगा, उसके समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे और उसे अंत में मोक्ष की प्राप्ति होगी। तभी से इस एकादशी को 'उत्पन्ना एकादशी' के नाम से जाना जाता है।

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