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Paush Putrada Ekadashi Vrat Katha 2025: पौष पुत्रदा एकादशी के दिन पढ़ें ये व्रत कथा, संतान का खुल जाएगा सौभाग्य

Paush Putrada Ekadashi Vrat Katha 2025: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो दंपत्ति संतान सुख से वंचित हैं या जिनकी संतान के जीवन में परेशानियां आ रही हैं उनके लिए यह व्रत बहुत फलदायी होता है। इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है और व्रत कथा सुनी जाती है।
Editorial
Updated:- 2025-12-30, 05:17 IST

पौष पुत्रदा एकादशी हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है जो मुख्य रूप से संतान प्राप्ति और संतान की लंबी आयु की कामना के लिए रखी जाती है। साल 2025 में यह शुभ तिथि 30 दिसंबर, मंगलवार को पड़ रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो दंपत्ति संतान सुख से वंचित हैं या जिनकी संतान के जीवन में परेशानियां आ रही हैं उनके लिए यह व्रत बहुत फलदायी होता है। इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है और व्रत कथा सुनी जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से वाजपेयी यज्ञ के समान पुण्य मिलता है और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि पौष पुत्रदा एकादशी के दिन व्रत कथा पढ़ने से भी बहुत लाभ होता है, आइये जानते हैं इस बारे में।

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Paush Putrada Ekadashi Vrat Katha 2025)

पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा बहुत ही भावुक और प्रेरणादायक है। यह कथा द्वापर युग की है जिसे भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाया था। प्राचीन काल में भद्रावती नाम के राज्य में सुकेतुमान नाम के एक राजा राज करते थे। उनकी पत्नी का नाम शैव्या था।

paush putrada ekadashi 2025 ki vrat katha

राजा के पास सब कुछ था धन, दौलत, यश और वैभव, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। इस कारण राजा और रानी हमेशा दुखी रहते थे। राजा को यह चिंता सताती थी कि उनके मरने के बाद उनका पिंडदान कौन करेगा और उनके पूर्वजों को तर्पण कौन देगा।

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इसी दुख में एक दिन राजा अपना राजपाठ छोड़कर वन की ओर चले गए। वन में घूमते-घूमते राजा काफी थक गए और उन्हें जोर की प्यास लगी। पानी की तलाश करते हुए वे एक सुंदर सरोवर के पास पहुंचे।

वहां राजा ने देखा कि सरोवर के किनारे बहुत सारे ऋषि-मुनि अपने आश्रमों में बैठकर भजन-कीर्तन कर रहे हैं। राजा ने उन ऋषियों को प्रणाम किया और उनसे वहां एकत्रित होने का कारण पूछा।

ऋषियों ने बताया कि वे 'विश्वेदेव' हैं और आज 'पौष पुत्रदा एकादशी' है, इसलिए वे इस पवित्र सरोवर पर स्नान करने आए हैं। राजा ने ऋषियों से अपनी व्यथा सुनाई और संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा।

ऋषियों ने कहा, 'हे राजन! आज का दिन बहुत शुभ है। अगर आप पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ आज पुत्रदा एकादशी का व्रत रखेंगे तो भगवान विष्णु की कृपा से आपको अवश्य ही संतान की प्राप्ति होगी।' 

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ऋषियों के कहे अनुसार, राजा ने उसी समय सरोवर में स्नान किया और पूरी निष्ठा के साथ पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करके वे वापस अपने महल लौट आए।

व्रत के प्रभाव से कुछ ही समय बाद रानी शैव्या गर्भवती हुईं और उन्होंने एक बहुत ही तेजस्वी और सुंदर पुत्र को जन्म दिया। वह पुत्र बड़ा होकर बहुत ही न्यायप्रिय और वीर राजा बना।

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इस कथा का सार यही है कि जो भी व्यक्ति संतान सुख की कामना रखता है या अपनी संतान के उज्जवल भविष्य की इच्छा करता है, उसे पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत नियमपूर्वक करना चाहिए।

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने और यह कथा सुनने मात्र से भी वाजपेयी यज्ञ के समान पुण्य मिलता है और व्यक्ति के सभी मनोरथ पूरे होते हैं।

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