
सुब्रह्मण्य षष्ठी जिसे स्कंद षष्ठी भी कहते हैं भगवान कार्तिकेय को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान कार्तिकेय की विधि-विधान से पूजा और व्रत करने से भक्तों को बल, बुद्धि, ज्ञान, संतान सुख की प्राप्ति होती है और जीवन के सभी कष्टों और नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है क्योंकि इसी दिन उन्होंने असुर तारकासुर का वध किया था। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि इस साल कब पड़ रही है सुब्रह्मण्य षष्ठी, क्या है इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा का शुभ मुहूर्त एवं महत्व और कैसे करें इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा?
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि का आरंभ 25 नवंबर, मंगलवार के दिन रात 10 बजकर 56 मिनट से होगा। वहीं, इसका समापन 27 नवंबर, गुरुवार के दिन रात 12 बजकर 01 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, सुब्रह्मण्य षष्ठी की पूजा 26 नवंबर, बुधवार के दिन की जाएगी।

सुब्रह्मण्य षष्ठी के दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04 बजकर 37 मिनट से 05 बजकर 30 मिनट तक रहेगा जो पवित्र स्नान के लिए बहुत शुभ समय है। वहीं, दूसरी ओर दोपहर 01 बजकर 33 मिनट से 02 बजकर 16 मिनट तक विजय मुहूर्त बन रहा है जो शुभ कार्यों के लिए उत्तम माना जाता है।
इसके अलावा, भगवान कार्तिकेय की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 47 मिनट से दोपहर 12 बजकर 29 मिनट तक है। साथ ही, संध्या पूजन के 2 मुहूर्त हैं- पहला शाम 05 बजकर 05 मिनट से 05 बजकर 32 मिनट तक औ दूसरा शाम 05 बजकर 07 मिनट से 06 बजकर 27 मिनट तक।
यह भी पढ़ें: घर में मोमबत्ती है तो कर लें ये 4 काम, चाह कर भी नहीं रोक पाएगा कोई आपकी तरक्की
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद, हाथ में जल लेकर भगवान कार्तिकेय का ध्यान करते हुए पूरे दिन के व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थल पर भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके साथ ही, उनके माता-पिता भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा भी रखें।
गवान कार्तिकेय को गंगाजल, दूध और दही से अभिषेक करें। उन्हें चंदन, रोली, अक्षत, फूल, धूप और दीप अर्पित करें। कार्तिकेय को मोरपंख, लाल वस्त्र और उनकी प्रिय चीज़ें जैसे फल और मिठाई जरूर चढ़ाएं। इसके बाद, भगवान कार्तिकेय के सबसे प्रिय 2 मंत्रों का जाप अवश्य करें।

पूजा के दौरान 'ॐ श्री सुब्रह्मण्य स्वामी नमः' या 'ॐ शरवण भवाय नमः' मंत्र का जाप करें। इसके अलावा, कार्तिकेय चालीसा या स्कंद षष्ठी कवच का पाठ करना बहुत शुभ होता है। पूजा के अंत में भगवान कार्तिकेय की आरती करें। लगाए हुए भोग को प्रसाद के रूप में सभी में बांटें।
यह दिन भगवान कार्तिकेय की असुर तारकासुर पर विजय का प्रतीक है, इसलिए इस व्रत से व्यक्ति को अपने शत्रुओं और जीवन की सभी चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने का बल और आत्मविश्वास मिलता है। भगवान कार्तिकेय को ज्ञान और शक्ति का देवता माना जाता है।
संतान की इच्छा रखने वाले दंपतियों को यह व्रत संतान सुख देता है, और बच्चों को तेज बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी प्रकार के भय, रोग और जीवन की नकारात्मक शक्तियों को दूर करने में सहायक माना जाता है।
अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
image credit: herzindagi
यह विडियो भी देखें
Herzindagi video
हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, compliant_gro@jagrannewmedia.com पर हमसे संपर्क करें।