भगवान जगन्नाथ मंदिर, जिसे अक्सर 'जगन्नाथ पुरी' के नाम से जाना जाता है, हिंदू धर्म के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। यह भारत के ओडिशा राज्य के पुरी शहर में स्थित है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ उनके बड़े भाई बलभद्र, और उनकी बहन सुभद्रा को समर्पित है। यह चार धामों में से एक है। मंदिर की सबसे अनूठी विशेषता इसकी लकड़ी की मूर्तियां हैं, जो हर 12 या 19 साल में एक विशेष अनुष्ठान, जिसे नव कलेवर कहा जाता है, के तहत बदली जाती हैं। ये मूर्तियां नीम की लकड़ी से बनी होती हैं और इन्हें अपूर्ण माना जाता है, जो जीवन के चक्र और निरंतर परिवर्तन का प्रतीक है। आपको बता दें, जगन्नाथ मंदिर का सबसे प्रसिद्ध और भव्य उत्सव रथ यात्रा है। यह त्योहार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को आयोजित किया जाता है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को विशाल सजे हुए रथों पर बिठाकर पुरी की सड़कों पर निकाला जाता है। अब ऐसे में क्या आप जानते हैं कि जगन्नाथ मंदिर के पीछे एक सोने का कुआं भी मौजूद है। जिसे शायद ही लोग जानते होंगे। आइए इस लेख में विस्तार से ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
जगन्नाथ मंदिर में स्थित है सोने का कुंआ
ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में एक सोने का कुआँ है। इसे स्वर्ण कुआँ भी कहा जाता है। यह कुआं साल में केवल एक बार ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन खोला जाता है, जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को इसी कुएं के पवित्र जल से 108 कलशों से स्नान कराया जाता है, जिसे देवस्नान पूर्णिमा या स्नान यात्रा कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि मालवा प्रदेश के राजा इंद्रद्युम्न ने इस कुएं में सोने की ईंटें लगवाई थीं। कुएं का ढक्कन काफी बड़ा और भारी होता है, जिसे खोलने के लिए कई लोगों की मदद लेनी पड़ती है। ऐसी भी मान्यता है कि इस कुएं में सभी तीर्थों से आए जल शामिल हैं। यह कुआँ मंदिर के रत्न भंडार से भी जुड़ा माना जाता है, हालांकि इसमें कितना सोना है, यह आज तक कोई नहीं जान पाया है। श्रद्धालु भी इस कुएं के ढक्कन में बने एक छेद से इसमें स्वर्ण डालते हैं।
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जगन्नाथ मंदिर के सोने के कुएं का इतिहास
ऐसा कहा जाता है कि इस कुएं में नीचे की तरफ दीवारों पर मालवा प्रदेश के राजा इंद्रद्युम्न ने सोने की ईंटें लगवाई थीं। यह कुआं पूरे साल में केवल एक बार ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को खोला जाता है, जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को "देवस्नान" कराया जाता है। इस कुएं के जल का उपयोग भगवान के स्नान के लिए किया जाता है। माना जाता है कि इसमें सभी तीर्थों से आए जल शामिल हैं। देवस्नान के लिए, कुएं को खोलकर उसकी सफाई की जाती है और फिर पीतल के 108 घड़ों में इसका पानी भरा जाता है। इसी जल से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का स्नान संपन्न होता है।
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