हिंदू पंचांग के अनुसार सावन माह का आखिरी प्रदोष व्रत बेहद खास होने जा रहा है। वहीं शनिवार के दिन त्रयोदशी तिथि होने से इसका खास महत्व है। इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है। इस बार सावन शनि प्रदोष व्रत पर कई शुभ भी बन रहे हैं। इसलिए इस दिन पूजा करना और भगवान शिव का रुद्राभिषेक करना उत्तम फलदायी साबित हो सकता है। अब ऐसे में शनि प्रदोष के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है, नियम क्या है और किस विधि से रुद्राभिषेक करना उत्तम माना जाता है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
शनि प्रदोष व्रत कब है?
सावन माह का अंतिम शनि प्रदोष व्रत 17 अगस्त को रखा जाएगा। सावन के अंतिम शनिवार को 17 अगस्त को सुबह 8 बजकर 6 मिनट से त्रयोदशी तिथि का आरंभ होने जा रहा है और इसका समापन 18 अगस्त को सुबह 05 बजकर 52 मिनट तक रहेगा। जिससे शनि प्रदोष व्रत का संयोग बनेगा। धार्मिक दृष्टि से देखा जाए, तो शनिवार के दिन त्रयोदशी तिथि होना शुभ फलदायी है। इस दिन शिवजी का अभिषेक करना शुभ होता है। इसी के साथ इस दिन प्रीति और आयुष्मान योग का शुभ संयोग भी बन रहा है। इसके अलावा बुधादित्य राजयोग और शुक्र आदित्य राजयोग भी प्रभावशाली रहेंगे। आप शनिवार के दिन सूर्योदय के बाद पूरे दिन कभी भी भगवान शिव का रुद्राभिषेक कर सकते हैं।
भगवान शिव का रुद्राभिषेक किस विधि से करें?
स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
शिवलिंग को गंगाजल से धोकर शुद्ध करें।
पूजा स्थल को साफ-सुथरा करें।
दीपक जलाएं और धूप दें।
सबसे पहले शिवलिंग पर गंगाजल से अभिषेक करें।
फिर दूध, दही, घी, शहद, फल का रस और पंचामृत से अभिषेक करें।
प्रत्येक द्रव्य से अभिषेक करते समय महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
बेलपत्र, धतूरा, भांग, चंदन और पुष्प चढ़ाएं।
शिवलिंग के सामने बैठकर भगवान शिव की आराधना करें।
शिव तांडव स्तोत्र, शिव महामृत्युंजय मंत्र आदि का पाठ करें।
जल से भरे कलश से शिवलिंग पर अर्ध्य दें।
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रुद्राभिषेक करने के नियम क्या है?
शनि प्रदोष का दिन भगवान शिव और शनि देव दोनों को समर्पित होता है।
इस दिन रुद्राभिषेक करने के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि मन और तन शुद्ध हो।
इस दिन रुद्राभिषेक करने मंत्रों का उच्चारण जरूर करें।
इस दिन रुद्राभिषेक करने वाले जातक व्रत जरूर रखें।
इस दिन तामसिक भोजन करने से बचें।
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शनि प्रदोष व्रत का महत्व क्या है?
शनि ग्रह को न्याय का देवता माना जाता है और यदि कुंडली में शनि कमजोर या अशुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। शनि प्रदोष व्रत करने से शनि दोष का निवारण होता है और जीवन में आ रही बाधाएं दूर होती हैं। साथ ही व्यक्ति के सौभाग्य में भी वृद्धि होती है।
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Image Credit- HerZindagi
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