भगवान शिव को समर्पित सावन का पवित्र महीना शुरू हो चुका है और इसी के साथ भक्तों में उत्साह और भक्ति का संचार हो गया है। सावन का महीना जितना शिव आराधना के लिए खास है, उतना ही यह ज्योतिष दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी दौरान सूर्य देव का राशि परिवर्तन होता है, जिसे कर्क संक्रांति के नाम से जाना जाता है। आपको बता दें, कर्क संक्रांति वह समय है जब सूर्य देव मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश करते हैं। ज्योतिष के अनुसार, सूर्य को आत्मा, पिता, मान-सम्मान और ऊर्जा का कारक माना जाता है। वहीं, कर्क राशि का संबंध चंद्रमा से है, जो मन, माता और भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे में सूर्य का कर्क राशि में गोचर बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है।
सूर्य और शिव का संबंध भी गहरा है। सूर्य को भगवान शिव का ही एक रूप माना जाता है। पुराणों में सूर्य देव को शिव के नेत्रों से उत्पन्न बताया गया है। सावन में शिव की पूजा और कर्क संक्रांति पर सूर्य का राशि परिवर्तन, दोनों मिलकर एक अद्भुत संयोग बनाते हैं। इस दौरान की गई पूजा-अर्चना और दान-पुण्य का विशेष फल मिलता है। अब ऐसे में कर्क संक्रांति के दिन स्नान-दान का शुभ मुहूर्त क्या है और महत्व क्या है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
सावन महीने में कर्क संक्रांति कब है?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश करता है, तो इस घटना को कर्क संक्रांति कहा जाता है। इस दिन से दिन छोटे होने लगते हैं और रातें लंबी। आपको बता दें, कर्क संक्रांति 16 जुलाई को है। इस दिन सूर्यदेव शाम 05 बजकर 40 मिनट पर मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश करेंगे।
कर्क संक्रांति के दिन स्नान-दान का शुभ मुहूर्त क्या है?
सूर्य देव 16 जुलाई को कर्क राशि में गोचर करेंगे। इस दिन स्नान-ध्यान, पूजा, जप-तप के लिए शुभ समय सुबह 05 बजकर 40 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 40 मिनट तक है। वहीं, महा पुण्य काल दोपहर 03 बजकर 22 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 40 मिनट तक है। इस दौरान स्नान-ध्यान कर सूर्य देव की पूजा कर सकते हैं।
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 03 बजकर 54 से लेकर सुबह 04 बजकर 36 मिनट तक
प्रातः सन्ध्या- सुबह 04 बजकर 15 मिनट से लेकर से सुबह 05 बजकर 17 मिनट तक
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सावन महीने में कर्क संक्रांति का महत्व क्या है?
सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और इस दौरान पड़ने वाली कर्क संक्रांति का विशेष महत्व होता है। कर्क संक्रांति वह दिन होता है जब सूर्य मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश करते हैं। कर्क संक्रांति के साथ ही सूर्य दक्षिणायन में प्रवेश कर जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दक्षिणायन देवताओं की रात्रि मानी जाती है। इस अवधि में शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि वर्जित होते हैं। इसलिए आप पूजा-पाठ विधिवत रूप से कर सकते हैं, लेकिन धार्मिक अनुष्ठान करना वर्जित माना गया है।
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