सितंबर महीने की पहली एकादशी, जिसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं, इस साल 3 सितंबर को पड़ रही है। इस एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि यह भगवान विष्णु की चार महीने की योग निद्रा के दौरान करवट बदलने का प्रतीक है। यही कारण है कि इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इसे जलझूलनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस शुभ दिन पर भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह एकादशी भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लेकर आती है।
ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स के अनुसार, इस दिन पूजा का एक विशेष शुभ मुहूर्त है, जिसका पालन करना अत्यधिक फलदायी होता है। यह दिन भक्तों को न केवल आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है बल्कि उन्हें जीवन की समस्याओं से मुक्ति पाने में भी सहायता करता है। परिवर्तिनी एकादशी का व्रत और पूजा, जीवन में एक नई शुरुआत और सकारात्मक बदलाव लाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
परिवर्तिनी एकादशी 2025 कब है?
सितंबर की पहली एकादशी तिथि का आरंभ 2 सितंबर, मंगलवार के दिन रात 03 बजकर 53 मिनट पर होगा। वहीं, इसका समापन 4 सितंबर, गुरुवार को सुबह 04 बजकर 21 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 3 सितंबर को रखा जाएगा।
परिवर्तिनी एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त
एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके पूजा की तैयारी करनी चाहिए। सुबह के समय स्नान-दान और पूजा-पाठ कर सकते हैं। इसके अलावा, दोपहर को बनने वाले अभिजीत मुहूर्त में भी आप पूजा या शुभ कार्य कर सकते हैं।
इसके अलावा, परिवर्तिनी एकादशी यानी कि 3 सितंबर के दिन विजय मुहूर्त और गोधुली मुहूर्त का भी निर्माण हो रहा है। वहीं, ज्योतिष गणना के आधार पर आज के दिन पूरा समय स्वाति नक्षत्र का संयोग बना रहेगा जिसे बहुत लाभकारी माना जाता है।
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:30 बजे से सुबह 05:18 बजे तक
- पूजा मुहूर्त: सुबह 06:00 बजे से सुबह 07:30 बजे तक
- अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:00 बजे से दोपहर 12:49 बजे तक
- विजय मुहूर्त: दोपहर 02:26 बजे से दोपहर 03:15 बजे तक
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:23 बजे से शाम 06:47 बजे तक
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परिवर्तिनी एकादशी 2025 महत्व
परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखने से कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत होने लगते हैं। गुरु ग्रह को सुख, समृद्धि, ज्ञान, विवाह और संतान का कारक माना जाता है। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति के जीवन में इन सभी क्षेत्रों में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
यह व्रत व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देता है और उसे मानसिक शांति प्रदान करता है। इसके अलावा, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के पूर्व जन्मों के और वर्तमान जीवन के पापों का शमन होता है।
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