पापांकुशा एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है और यह भगवान विष्णु को समर्पित है। 'पापांकुशा' का अर्थ है पापों को नियंत्रित करने वाला अंकुश। माना जाता है कि इस व्रत को विधि-विधान से करने पर व्यक्ति के सभी संचित पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइए जानते हैं कि इस कब पड़ रही है अक्टूबर की पहली एकादशी और क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि एवं महत्व?
पापांकुशा एकादशी अश्विन माह के शुक्ल पक्ष में आती है, ऐसे में तिथि का आरंभ 02 अक्टूबर 2025, गुरुवार के दिन, शाम 07 बजकर 10 मिनट पर होगा। वहीं, इसका समापन 03 अक्टूबर 2025, शुक्रवार के दिन, शाम 06 बजकर 32 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, पापांकुशा एकादशी का व्रत 3 अक्टूबर को रखा जाएगा।
यह भी पढ़ें: तुलसी ही नहीं, भगवान विष्णु को चढ़ाएं उसकी मंजरी... मिलेंगे ये लाभ
पापांकुशा एकादशी के दिन यानी कि 3 अक्टूबर को भगवान विष्णु की पूजा का समय सुबह 11 बजकर 46 मिनट से शुरू होगा और दोपहर 12 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगा। इस मुहूर्त में भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और पुण्यों में वृद्धि होती है। साथ ही, भगवान विष्णु की असीम कृपा भी मिलती है।
एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें और हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करें। पूजा घर में भगवान विष्णु या श्री कृष्ण की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उन्हें पंचामृत से अभिषेक कराएं। भगवान को पीले रंग के फूल, विशेष रूप से गेंदे, अपराजिता और हरसिंगार के फूल अर्पित करें। तुलसी दल अवश्य चढ़ाएं। इसके बाद धूप, दीप, चंदन और नैवेद्य चढ़ाएं।
भगवान विष्णु के 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। पापांकुशा एकादशी की व्रत कथा पढ़ें या सुनें। संभव हो तो रात में जागरण करें और भजन-कीर्तन करते हुए भगवान विष्णु का ध्यान करें। अगले दिन द्वादशी तिथि को शुभ मुहूर्त में ब्राह्मणों को भोजन कराने और दान देने के बाद ही व्रत का पारण करें।
यह भी पढ़ें: अक्टूबर महीने में कब-कब पड़ेंगे एकादशी व्रत? यहां जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व समेत अन्य बातें
इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने वाले भक्त को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है और वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि लाता है और उसे उत्तम स्वास्थ्य तथा दीर्घायु का आशीर्वाद भी प्रदान करता है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से बिछड़े हुए लोग भी आपस में मिल जाते हैं और संबंधों में प्रेम और मधुरता बढ़ती है।
अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं और अपना फीडबैक भी शेयर कर सकते हैं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
image credit: herzindagi
यह विडियो भी देखें
Herzindagi video
हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, compliant_gro@jagrannewmedia.com पर हमसे संपर्क करें।