
30 दिसंबर 2025 को वृंदावन और पूरे ब्रज क्षेत्र में भक्ति का एक अद्भुत सैलाब उमड़ने वाला है क्योंकि इस दिन साल की सबसे महत्वपूर्ण 'पौष पुत्रदा एकादशी' का पावन पर्व मनाया जा रहा है। ब्रज धाम में एकादशी का महत्व वैसे भी बहुत अधिक होता है, लेकिन इस बार साल के अंत में पड़ने के कारण देश भर से श्रद्धालु साल की विदाई और नए साल का स्वागत बांके बिहारी के चरणों में करने पहुंच रहे हैं। मान्यता है कि इस विशेष दिन पवित्र यमुना में स्नान और ठाकुर जी के दर्शन से संतान सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हालांकि वृंदावन में इस तिथि पर जो होने वाला है जिसके कारण लोग वृंदावन पहुंच रहे हैं उसका कारण सिर्फ पौष पुत्रदा एकादशी नहीं है बल्कि इसके पीछे है वो द्वार जो साल में सिर्फ एक बार खुलता है और भाग्यशाली व्यक्ति ही उस द्वार को पार कर पाता है। वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि इस द्वार के खुलने पर भाग्योदय हो जाता है और व्यक्ति की हर इच्छा पूरी होती है एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि अपनी मनोकामनाएं लेकर गृहस्थ लोग और आध्यात्मिक ऊर्जा की तलाश में साधु-संत बड़ी संख्या में वृंदावन की ओर खिंचे चले आ रहे हैं जिससे पूरा ब्रज धाम भक्तिमय हो उठा है।
30 दिसंबर 2025 को वृंदावन के प्रसिद्ध श्री रंगनाथ जी मंदिर में 'वैकुंठ द्वार' खुलेगा। दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुसार, इस दिन को 'वैकुंठ एकादशी' के रूप में मनाया जाता है जो ब्रज के साथ-साथ पूरे भारत के श्रद्धालुओं के लिए एक अत्यंत दुर्लभ और पवित्र अवसर होता है।

मान्यता है कि वैकुंठ एकादशी के दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहते हैं। वृंदावन के रंगजी मंदिर में एक विशेष द्वार है जिसे साल में केवल एक बार इसी दिन खोला जाता है। इस द्वार को 'वैकुंठ द्वार' कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि जो भक्त इस द्वार से होकर गुजरते हैं और भगवान के दर्शन करते हैं उन्हें जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के पश्चात सीधे भगवान विष्णु के परमधाम यानी वैकुंठ में स्थान मिलता है। यह द्वार भक्तों के लिए मोक्ष का मार्ग माना जाता है।
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इस विशेष दिन के पीछे एक बहुत ही रोचक कथा है। प्राचीन काल में 'मुर' नामक एक अत्यंत शक्तिशाली असुर था, जिसने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। जब देवता भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे, तब भगवान विष्णु और असुर मुर के बीच लंबा युद्ध चला।
युद्ध के दौरान जब भगवान विश्राम करने के लिए एक गुफा में गए, तब असुर मुर ने उन पर हमला करना चाहा। तभी भगवान विष्णु के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई, जिन्होंने असुर मुर का वध कर दिया। भगवान ने प्रसन्न होकर उस शक्ति को 'एकादशी' नाम दिया।
चूंकि यह घटना पौष मास के शुक्ल पक्ष में हुई थी, इसलिए भगवान ने वरदान दिया कि जो भी इस दिन मेरा पूजन करेगा और वैकुंठ द्वार से होकर गुजरेगा उसके लिए मोक्ष के द्वार हमेशा के लिए खुल जाएंगे।

वृंदावन में इस दिन का नजारा अद्भुत होता है। उत्तर भारत में रंगजी मंदिर एकमात्र ऐसा प्रमुख स्थान है जहां दक्षिण भारतीय विधि से यह उत्सव मनाया जाता है। साधु-संतों का मानना है कि इस दिन ब्रज की रज में रहकर वैकुंठ द्वार के दर्शन करना करोड़ों यज्ञों के फल के समान है।
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लोग रात भर जागकर भजन-कीर्तन करते हैं और सुबह होने का इंतजार करते हैं ताकि उस पवित्र द्वार से निकलकर भगवान का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। इस बार यह पर्व साल के अंत में पड़ रहा है जिससे इसका महत्व और बढ़ गया है।
लोग अपने पुराने साल के कष्टों को भगवान के चरणों में त्यागने और नए साल की शुरुआत आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ करने के लिए वृंदावन पहुंच रहे हैं। वृंदावन की गलियां 'राधे-राधे' और 'गोविंद' के जयकारों से गूंज रही हैं।
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Image credit: herzindagi
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