Nautapa 2025: नौतपा में सूर्यदेव की आरती कब और किस नियम से करनी चाहिए?

हिंदू धर्म में नौतपा का आरंभ हो चुका है और इसका समापन 5 जून को होगा। इस दौरान सूर्यदेव की पूजा-अर्चना करने का विधान है। अब ऐसे मेम नौतपा में सूर्यदेव की आरती कब और किस समय करने से लाभ हो सकता है। इसके बारे में इस लेख में विस्तार से जानते हैं। 
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हिंदू धर्म में नौतपा का विशेष स्थान है। यह ज्येष्ठ मास की वह महत्वपूर्ण अवधि है जब सूर्यदेव रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करते हैं। इन नौ दिनों में सूर्य अपनी सबसे तीव्र ऊर्जा के साथ धरती पर अपना तेज बरसाते हैं, जिससे अत्यधिक गर्मी का अनुभव होता है। मान्यता है कि नौतपा के दौरान सूर्यदेव की उपासना करने से उनकी असीम कृपा प्राप्त होती है। सूर्य को समस्त ग्रहों का राजा माना गया है, और उनकी आराधना से जीवन में मान-सम्मान, ऊर्जा, तेज और सफलता की प्राप्ति होती है। इस अवधि में की गई सूर्य पूजा नकारात्मक प्रभावों से रक्षा करती है और जीवन में सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है। नौतपा में सूर्यदेव की आरती कब और किस नियम से करनी चाहिए, ताकि सर्वोत्तम फलों की प्राप्ति हो सके? इस संबंध में हमने ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानकारी ली है। उनके अनुसार, नौतपा के इन नौ दिनों में सूर्यदेव की उपासना विशेष फलदायी होती है, और सही विधि से की गई आरती आपकी मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकती है।

नौतपा में सूर्यदेव की आरती कब करें?

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सुबह 6 से 7 बजे के बीच, उगते सूर्य को अर्घ्य देना और उसके बाद आरती करना बहुत फलदायी होता है। इस समय सूर्य की किरणें कोमल होती हैं और उनका प्रभाव सकारात्मक माना जाता है।
8 बजे के समय भी सूर्यदेव को अर्घ्य देने से मान-सम्मान में वृद्धि होती है। इस समय अर्घ्य देने से मानसिक शांति मिलती है और कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है।

नौतपा में सूर्यदेव की आरती करने के नियम क्या हैं?

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नौतपा के दौरान हर सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
एक तांबे के लोटे में जल लें। इसमें लाल चंदन, रोली, अक्षत और लाल फूल मिलाएं।
सूर्य को अर्घ्य देते समय अपना मुख पूर्व दिशा की ओर रखें।
मंत्रों का जाप करने के बाद, धूप और दीप जलाकर सूर्यदेव की आरती करें। आप "ऊं जय सूर्य भगवान" आरती का पाठ कर सकते हैं।
आरती करते समय, पांच बत्ती वाले दीपक का उपयोग कर सकते हैं।
आरती के बाद अपने स्थान पर चार या सात बार परिक्रमा करें।

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Image Credit- HerZindagi

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