मां सिद्धिदात्री, मां दुर्गा का नौवां और अंतिम स्वरूप हैं। इनका रूप अत्यंत सौम्य और कल्याणकारी है। ये कमल पुष्प पर विराजमान रहती हैं और इनका वाहन सिंह है। इनके चार हाथ हैं, जिनमें चक्र, गदा, शंख और कमल धारण करती हैं। 'सिद्धिदात्री' नाम का अर्थ है 'सिद्धियों को देने वाली' यानी ऐसी देवी जो अपने भक्तों को हर तरह की आध्यात्मिक और लौकिक सफलताएं प्रदान करती हैं। यह स्वरूप बताता है कि सभी सिद्धियां और ज्ञान उन्हीं से प्राप्त होता है।
मां सिद्धिदात्री की पूजा का बहुत महान महत्व है। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना करने से भक्त को सभी प्रकार की सिद्धियां जैसे अणिमा, महिमा आदि आठ सिद्धियां प्राप्त होती हैं। ऐसा माना जाता है कि इनकी कृपा से भक्त को यश, बल, धन और मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्वयं भगवान शिव ने भी इनकी तपस्या करके सिद्धियां प्राप्त की थीं जिसके कारण उन्हें 'अर्धनारीश्वर' भी कहा गया। इनकी आराधना करने से भक्तों के सभी दुख, भय और रोग दूर होते हैं और जीवन में आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग खुलता है।
ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि कैसे करें शारदीय नवरात्रि की महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा, क्या है पूजन सामग्री आर कौन से मंत्रों का करें जाप।
मां सिद्धिदात्री की पूजा सामग्री का हर सामान सिद्धियों को पाने और शुभ फल देने का प्रतीक है। ये वस्तुएं पूजा में पवित्रता लाती हैं और देवी को अर्पित करने पर भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। खासकर सफेद या जामुनी रंग की वस्तुएं जैसे कमल और वस्त्र, ज्ञान और मोक्ष का द्वार खोलती हैं।
सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। घर के पूजा स्थान को गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें। इसके बाद, एक चौकी पर मां सिद्धिदात्री की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। हाथ में जल, फूल और चावल लेकर देवी मां का ध्यान करें और मन ही मन संकल्प लें कि आप पूरी श्रद्धा से मां सिद्धिदात्री की पूजा और हवन कर रहे हैं ताकि आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हों।
सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें, क्योंकि किसी भी पूजा में उनकी पूजा सबसे पहले की जाती है। फिर घट (कलश) की पूजा करें, जिसमें आपने नौ दिन से जल रखा है। इसके बाद, सभी देवी-देवताओं और नवग्रहों का आह्वान करें और उन्हें टीका लगाकर, फूल-चावल चढ़ाकर प्रणाम करें। यह चरण सुनिश्चित करता है कि पूजा में कोई बाधा न आए और सभी देवता प्रसन्न रहें।
अब मुख्य रूप से मां सिद्धिदात्री की पूजा शुरू करें। मां को रोली, कुमकुम और सिंदूर का टीका लगाएं। उन्हें कमल का फूल (अगर उपलब्ध हो) या कोई भी लाल रंग का फूल अर्पित करें। मां को श्रृंगार सामग्री (जैसे चूड़ी, बिंदी आदि) चढ़ाएं। इसके बाद, उनके मंत्रों का जाप करें। पूजा के दौरान धूप-दीप जलाएं और मां को नैवेद्य (भोग) के रूप में हलवा, पूड़ी और चना अर्पित करें। माना जाता है कि मां सिद्धिदात्री को ये चीजें बहुत प्रिय हैं।
नवमी के दिन हवन करना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करें और हवन सामग्री को देवी के मंत्रों के साथ अग्नि में अर्पित करें। जब सभी आहुतियां पूरी हो जाएं, तो नारियल या पान के बीड़े में हवन सामग्री, प्रसाद, लौंग, इलायची और घी भरकर पूर्णाहुति दें। पूर्णाहुति हवन की समाप्ति का प्रतीक है।
हवन के बाद कन्या पूजन करें। नौ कन्याओं (2 से 10 वर्ष की) और एक बालक (भैरव के रूप में) को आदर सहित बुलाकर उनके पैर धोएं। उन्हें टीका लगाकर, भोजन कराएं और अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा या उपहार देकर उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें। इसके बाद, मां दुर्गा की आरती करें। अंत में, हाथ जोड़कर मां से अपनी पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा मांगें और उनसे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके बाद ही व्रत का पारण किया जाता है।
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मां सिद्धिदात्री की पूजा में इस्तेमाल होने वाले मुख्य मंत्र उनके स्वरूप और शक्ति को दर्शाते हैं। उनकी उपासना के लिए सबसे सरल और प्रमुख मंत्र है 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नमः।' यह नवार्ण मंत्र का एक भाग है और इसे जपने से मां की कृपा तुरंत प्राप्त होती है।
इसके अलावा, मां का ध्यान करते हुए आप 'या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।' मंत्र का जाप भी कर सकते हैं। यह श्लोक देवी को प्रणाम करता है, जो सभी प्राणियों में सिद्धिदात्री के रूप में विराजमान हैं। इन मंत्रों का जाप रुद्राक्ष या कमल गट्टे की माला से करने पर विशेष फल मिलता है।
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