
हमारे देश में कई तरीकों को आजमाकर बुरी नजर को दूर रखने की कोशिश की जाती है जिसमें दरवाजे पर नींबू मिर्च लटकाया जाता है, तो कहीं मुख्य द्वार पर कुछ शुभ संकेतों जैसे स्वास्तिक का निशान। वहीं सबसे ज्यादा चलन में है दरवाजे पर बुरी नजर से बचाने वाले राक्षस की मूर्ति जिसे कीर्तिमुख कहा जाता है। अगर आप किसी मंदिर या पुराने घर के मुख्य द्वार को ध्यान से देखें, तो अक्सर वहां एक भयंकर मुखाकृति नजर आती है, इसे कीर्तिमुख कहा जाता है। इस आकृति को बुरी नजर से बचाने वाला देवता माना जाता है। मान्यता है कि जिस घर में यह मूर्ति मुख्य द्वार पर स्थापित की जाती है वहां की सभी नकारात्मक ऊर्जाएं दूर हो जाती हैं और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। अक्सर मन में एक सवाल यह भी आता है कि आखिर कीर्तिमुख की मूर्ति दरवाजे पर लगाने की यह परंपरा आखिर कहां से शुरू हुई और क्यों इसे बुरी नजर से बचाने का देवता कहा जाता है। आइए इसके बारे में ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें विस्तार से।
कीर्तिमुख एक ऐसे देवता माने जाते हैं जिन्होंने भगवान शिव के आदेश पर खुद को ही निगल लिया था। आज भी उनका चेहरा किसी भी बुरी नजर से बचाता है और उन्हें घर के मुख्य द्वार पर ही लगाया जाता है। इसकी पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में कीर्तिमुख नामक एक राक्षस था जिसे बुरी नजर से बचाने का वरदान प्राप्त था।

ऐसा कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव जब ध्यान में लीन थे उसी समय अपनी शक्तियों के घमंड में चूर होकर राहु ने महादेव के सिर पर विराजमान चंद्रमा पर ग्रहण लगा दिया। ये देखकर भगवान शिव काफी क्रोधित हो गए और उन्होंने क्रोध में अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। त्रिनेत्र खोलने से कीर्तिमुख की उत्पत्ति हुई। ऐसा कहा जाता है कि कीर्तिमुख की उत्पत्ति राहु का अंत करने के लिए हुई थी।
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कीर्तिमुख का स्वरुप अत्यंत भयावह था और उसका मुख सिंह के समान था और उसकी आंखों से आग निकल रही थी। भगवान शिव ने राहु से क्रोध की वजह से कीर्तिमुख को राहु को मारने का आदेश दिया। उस समय राहु को अपनी गलती का एहसास हो गया और उसने भगवान शिव से क्षमा प्रार्थना की। राहु की क्षमा प्रार्थना पर शिव जी ने उसे माफ कर दिया। उस समय कीर्तिमुख भी अत्यंत क्रोध में था और उसने शिव जी से कहा कि उसे भूख लगी है और उसकी उत्पत्ति किसी को खाने के लिए ही हुई है, तो वह अब किसे खाए। उस समय भगवान शिव ने कीर्तिमुख को स्वयं को ही खाने का आदेश दे दिया और कीर्तिमुख ने क्रोध में स्वयं को ही निगल लिया।

जिस समय कीर्तिमुख स्वयं को ही निगल रहा था उस समय सिर्फ उसका मुख ही बचा। तब भगवान शिव ने कीर्तिमुख को रोका और उसे अपना मुख खाने से मना किया। कीर्तिमुख से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे अपने प्रिय गणों में शामिल कर लिया और उसे वरदान दिया कि उसका मुख जिस स्थान पर विराजमान होगा वहां किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का वास नहीं होगा। तभी से कीर्तिमुख बुरी नजर से बचाने का देवता बन गया और जिस स्थान पर भी उनका चेहरा लगाया जाता है वहां कभी भी नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होता है। आज भी जिस घर या दुकान पर कीर्तिमुख की मूर्ति लगाई जाती है वहां से नकारात्मक ऊर्जा कोसों दूर रहती है।
तो इस तरह से एक राक्षस बुरी नजर से बचाने के देवता के रूप में सामने आया और उसे लोग नकारात्मक ऊर्जा से बचाने के लिए मुख्य द्वार पर लगाते हैं।
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