आज से शुरू हुआ जगन्नाथ रथ यात्रा, 10 दिनों में निभाई जाएंगी ये सात अनोखी रस्में, आरंभ से लेकर समापन तक जानें सबकुछ डिटेल में...

भव्य जगन्नाथ रथ यात्रा का शुभारंभ आज यानी कि 27 जून 2025 से होने जा रहा है और ये 8 जुलाई तक चलेगा। इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ अलग-अलग रथ पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर के लिए प्रस्थान करते हैं। अब ऐसे में इस दौरान 10 दिनों तक अलग-अलग रस्में भी होंगी। आइए इस लेख में विस्तार से जगन्नाथ रथ यात्रा के बारे में डिटेल में जानते हैं। 
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ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का पवित्र धाम, हर साल एक अनोखा और अद्भुत उत्सव का गवाह बनता है जो देश-विदेश के भक्तों को अपनी ओर खींचता है। यह उत्सव है जगत के नाथ की रथ यात्रा
कल्पना कीजिए, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा अपने विशाल रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलेंगे। लाखों श्रद्धालु इस अलौकिक पल का हिस्सा बनने के लिए दूर-दूर से आते हैं। यह यात्रा ढोल-नगाड़ों की गूंज और 'जय जगन्नाथ' के जयघोष से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठता है। यह केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और संस्कृति का एक जीता-जागता संगम है।

यह पावन यात्रा कल से शुरू होने वाली है और इसकी तैयारियां पूरे जोरों पर हैं। मंदिर से लेकर पुरी की सड़कों तक, हर जगह उत्साह और भक्ति का माहौल छाया हुआ है। इस साल की रथ यात्रा में कई ऐसी अनोखी रस्में और परंपराएं निभाई जाएंगी जो इसे और भी खास बनाती हैं। क्या आप जानते हैं कि रथ यात्रा का इतिहास सदियों पुराना है और इसके पीछे कई दिलचस्प कथाएं भी जुड़ी हैं? कैसे भगवान अपने भक्तों से मिलने के लिए मंदिर से बाहर निकलते हैं और कैसे 10 दिनों तक विभिन्न अनुष्ठानों के साथ यह यात्रा अपने चरम पर पहुंचती है? आइए इस लेख में विस्तार से ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

जगन्नाथ रथ यात्रा निकलने का शुभ मुहूर्त और पूजा का समय

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जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। इस साल 27 जून शुक्रवार को मनाई जाएगी।

  • द्वितीया तिथि प्रारम्भ- 26 जून 2025, दोपहर 01 बजकर 24 मिनट से
  • द्वितीया तिथि समाप्त-27 जून 2025, सुबह 11 बजकर 19 मिनट पर
  • उदया तिथि के अनुसार रथयात्रा का दिन- 27 जून 2025, शुक्रवार के दिन

जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान किये जाने वाले अनुष्ठान

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  • मंगल आरती- सुबह 6:00 बजे
  • मेलाम अनुष्ठान- सुबह 6:10 बजे
  • टाड़ापलगी और रोष होम- सुबह 6:30 बजे
  • अभिषेक - सुबह 7:00 बजे
  • सूर्य पूजा- सुबह 7:10 बजे
  • द्वारपाल पूजा और श्रृंगार- सुबह 7:30 बजे
  • गोपाल बल्लभ और सकाल धूपा (खिचड़ी भोग)- सुबह 8:00 - 9:00 बजे
  • रथ प्रतिष्ठा- सुबह 9:00 बजे
  • मंगलार्पण- सुबह 9:15 बजे
  • पहंडी देवताओं की रथ तक यात्रा- सुबह 9:30 - दोपहर 12:30 बजे
  • दूसरा श्रृंगार का समय - दोपहर 1:30 - 2:30 बजे
  • गजपति महाराज द्वारा छेरा पन्हारा (रथों की झाड़ू लगाना)- दोपहर 2 बजकर 30 मिनट से लेकर 3 बजकर 30 मिनट तक
  • घोड़े और सारथी की स्थापना, फिर रथ खींचने की शुरुआत- शाम 4:00 बजे

जगन्नाथ रथ यात्रा की 7 अनोखी रस्में क्या है?

स्नान यात्रा - रथ यात्रा से पहले भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को 108 घड़ों के सुगंधित और पवित्र जल से स्नान कराया जाता है। इस स्नान के बाद माना जाता है कि भगवान बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें अनासर घर यानी कि आइसोलेशन में रखा जाता है। इस दौरान भक्त सीधे उनके दर्शन नहीं कर पाते हैं।

जगन्नाथ भगवान की फुल्लरी तेल मालिश- भगवान के बीमार पड़ने के बाद 15 दिनों तक उन्हें अनासर में रखा जाता है। इस दौरान उनकी विशेष रूप से देखभाल की जाती है और उन्हें आयुर्वेदिक तेलों जैसे फुल्लरी तेल से मालिश की जाती है ताकि वे स्वस्थ हो सकें।

छेरा पहरा- रथ यात्रा के दिन सबसे महत्वपूर्ण रस्मों में से एक है 'छेरा पहरा'। इसमें पुरी के गजपति महाराजा जो भगवान के प्रथम सेवक माने जाते हैं। वह स्वयं एक सेवक की तरह वेश धारण कर, सोने की झाड़ू से रथ के सामने की भूमि को साफ करते हैं। वे चंदन जल और फूलों से रास्ते को पवित्र करते हैं। यह रस्म दर्शाती है कि भगवान के सामने राजा और रंक, सभी समान हैं।

पहांडी- यह वह रस्म है जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को उनके मंदिर से रथों तक लाया जाता है। देवताओं को जुलूस के रूप में ले जाया जाता है, जिसे पहांडी कहा जाता है।

रथ खींचना- रथ यात्रा का सबसे मुख्य भाग है भगवान के विशाल रथों को भक्तों द्वारा खींचना। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष, बलभद्र का तालध्वज और सुभद्रा का देवलन कहलाता है।
हेरा पंचमी- यह रथ यात्रा के दौरान निभाई जाने वाली एक अनूठी रस्म है। रथ यात्रा के पांचवें दिन, देवी लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ से मिलने गुंडिचा मंदिर आती हैं, क्योंकि वे उन्हें अपने साथ नहीं ले गए थे।

बहुदा यात्रा और सुना बेशा- आठवें दिन, भगवान अपने मौसी के घर गुंडिचा मंदिर से वापस अपने मुख्य मंदिर श्रीमंदिर लौटते हैं, जिसे 'बहुदा यात्रा'कहते हैं। अगले दिन वापसी यात्रा के बाद, भगवानों को सुनहरे आभूषणों और वस्त्रों से सजाया जाता है, जिसे सुना बेशा कहा जाता है।

क्या है जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास?

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा का त्योहार 12वीं से 16वीं शताब्दी के बीच शुरू हुआ था। सबसे प्रचलित मान्यताओं में से एक यह है कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा वर्ष में एक बार अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। वे लगभग 9 दिनों तक वहीं विश्राम करते हैं और फिर वापस अपने मुख्य मंदिर जगन्नाथ मंदिर लौटते हैं, जिसे बहुदा यात्रा कहा जाता है। गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है और गुंडिचा देवी उनकी मौसी हैं।

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गुजरात के अहमदाबाद में रथ यात्रा कब मनाई जाएगी?

गुजरात के अहमदाबाद में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 27 जून 2025 शुक्रवार को मनाई जाएगी। यह अहमदाबाद में भगवान जगन्नाथ की 148वीं रथयात्रा होगी।

अगले 5 साल में जगन्नाथ रथ यात्रा कब होगी?

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अगले 5 साल में जगन्नाथ रथ यात्रा कब लगेगी। इसके बारे में जान लें।
27 जून 2025 2025, शुक्रवार

  • 16 जुलाई 2026, गुरुवार
  • 5 जुलाई 2027, सोमवार
  • 24 जून 2028, शनिवार
  • 13 जुलाई 2029, शुक्रवार

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Image Credit- HerZindagi

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FAQ

  • रथ यात्रा की कहानी क्या है?

    इस त्योहार के पीछे किंवदंती यह है कि एक बार देवी सुभद्रा ने गुंडिचा में अपनी मौसी के घर जाने की इच्छा व्यक्त की। उसकी इच्छा पूरी करने हेतु भगवान जगन्नाथ और भगवान बलभद्र ने रथ पर उसके साथ जाने का फैसला किया। अतः इस घटना की याद में देवताओं को इसी तरह यात्रा पर ले जाकर प्रत्येक वर्ष त्योहार के रूप में मनाया जाता है।
  • जगन्नाथ जी की रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है?

    मंदिर के पुजारी विकास पौराणिक बताते हैं "1675 में जगन्नाथ पुरी से उनके पूर्वज मूर्तियां विग्रह लेकर आये थे. तब पहली बार रथ यात्रा सिंहासन पर निकाली गई थी. हिन्दू धर्म के ग्रंथों में लिखा है कि भगवान शहरवासियों का हाल जानने भ्रमण पर निकलते थे।