इस साल शादी के बाद मेरा पहला सावन है, लेकिन ससुराल की भागदौड़ में मानों उलझ सी गई हूं। घर के बड़ों को समय से खाना-पीना देना और छोटों की पढ़ाई से समय ही नहीं मिल पा रहा है। यही नहीं ऑफिस की टेंशन अलग है और छुट्टी नहीं मिल रही है। ऐसे में क्या मेरा पहले सावन में अपने मायके जाना जरूरी है? क्या मैं शादी के बाद का पहला सावन अपने ससुराल में नहीं बिता सकती हूं? अगर आपकी भी नई-नई शादी हुई है और आप भी इसी उलझन से गुजर रही हैं, तो हम आपको बताते हैं कि ज्योतिष एक्सपर्ट पंडित इसके बारे में क्या कहते हैं। हमने इस सवाल का सही जवाब जानने के लिए ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ त्रिपाठी से बात की। उन्होंने बताया कि हमारे देश में सावन का महीना एक पवित्र, भावनात्मक और उत्सवमयी समय होता है।
हर नवविवाहिता के जीवन में यह महीना खास महत्व रखता है। विशेष रूप से शादी के बाद पहला सावन मायके में मनाने की परंपरा बहुत पुरानी है। लेकिन आज के समय में सवाल उठता है कि क्या वास्तव में इस पूरे महीने में मायके जाना जरूरी है? आइए जानें यहां इसके बारे में विस्तार से-
सावन में नवविवाहिता के मायके जाने का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म के अनुसार सावन का पूरा महीना भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है। ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने के लिए सावन के महीने में ही कठोर तप किया था। इसी वजह से आज भी महिलाएं इस पूरे महीने में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और उनसे अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मांगती हैं। यही नहीं इस दौरान यदि आप व्रत-उपवास भी करती हैं तो आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं। कुंवारी लड़कियां तो इस दौरान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए उपवास करती ही हैं और विवाहित स्त्रियां भी व्रत करती हैं, जिससे उनका वैवाहिक जीवन शांति से आगे बढ़ सके। ऐसे में शास्त्रों में बताया गया है कि शादी के बाद पहली बार सावन में मायके जाकर शिव पूजा करने से स्त्री को देवी पार्वती का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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सावन में नवविवाहित का मायके जाने का आध्यात्मिक महत्व
पंडित सौरभ त्रिपाठी जी बताते हैं कि सावन का यह पावन समय आत्मिक शुद्धि और ऊर्जा को जागृत करने का होता है। ऐसे में शादी के बाद नई जिम्मेदारियां और रिश्ते स्त्री के जीवन में बहुत कुछ बदल सकते हैं। सावन की पूरी अवधि के दौरान मायके जाकर कुछ समय बिताना किसी भी स्त्री को मानसिक और आत्मिक रूप से संतुलन प्रदान कर सकता है। मायका केवल एक स्थान नहीं है बल्कि स्त्री की पहचान भी माना जाता है। यह किसी भी स्त्री का मूल और भावनात्मक ऊर्जा का केंद्र होता है। वहां जाकर वह खुद से फिर जुड़ पाती है, इसी वजह से सावन के महीने में नवविवाहित को मायके जाने की सलाह दी जाती है।
सावन में नवविवाहित का मायके जाने का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
पंडित सौरभ त्रिपाठी जी बताते हैं कि सावन में नवविवाहिता का मायके जाना न सिर्फ ज्योतिष की दृष्टि से अच्छा माना जाता है बल्कि ये कई वैज्ञानिक कारणों से भी अच्छा होता है। ऐसा कहा जाता है कि शादी के बाद का समय एक मानसिक बदलाव का दौर होता है। नई जगह, नए लोग और एक नया वातावरण इन सभी के बीच अक्सर कोई भी विवाहित स्त्री तनाव या अकेलेपन का अनुभव करती है। मायके जाना उसे मानसिक विश्राम के साथ भावनात्मक सहयोग देता है। इसके साथ ही सावन का मौसम भी प्रकृति से जुड़ने का समय होता है।
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क्या सावन के महीने में मायके जाना जरूरी है?
पंडित जी बताते हैं कि यदि आपकी परिस्थितियां अनुकूल हों, तो मायके जाकर सावन मनाना एक अच्छा विकल्प माना जाता है। हालांकि अगर आप किसी कारण से मायके नहीं जा पा रही हैं तो ससुराल में भी अपना पहला सावन मन सकती हैं और सावन के सभी पर्वों को अच्छी तरह से मना सकती हैं। ससुराल में मायके जैसा माहौल बनाने के लिए आपको सावन में कुछ आसान नियमों का पालन करने की सलाह दी जाती है। यदि आप कुछ आसान नियमों का पालन करती हैं तो आपको इसके अच्छे फल मिल सकते हैं। जैसे आपको सावन में सोमवार का व्रत करना चाहिए और शिव-पार्वती का पूजन विधि-विधान के साथ करना चाहिए। आप सावन में हरियाली तीज का पर्व धूम-धाम से मना सकती हैं और उस दिन अपने हाथों को मेहंदी से सजा सकती हैं। मायके नहीं जा पा रही हैं तब भी आपका मायके वालों से भावनात्मक जुड़ाव बनाए रखना जरूरी है। परिवार के सभी लोगों के लिए मन में प्रेम, श्रद्धा और भक्ति का भाव रखें।
शादी के बाद पहला सावन केवल एक सामाजिक परंपरा नहीं है बल्कि स्त्री के जीवन में सौंदर्य, श्रद्धा, और आत्म-शक्ति का पर्व होता है। इस दौरान मायके जाना जरूरी नहीं, लेकिन परिवार से जुड़ना, शिव की भक्ति करना और स्नेहपूर्ण वातावरण में सावन का पूरा महीना मनाना सबसे अधिक आवश्यक है।
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