ब्रज के 40 दिवसीय होली महापर्व में गोकुल की छड़ीमार होली भी शामिल है जो आज यानी कि 11 मार्च को गोकुल में मनाई जा रही है। गोकुल की छड़ीमार होली कुछ-कुछ बरसाने की लठमार होली की ही तरह होती है लेकिन बस अंतर ये होता है कि जहां एक ओर पहले गोकुल के हुरियारे बरसाने की हुरियारिनों के साथ होली खेलने बरसाना जाते हैं तो वहीं, छड़ीमार होली के दिन बरसाने के हुरियारे गोकुल की हुरियारिनों के साथ होली मनाने गोकुल जाते हैं। ऐसे में आइये जानते हैं कि आखिर कैसे हुई छड़ीमार होली की शुरुआत और क्यों आखिर इसका ये नाम पड़ा।
कैसे खेली जाती है गोकुल की छड़ीमार होली?
गोकुल में आज छड़ीमार होली मनाई जा रही है। दोपहर के 12 बज रहे हैं यानी कि इस समय अभी नंद भवन से बाल श्री कृष्ण का डोला निकाले जाने की तैयारी चल रही होंगी। असल में छड़ीमार होली का आयोजन मुरलीघाट पर किया जाता है। इस दौरान नंद भवन से मुरली घाट तक फूलों में सजाकर ठाकुर जी की यात्रा निकली जाती है।
ठाकुर जी की इस निकलने वाली यात्रा को डोला कहा जाता है। इस डोले में श्री कृष्ण के बाल स्वरूप के जितने भी ठाकुर जी हैं उनकी प्रतिमाओं को बैठाया जाता है और फिर गोकुल के मुख्य बाजारों में उन्हें होली खिलाते हुए मुरलीधर घाट तक ले जाते हैं। इस यात्रा के दौरान आर्ग में दर्शन करने वाले लोगों पर टेसू के फूल और उनसे बने रंगों को उड़ाया जाता है।
यह भी पढ़ें:Holi 2025 Laddu Gopal Puja: होली के दिन लड्डू गोपाल को कौन से रंग का गुलाल लगाएं?
इसके अलावा, गेंदे के फूल और उसकी पत्तियों से तैयार किया गया गुलाल भी भक्तों पर फेंका जाता है। डोले में मौजूद गांव के सखा पारंपरिक वेशभूषा को धारण करते हैं, फिर इसके बाद ब्रज के लोकगीतों पर नृत्य करते हुए मुरली घाट तक जाते हैं। पूरे नगर की परिक्रमा करने के बाद डोला मुरलीधर घाट पहुंचता है, जहां एक विशाल मंच तैयार किया जाता है।
इस मंच पर ठाकुर जी विराजमान होते हैं। इसके बाद करीब एक घंटे तक छड़ीमार होली महोत्सव का आनंद उठाया जाता है, जिसमें केवल गुलाल ही गुलाल उड़ता नजर आता है। फिर आरती होती है और ठाकुर जी का डोला वापस मंदिर की ओर प्रस्थान करता है। मंदिर में वैदिक विधि-विधान से मंत्रोच्चारण के साथ ठाकुर जी को स्नान कराकर विराजित किया जाता है।
यह भी पढ़ें:Kinnar Holi 2025: किन्नरों में कैसे खेली जाती है होली? जानें क्या कुछ होता है खास
इस प्रकार होली महोत्सव का समापन होता है। इस समय, गोकुल में ठाकुर जी का डोला निकलने की शुरुआत हो चुकी होगी। पौराणिक कथा के अनुसार, कान्हा बचपन में नटखट थे और गोपियों को परेशान करते थे, जिससे वे उन्हें छड़ी से डराने के लिए उनके पीछे भागती थीं। इसी परंपरा के कारण आज छड़ीमार होली खेली जाती है, जिसमें लट्ठ के बजाय छड़ी का प्रयोग होता है।
अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं और अपना फीडबैक भी शेयर कर सकते हैं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
image credit: herzindagi
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों