हर घर में अलग-अलग तरह से त्योहार मनाए जाते हैं। उन्हें मनाने का तरीका भी सबका अलग-अलग होता है। लेकिन मन में आस्था का भाव एक ही होता है। हर कोई भगवान से यही प्रार्थना करता है कि उसके घर में सुख, शांति और समृद्धि हमेशा रहे। इसी सुख और शांति के लिए गाज माता का व्रत रखा जाता है। यह व्रत भाद्रपद में रखा जाता है, जिसे घर की महिलाएं करती हैं। इस दिन वो माता के लिए भोग का प्रसाद बनाती हैं, कथा कहती हैं और अपने घर की सुख-शांति की प्रार्थना करती हैं। चलिए आपको बताते हैं क्या होता है गाज माता का व्रत और कौन सी कथा इस व्रत के लिए कही जाती है।
गाज माता का व्रत कैसे किया जाता है
गाज माता का व्रत शुरु करने से पहले हाथों में महिलाएं एक-दूसरे के कलावा बांधती हैं। जिसे गाज या गरज बांधना भी कहते हैं। इसके बाद महिलाएं बिना कथा और पूजन किए कुछ नहीं खाती हैं। फिर वो माता के लिए भोग का प्रसाद बनाती हैं। किसी के यहां भोग में मीठी पूरी बनती हैं, तो कोई मीठे पराठे बनाते हैं। इस प्रसाद को भगवान के सामने रख दिया जाता है। इसके बाद सभी व्रती सोलह श्रृंगार करके तैयार होती हैं और पूजा शुरू करती हैं।
गाज माता के व्रत कहानी पढ़ने से पहले करें ये काम
गाज माता की कहानी पढ़ने से पहले जिन महिलाओं ने व्रत किया होता है, उन्हें हाथ में बंधे कलावे को खोलना होता है। इसे मुट्ठी में रखकर गाज का प्रसाद को सात बार तोड़कर हाथों में रखती हैं। इसके बाद धूप खास को रखती हैं। अब इसकी व्रत कथा को शुरू किया जाता है।
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गाज माता के व्रत की कथा
एक गांव में जमींदार रहता था। जब भादो का महीना आया तो जमींदार की पत्नी ने अपनी दासी से कहा कि हम गरज खोलेंगे जाओ तुम ब्राह्मण के यहां से जाकर गरज ले आओ। पहले समय में ब्राह्मण के यहां से ही गरज आया करते थे। रानी की बात मानकर दासी ब्राह्मण के घर जाकर गरज ले आई। फिर दासी और रानी ने गरज को बांधे। इसके बाद कथा कही। फिर पूजन करने के बाद गरज को खोले। इतने में रानी ने देखा की जमींदार साहब घर वापस आ रहे हैं। इसके कारण वो सभी गरज रानी ने नाथ के नीचे छिपा दिए। लेकिन उनकी खूशबू उनके पति को आ रही थी।
उन्होंने हर जगह देखा की यह खुशबू कहां से आ रही है। लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला। इसके बाद वो नाद के पास पहुंचे तो गरज की खूशबू तेज होने लगी। उन्होंने जैसे ही नाद हटाया तो उसके नीचे से गरज मिले। उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा की यह क्या है और इसे कौन खाएगा, तो उन्होंने बताया कि यह गरज हैं, जो गाज माता के व्रत में बनाएं जाते हैं। इसे घर की महिलाएं खाती हैं। फिर इसपर जमींदार ने कहा की यह तो बहुत मोटी रोटियां हैं इसे कैसे कोई खास सकता है। ऐसा कहकर उन्होंने वो सारे गरज गाय और कुत्ते को खिला दिए। इसके बाद उनके घर में निर्धनता का वास हो गया। एक दिन जमींदार ने कहा तुम यहां रहो। हमें सभी जानते हैं तो कोई कार्य नहीं देगा। हम परदेस जाएंगे। इसपर रानी और दासी ने भी कहां हम भी जाएंगे। वह तीनों लोग अपना राज्य छोड़कर निकल गए।
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रास्ते में जमींदार को एक मछलियों से भरा तालाब मिला। उन्होंने पत्नी से कहा की आप मछलियों को भूनकर रखना मैं नहाकर आता हूं। पत्नी ने हां कर दी। जैसे ही उनकी पत्नी ने कढ़ाई में मछली डाली वो कूदकर पानी में चली गईं। जब जमींदार नहाकर आए उन्होंने पत्नी से खाना मांगा। पत्नी ने कहा सारी मछलियां मैंने खा ली है। आपके लिए कुछ नहीं बचा। फिर वो आगे चलने लगे। उन्हें तीतर मिले। जमींदार ने तीतर पकड़ने और उन्हें अपनी पत्नी को पकाने के लिए कहा। तीतर पकने से पहले उड़ गए। फिर वो सभी लोग भूखे रहे। आगे उन्हें अपना दोस्त मिला, वो उन्हें घर ले आए।
दोस्त के घर जाकर देखा तो खूंटी हार निगल रही थी। इसपर जमींदार ने अपनी पत्नी से कहा की यहां से चलते हैं, वरना हमारे ऊपर चोरी का इल्जाम लग जाएगा, वो खाना खाकर वहां से रात के समय निकल गए। इसके बाद वो अपनी बहन के राज्य में पहुंचे। बहन ने मंत्रियों से पूछा भाई किस अवस्था में आ रहे हैं। उन्होंने कहा वो पैदल और बेहद बुरी अवस्था में आ रहे हैं। बहन ने कहा कि भाई को कुम्हार के कमरे में रुकने को बोला और घर से खाने के साथ छिपाकर हीरे जवाहरात भेजे जो कोयला हो गए। जमींदार उन्हें वहीं गाड़ कर आगे चल दिया।
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वह एक राज्य में पहुंचकर घर-घर जाकर काम करने लगते हैं। फिर एक साल बाद भादो का महीना आता है। जमींदार की पत्नी गाज माता का व्रत रख गरज खोलती है। उनके दिन बदल जाते हैं। तब जमींदार अपनी पत्नी से कहता है कि देखो जब दिन बुरे थे, तो सारे संकट हमारे साथ चले आ रहे थे। अब दिन अच्छे हुए हैं, तो हमारे सारे संकट कट गए हैं।
इसलिए हर साल भादो के महीने में गाज माता का व्रत किया जाता है, ताकि घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहे।
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