आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को देवशयनी या हरिशयनी एकादशी के नामा से जाना जाता है। इस साल देवशयनी एकादशी 17 जुलाई, दिन बुधवार को पड़ रही है। मान्यता है कि इस एकादशी के बाद चातुर्मास लग जाता है और भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवता सो जाते हैं इसलिए इस दिन श्री हरि की विशेष आराधना करनी चाहिए। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि देवशयनी एकादशी के दिन जितना लाभकारी विष्णु भगवान की पूजा करना एवं इस दिन व्रत रखना है, उतना ही आवश्यक है देवशयनी एकादशी की व्रत कथा पढ़ना क्योंकि तभी इस व्रत का पूर्ण फल मिलता है।
देवशयनी एकादशी 2024 की पहली व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवी लक्ष्मी की बहनें उनसे मिलने वैकुण्ठ धाम आईं। जब उन्होंने वहां भगवान विष्णु को देखा तो उनके सौंदर्य को देख सभी बहनों के मन में उन्हें पति रूप में पाने की इच्छा जागी।
इसी इच्छा को पूरी करने के लिए मां लक्ष्मी की बहनों ने घोर तप किया और छल से भगवान विष्णु से यह वरदान मांगा कि वह हमेशा के लिए उनके साथ पाताल में निवास करें। भगवान विष्णु वरदान देने के लिए बाध्य हो गए।
इसके बाद भगवान विष्णु की स्मरण शक्ति चली गई और वह चार महीनों तक सृष्टि का संचालन छोड़ पाताल में मां लक्ष्मी की बहनों के साथ रहे। इस दौरान भगवान शिव ने सृष्टि का संचालन एवं भरण-पोषण किया।
जब भगवान विष्णु पाताल में निद्रा के लिए गए तब अन्य देवी-देवता भी उनके साथ चले गए थे। इसके बाद चार माह निकल गए और जब भगवान विष्णु के लौटने की कोई आस न दिखी तब मां लक्ष्मी ने भगवान शिव से प्रार्थना की।
भगवान शिव श्री हरि को पाताल लेने पहुंचे और भगवान विष्णु एवं शिव जी के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। इसके बाद भगवान शिव ने अपनी तापोशक्ति से भगवान विष्णु को सब कुछ याद दिलाया। श्री हरि को सब कुछ स्मरण हुआ।
इसके बाद श्री हरि के साथ सभी देवता निद्रा से जागकर अपने-अपने स्थान पर पुनः लौट आए। जिस दिन भगवान विष्णु पाताल में निवास के लिए उस दिन आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी थी। इसलिए उसका नाम देवशयनी एकादशी पड़ा।
वहीं, जिस दिन सभी देवताओं के साथ वह पुनः अपने धाम पहुंचे उस दिन भी एकादशी थी जिसे देवउठनी एकादशी के नाम से जाना गया। साथ ही, ये चार माहीने चातुर्मास कहलाए जिनमें शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
देवशयनी एकादशी 2024 की दूसरी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, मान्धाता नाम के सूर्यवंशी राजा थे जो बहुत सत्यवादी, तपस्वी और शक्तिशाली थे। राजा बहुत धर्म परायण थे। एक बार राजा के राज्य में अकाल पड़ गया। राजा को इस समस्या से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा था।
तब राजा ने निर्णय लिया कि वह अपने विशिष्ट व्यक्तियों को साथ लेकर वन में तपस्या एवं भगवान की पूजा के लिए जाएंगे। वन में जब राजा पहुंचें तो उन्हें ब्रह्मा जी के मानस पुत्र अंगिरा ऋषि के दर्शन हुए। राजा ने अंगिरा ऋषि को अपने राज्य के बारे में बताया।
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राजा ने अंगिरा ऋषि को राज्य में पड़े अकाल से भी अवगत कराया। तब ऋषि ने राजा को आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के दिन पूर्ण श्रद्धा से भगवान विष्णु की पूजा करने और व्रत रखने के लिए कहा। राजा ने ठीक ऐसा ही किया।
राजा श्राद्ध भाव से देवशयनी एकादशी का व्रत 3 साल तक लगातार रखते रहे और एकादशी के दिन अन्न-जल ग्रहण न करने का भी संकल्प लिया। इसके बाद भगवान विष्णु ने राजा को दर्शन दिए और उनके राज्य से अकाल दूर कर खुशहाली प्रदान की।
आप भी इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से देवशयनी एकादशी की व्रत कथा के बारे में जान सकते हैं। अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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