गर्भावस्था जीवन का सबसे पवित्र और कोमल समय माना जाता है, जब एक नए जीवन का आगमन होने वाला होता है। ऐसे में, यदि किसी गर्भवती महिला का निधन हो जाए, तो यह परिवार के लिए अत्यंत दुखद और संवेदनशील क्षण होता है। ऐसी स्थिति में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को लेकर कई तरह के सवाल उठते हैं, क्योंकि इसमें मां के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु भी जुड़ा होता है। भारतीय समाज में, विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुसार, गर्भवती महिला के अंतिम संस्कार की अपनी विशेष परंपराएं और विधियां रही हैं। यह प्रक्रिया सामान्य अंतिम संस्कार से थोड़ी भिन्न होती है और इसका उद्देश्य मृतका को सम्मानपूर्वक विदाई देने के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु के कल्याण और उसकी आत्मा की शांति सुनिश्चित करना भी होता है। शास्त्रों और लोक परंपराओं में ऐसी स्थितियों के लिए कुछ विशेष नियम और अनुष्ठान निर्धारित किए गए हैं, जिनका पालन करना महत्वपूर्ण माना जाता है। ये नियम इस संवेदनशील स्थिति में धार्मिक शुद्धि और भावी जीवन के प्रति सम्मान को दर्शाते हैं। तो आइए ज्योतिषाचार्य अरविंद त्रिपाठी जी से भारतीय मान्यताओं और विभिन्न परंपराओं के अनुसार, गर्भवती महिला के अंतिम संस्कार के बारे में जान लेते हैं और इससे जुड़ी प्रमुख विधियों के बारे में भी जानेंगे।
गर्भवती महिला का अंतिम संस्कार कैसे होता है?
गर्भवती महिला का निधन अत्यंत दुखद और संवेदनशील स्थिति होती है। भारतीय संस्कृति और विभिन्न धर्मों में ऐसी स्थिति में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को लेकर कुछ विशेष परंपराएं और विधियां रही हैं, जो सामान्य अंतिम संस्कार से थोड़ी भिन्न हो सकती हैं। इसका मुख्य कारण गर्भस्थ शिशु की स्थिति और उससे जुड़ी मान्यताएं हैं।
हिंदू धर्म में सामान्य मान्यताएं और विधियां
हिंदू धर्म में, गर्भवती महिला के अंतिम संस्कार को लेकर मुख्य रूप से दो प्रमुख मान्यताएं और उनके अनुसार विधियां प्रचलित हैं।
गर्भावस्था के साथ अंतिम संस्कार
यह सबसे आम परंपरा है। यदि गर्भस्थ शिशु अभी भी गर्भ में ही हो और जीवित होने के कोई लक्षण न हों, तो महिला का अंतिम संस्कार शिशु के साथ ही किया जाता है। सामान्यतः हिंदू धर्म में दाह संस्कार की परंपरा है। गर्भवती महिला का भी इसी विधि से अंतिम संस्कार किया जाता है। शव को पवित्र स्नान कराकर, नए वस्त्र पहनाकर और अंतिम श्रृंगार करके अर्थी पर रखा जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, ऐसी महिला के मुख पर हल्दी या गेरू लगाकर या विशेष वस्त्र पहनाकर अंतिम संस्कार किया जाता है। इस दौरान मंत्रोच्चार और प्रार्थनाएं विशेष रूप से गर्भस्थ शिशु की आत्मा की शांति के लिए भी की जाती हैं।
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शिशु को गर्भ से निकालकर अलग से संस्कार
कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में, यदि गर्भस्थ शिशु काफी बड़ा हो चुका हो और उसकी उपस्थिति स्पष्ट हो, तो कुछ परंपराओं में शिशु को गर्भ से निकालकर अलग से संस्कार करने का भी प्रचलन रहा है। यदि शिशु को गर्भ से निकाला जाता है, तो उसे आमतौर पर दफनाया जाता है, क्योंकि शिशु को अविकसित या नवजात माना जाता है। इसके बाद मां का दाह संस्कार सामान्य विधि से किया जाता है। यह विधि उतनी आम नहीं है और यह क्षेत्रीय परंपराओं और परिवार की मान्यताओं पर अधिक निर्भर करती है। आधुनिक समय में चिकित्सीय जटिलताओं के कारण भी ऐसा किया जा सकता है।
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प्रमुख बातें और मान्यताएं
कई संस्कृतियों में गर्भवती महिला के निधन को अकाल मृत्यु माना जाता है। ऐसे में, मृतक की आत्मा की शांति और परिवार पर किसी भी नकारात्मक प्रभाव को रोकने के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। अंतिम संस्कार का मुख्य उद्देश्य मां और शिशु दोनों की आत्मा को शांति प्रदान करना और परिवार के लिए शुद्धि की प्रक्रिया पूरी करना होता है। विभिन्न क्षेत्रों, जातियों और परिवारों में अंतिम संस्कार की विधियों में थोड़ी भिन्नताएं हो सकती हैं। यह महत्वपूर्ण है कि परिवार अपनी परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार विधि का पालन करना जरूरी होता है।
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