दिवाली के पर्व को बस कुछ दिन बचे हैं। धनतेरस के दिन से दिवाली के पर्व की शुरूआत हो जाती है। इसलिए धनतेरस का दिन काफी खास माना जाता है। यह पर्व धन की प्राप्ति और धन में वृद्धि हो इसके लिए किया जाता है। धनतेरस का पर्व धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है।
असल में धनत्रयोदशी के दिन देवी लक्ष्मी की और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है। इस वर्ष धनत्रयोदशी का पर्व 10 नवंबर 2023 मनाया जाएगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर धनतेरस का पर्व क्यों मनाया जाता है। आखिर इस पर्व को मनाने के पीछे क्या वजह है।
आज के इस आर्टिकल में हम ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी जानेंगे कि आखिर धनतेरस के पर्व को मनाने की शुरूआत कैसे हुई।
धनतेरस के पर्व की कैसे हुई शुरुआत
- पंडित अरविंद त्रिपाठी कहते हैं कि धनत्रयोदशी की शुरुआत समुद्र मंथन से शुरू हुई थी। इसका वर्णन आप श्रीमद्भागवत पुराण, महाभारत, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में पढ़ सकते हैं।
- इसमें आपको इसका वर्णन मिलेगा कि देवताओं और राक्षसों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान धन्वंतरि हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।(मां लक्ष्मी की पूजा के नियम)
जानें क्या है समुद्र मंथन?
एक बार की बात है, जब इन्द्र देव को ऋषि दुर्वासा ने पारिजात फूलों की एक माला भेट की थी, लेकिन इन्द्र देव उस समय अपने घमंड में चूर थे। उन्होंने माला का तिरस्कार करते हुए, उसे अपने हाथी ऐरावत के गले में पहना दिया। दरअसल, इन्द्र देव का मानना था कि आखिर तोहफे में कोई माला कैसे दे सकता है। इस फूलो की माला की उनके जीवन में कोई अहमियत नहीं।
- जब ऋषि दुर्वासा ने अपने भेट का तिरस्कार होते हुए देखा, तो वह क्रोधित हो गए । उन्होंने क्रोध में आकर इन्द्र देव को श्राप दे दिया।
- ऋषि दुर्वासा ने कहा कि हे इन्द्र जिस धन समृद्धि के बल पर तुझे इतना अभिमान है और जिस अभिमान में तूने मेरे द्वारा दिए गए भेंट का अनादर किया है, आज से तू उस लक्ष्मी से विहीन हो जाएगा।
- ऋषि के श्राप से माता लक्ष्मी स्वर्ग लोक को छोड़ कर अदृश्य हो गई और इंद्रदेव तीनों लोकों से श्री-हीन हो हो गए।
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- देवराज इन्द्र जिन्हें देवताओं का राजा माना जाता था, वह सभी देवताओं की शक्तियों हीन हो गए और उनका सारा धन वैभव भी लुप्त हो गया।
- जब ये खबर दानवों और दैत्यों को पता चली, तो उन सभी ने मिलकर स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया। अब इन्द्रदेव के पास कुछ नहीं था, इसलिए देवता दानवों और दैत्यों से पराजित हो गए और उन्हे स्वर्ग लोक से निकाल फेंका गया।(भगवान को भोग क्यों लगाते हैं)
- दानवों के अत्याचारों से निराश होकर इन्द्रदेव और देवतगण सहायता के लिए ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि इस विषय पर तो केवल भगवान नारायण ही आपको सहायता कर सकते हैं।
- ब्रह्मा जी के आज्ञा अनुसार इन्द्र देव सभी देवताओं के साथ भगवान नारायण के शरण में पहुंचे और उनसे हाथ जोड़ कर विनती करने लगे। तब भगवान नारायण ने देवताओं को एक योजना बनाने के लिए कहा।
उन्होंने कहा कि तुम असुरों से मित्रता कर क्षीर सागर का मंथन करने की बात कहो। सागर में कई दिव्य पदार्थों के साथ साथ अमृत भी छिपा हुआ है और जो भी उस अमृत का पान करेगा। वह हमेशा के लिए अमर हो जाएगा। फिर तुम असुरों का सर्वनाश कर वापस स्वर्ग लोग हासिल कर लोगे।
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भगवान विष्णु ने क्या दिया आदेश
- भगवान विष्णु के आदेशानुसार इन्द्र देव ने वैसा ही किया और समुद्र मंथन से अमृत निकलने की बात असुरराज बलि को बताया।
- अजेय अमर होने की बात पर बलि को लालच आ गया और उसने इन्द्र की बात मान ली।
- अब समुद्र मंथन के लिए समुद्र में मंदराचल पर्वत को स्थापित करना था, इसलिए भगवान विष्णु ने एक कछुए का रूप लेकर पर्वत को अपनी पीठ पर उठा लिया, और वासुकी नाग को रस्सी के रूप में उपयोग किया गया।
- अब देवतागण और असुर दोनों ने मिलकर समुद्र का मंथन शुरू किया।
- आखिरकार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इस तरह समुद्र का मंथन करने से फिर से देवलोक में माता लक्ष्मी का वास हुआ।
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