चैत्र मास में हर साल नवरात्रि पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष यह पावन पर्व 30 मार्च से 6 अप्रैल तक मनाया जाएगा। नवरात्रि के पहले दिन मिट्टी के बर्तन में जवारे बोने का विधान होता है, जिसे पूरे नौ दिनों तक पूजा के साथ सींचा जाता है। नवरात्रि समाप्त होने के बाद दशमी तिथि को इन जवारों का नदी या तालाब में विसर्जन किया जाता है, जिससे शुभ फल की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से कि इस वर्ष चैत्र नवरात्रि का कलश विसर्जन कब करें, इसकी सही विधि, मंत्र और नियम क्या हैं, जिससे माता रानी की कृपा प्राप्त हो और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहे।
पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि इस वर्ष 6 अप्रैल, रविवार की शाम 07:23 मिनट से प्रारंभ होकर 7 अप्रैल, सोमवार की रात 08:00 बजे तक रहेगी। चूंकि दशमी तिथि का सूर्योदय 7 अप्रैल, सोमवार को होगा, इसलिए कलश और जवारों का विसर्जन इसी दिन किया जाएगा। इस दिन विधिपूर्वक विसर्जन करने से देवी मां की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इस वर्ष 7 अप्रैल को कलश विसर्जन के लिए चार शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। पहला मुहूर्त सुबह 09:23 से 10:56 तक रहेगा, जबकि दूसरा मुहूर्त दोपहर 12:04 से 12:53 तक है। तीसरा शुभ समय दोपहर 02:01 से 03:34 तक रहेगा, और अंतिम अर्थात चौथा मुहूर्त शाम 05:07 से 06:40 तक रहेगा। इन विशेष मुहूर्तों में कलश और जवारों का विसर्जन करना अत्यंत शुभ माना जाता है, जिससे देवी मां की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
7 अप्रैल, सोमवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद श्रद्धा और भक्ति भाव से व्रत-पूजा का संकल्प लें। शुभ मुहूर्त में देवी मां की पूजा करें। सबसे पहले कुमकुम से तिलक करें, फिर फूलों की माला अर्पित करें और श्रद्धा पूर्वक शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करें। इसके बाद अबीर, गुलाल, चावल, फूल आदि एक-एक करके देवी मां को अर्पित करें।
इसके बाद 'रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे। पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।।' और 'महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी। आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोस्तु ते।।' मंत्र का जाप करें. देवी की पूजा के बाद जवारों की भी चावल, फूल और कुमकुम से पूजा करें। फिर जवारों को सिर पर रखकर शोभायात्रा के रूप में किसी नदी या तालाब तक ले जाएं।
विसर्जन से पहले 'गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि। पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।' मंत्र का उच्चारण करें. अंत में जवारे और कलश का विसर्जन करने के बाद देवी से घर की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें। इस विधिपूर्वक विसर्जन से जीवन की हर तरह की परेशानियां दूर हो सकती हैं और देवी मां की कृपा बनी रहती है। साथ ही, शुभता का घर और जीवन में आगमन होता है।
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नवरात्रि समाप्त होने के बाद जब भी कलश हटाएं, तो उसमें रखे जल का पूरे घर में छिड़काव करें और शेष जल को तुलसी के पौधे में अर्पित करें। यह उपाय शुभ माना जाता है और इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है। यदि मिट्टी का कलश उपयोग किया गया है, तो उसे जल में प्रवाहित कर दें और इस मिट्टी के कलश को दोबारा किसी पूजा में इस्तेमाल न करें।
कलश के ऊपर रखा नारियल नवरात्रि समाप्ति के बाद जल में प्रवाहित करें या फिर लाल कपड़े में बांधकर अपने पूजा घर में रखें। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। ध्यान रखें कि इस नारियल को प्रसाद के रूप में ग्रहण न करें, अन्यथा मां दुर्गा की कृपा कम हो सकती है। पूजन के दौरान कलश में एक सिक्का भी डाला जाता है।
नवरात्रि समाप्त होने के बाद इस सिक्के को लाल कपड़े में बांधकर घर या दुकान की तिजोरी में रखें। यह उपाय आर्थिक उन्नति के लिए बहुत लाभदायक माना जाता है। इसके अलावा, अक्षत का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि समाप्ति के बाद कलश हटाने के बाद अक्षत को लाल कपड़े में बांधकर घर के मुख्य द्वार पर टांग दें। इससे बुरी नजर और नकारात्मक शक्तियों से बचाव होता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
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