करवा चौथ के व्रत का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। यह व्रत मुख्य रूप से अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है जिसमें विवाहित महिलाएं माता पार्वती और भगवान शिव के पूरे परिवार की पूजा करती हैं। धार्मिक कथाओं के अनुसार, स्वयं भगवान कृष्ण ने ही द्रौपदी को इस व्रत का महत्व बताया था।
वहीं, ज्योतिषीय दृष्टि से यह व्रत चंद्रमा की पूजा पर केंद्रित होता है जो मन, प्रेम, शांति और वैवाहिक सुख का कारक माना जाता है। चंद्रमा को अर्घ्य देने से पति-पत्नी के रिश्ते में मधुरता आती है और जीवन में मानसिक शांति बनी रहती है। करवा चौथ का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है क्योंकि इस व्रत के नियम बहुत कड़े होते हैं। इसी कड़ी में आज हम वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से जानेंगे कि क्या करवा चौत का व्रत तब भी रखा जा सकता है जब घर में किसी की मृत्यु हो जाए?
घर में किसी की मृत्यु हो जाती है, तो करवा चौथ का व्रत रखने या पूजा करने को लेकर कुछ विशेष नियम और मान्यताएं हैं जो मुख्य रूप से 'सूतक' की अवधि से संबंधित हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, घर में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर कुछ दिनों के लिए सूतक काल शुरू हो जाता है। यह सूतक काल आमतौर पर मृत्यु से लेकर तेरहवीं तक रहता है।
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सूतक काल के दौरान घर में औपचारिक रूप से पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान या किसी भी शुभ कार्य को करना वर्जित माना जाता है। इसलिए, यही नियम करवा चौथ पर लागू होता है।
अगर करवा चौथ का व्रत सूतक काल के बीच में आता है तो करवा माता की मूर्ति या फोटो की पूजा, करवा फेरना और कथा कहना या सुनना जैसी क्रियाएं नहीं की जाती हैं।
हालांकि, व्रत को पूरी तरह से छोड़ने के बजाय महिलाएं इसे मानसिक रूप से जारी रख सकती हैं। व्रत का संकल्प लिया गया है इसलिए आप निर्जला उपवास कर सकती हैं।
हां, मगर पूजा के सभी बाहरी कर्मकांडों से बचें। आप दूर बैठकर या मन में करवा माता का ध्यान कर सकती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना कर सकती हैं।
चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जा सकता है, लेकिन यह भी सादगी से किया जाता है और किसी प्रकार का भारी श्रृंगार या उत्सव नहीं मनाया जाता।
अगर यह आपका पहला करवा चौथ है और सूतक काल चल रहा है, तो इस वर्ष व्रत की शुरुआत नहीं की जाती उसे अगले वर्ष के लिए टाल दिया जाता है।
करवा चौथ का व्रत अखंड सौभाग्य से जुड़ा है और इसे अत्यंत पवित्रता के साथ किया जाता है। सूतक की स्थिति में पूर्ण पवित्रता भंग मानी जाती है इसलिए पूजा के बाहरी कर्मकांडों को टाल देना ही उचित होता है।
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ज्योतिष और धर्म दोनों में यह माना जाता है कि व्रत का फल आपके मन के भाव पर निर्भर करता है। अगर आप दुख की स्थिति में हैं तो मानसिक रूप से व्रत जारी रखना ही पर्याप्त है।
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