चातुर्मास हिंदू धर्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण चार महीने की अवधि है जो देवशयनी एकादशी से शुरू होकर देवउठनी एकादशी तक चलता है। इन चार महीनों में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं इसलिए इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं। चातुर्मास का मुख्य महत्व तपस्या, साधना और आत्म-चिंतन में निहित है। इस अवधि में लोग सात्विक जीवन जीते हैं, तामसिक भोजन से परहेज करते हुए सात्विक भोजन करते हैं और दान-पुण्य एवं धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि चातुर्मास के दौरान आप ऐसी बहुत सी चीजें खाते हैं जिन्हें आप सात्विक समझते हैं मगर चातुर्मास में उन चीजों का सेवन वर्जित माना गया है। आइये जानते हैं इस बारे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से।
चातुर्मास में क्या नहीं खाना चाहिए?
चातुर्मास के दौरान हरि पत्तेदार सब्जियां नहीं खानी चाहिए। यूं तो यह सब्जियां सात्विक आहार में आती हैं, लेकिन बारिश के कारण इनमें छोटे-छोटे कीड़े पनपने लगते हैं। ऐसे में इन कीड़ों को यह तो आप मार देते हैं या फिर अनजाने में खा जाते हैं। इससे चातुर्मास में जीव हत्या का पाप लगता है और आपके पुण्य नष्ट हो जाते हैं।
चातुर्मास के दौरान बैंगन भी नहीं खाना चाहिए। शास्त्रों में बताया गया है कि बैंगन में बीज होते हैं जो मनुष्य जीव के प्रतीक माने जाते हैं। ऐसे में इन चार महीनों की अवधि में बैंगन खाना मनुष्य के मांस खाने के समान होता है और इस कारण से चातुर्मास के दौरान किये गए आपके पुण्य कर्म पाप कर्मों में बदल जाते हैं और दुष्प्रभाव पड़ता है।
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चातुर्मास के दौरान दही या दूध का सेवन भी नहीं करना चाहिए। इसके पीछे का कारण यह है कि चातुर्मास में एक महीना सावन का होता है जो भगवान शिव को प्रिय है। ऐसे में इस माह में भगवान शिव को दूध, दही, शहद आदि चढ़ाया जाता है तो जो चीजें शिवलिंग पर चढ़ती हैं उन्हें चातुर्मास औ विशेषकर सावन में नहीं खाना चाहिए।
चातुर्मास के दौरान मूली भी नहीं खानी चाहिए। असल में मूली को इस माह में मनुष्य की हड्डियों के बराबर माना गया है। ऐसे में इन चार महीनों के दौरान मूली खाने से बचना चहिये क्योंकि यह सात्विक भोजन भी तामसिक प्रभाव डालता है। ऐसा बी कहते हैं इन चार महीनों में मूली खाने से शारीरिक बल तेजी से गिरने लगता है और दोष उत्पन्न होते हैं।
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