नवरात्रि के नौ दिन खास होते हैं। इन दिनों में माता रानी के नौ रूपों की पूजा होती है। ऐसे में सातवें दिन मां कालरात्रि को पूजा की जाती है। मां कालरात्रि को महाशक्ति भी कहते हैं। कहा जाता है कि अगर आप मां कालरात्रि की पूजा में आप व्रत कथा का वर्णन करते हैं, कहते हैं कि उनकी कथा को करने से अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है। साथ ही जीवन के सारे डर कम होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि मां कालरात्रि के अवतरण की कथा दैत्य शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज के अत्याचारों से जुड़ी है, जिसका वर्णन देवी महात्म्य और देवी भागवत पुराण में मिलता है। आइए विस्तार से आर्टिकल में कथा को बताते हैं।
प्राचीन काल में शुंभ और निशुंभ नामक दो महाशक्तिशाली दैत्यों ने अपने बल से तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया था। उन्होंने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और उनके सभी अधिकार छीन लिए। जब सभी देवता उनकी क्रूरता से त्रस्त हो गए, तो वे अपनी व्यथा लेकर भगवान शिव और माता पार्वती के पास पहुंचे। देवताओं के कष्ट को दूर करने के लिए भगवान शिव ने माता पार्वती ने उनके दुखों का निवारण करने का निश्चय किया और अपने तेज से मां दुर्गा का तेजस्वी अवतार लिया। मां दुर्गा ने दैत्यों को युद्ध के लिए ललकारा। शुंभ और निशुंभ ने अपनी विशाल सेना को युद्ध के लिए भेजा, जिसमें रक्तबीज नामक एक महाभयंकर सेनापति भी शामिल था। रक्तबीज को ब्रह्मा जी से एक अद्भुत और घातक वरदान प्राप्त था। वरदान यह था कि उसके शरीर से रक्त की एक भी बूंद यदि धरती पर गिरेगी, तो उस बूंद से तुरंत उसके जैसा ही एक और शक्तिशाली दैत्य उत्पन्न हो जाएगा। इस वरदान ने उसे लगभग अमर बना दिया था।
जब मां दुर्गा ने उस दैत्य पर प्रहार किया, तो उसके शरीर से रक्त की धारा बह निकली और जैसे ही वह रक्त धरती पर गिरा, हजारों की संख्या में उसी क्षण नए रक्तबीज उत्पन्न हो गए। रणभूमि देखते ही देखते अनगिनत राक्षसों से भर गई। मां दुर्गा और अन्य देवियाँ जैसे-जैसे उसका संहार करती गईं, वैसे-वैसे रक्तबीज की संख्या बढ़ती चली गई, जिससे देवताओं और देवियों की सेना में भय और चिंता फैल गई।
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जब मां दुर्गा ने देखा कि सामान्य तरीके से इस दैत्य का विनाश असंभव है, तब उन्होंने अपनी योगमाया और तेज से एक अत्यंत प्रचंड, विकराल और भयावह रूप प्रकट किया। इसी विकराल स्वरूप को मां कालरात्रि के नाम से जाना गया। मां कालरात्रि का रंग घने अंधकार-सा काला था और उनके नेत्रों से अग्नि की ज्वाला निकल रही थी। उनका यह रूप मृत्यु के काल को भी भयभीत करने वाला था। मां दुर्गा ने कालरात्रि को आदेश दिया कि वह तुरंत युद्ध भूमि में जाएं और जब वह स्वयं रक्तबीज पर प्रहार करें, तो मां कालरात्रि उसके रक्त की एक भी बूंद को धरती पर गिरने न दें, बल्कि उसे अपने मुख में भर लें। साथ ही, युद्ध में पहले से उत्पन्न हुए रक्तबीज दैत्यों को भी वह अपना आहार बना लें।
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आदेश मिलते ही, मां कालरात्रि ने भयानक गर्जना करते हुए रक्तबीज की सेना पर आक्रमण कर दिया। उधर, जैसे ही मां दुर्गा ने रक्तबीज पर अपने अस्त्रों से प्रहार किया और उसके शरीर से रक्त बहना शुरू हुआ, मां कालरात्रि ने तुरंत अपना विशाल मुख खोलकर उस रक्त की धारा को पी लिया। उन्होंने रक्त की एक भी बूंद को धरती पर गिरने नहीं दिया। इससे नए दैत्यों का उत्पन्न होना बंद हो गया। साथ ही, मां कालरात्रि ने रणभूमि में पहले से मौजूद हजारों रक्तबीज दैत्यों को भी अपने मुख में भरकर उनका संहार कर दिया। रक्तहीन होने के बाद, अंतिम रक्तबीज का वध संभव हो सका और उसका आतंक समाप्त हुआ।
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Image Credit- Freepik/ Herzindagi
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