नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के जिस स्वरूप की पूजा की जाती है, वे मां कात्यायनी हैं। उन्हें शक्ति और वीरता का प्रतीक माना जाता है। मां कात्यायनी की आपको जरूर पढ़नी चाहिए। इससे आपको भी वीरता और शक्ति का प्रतीक माना जाएगा। इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है।
मां कात्यायनी की पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उन्हीं के वंश में कात्य नामक ऋषि हुए और उनके गोत्र में महर्षि कात्यायन का जन्म हुआ। महर्षि कात्यायन अत्यंत विद्वान, महान तपस्वी और परम भक्त थे। उनकी प्रबल इच्छा थी कि मां भगवती स्वयं उनके घर पुत्री में जन्मी। इस मनोकामना को लेकर महर्षि कात्यायन ने कई वर्षों तक भगवती पराम्बा की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या इतनी कठिन थी कि देवी भगवती उनकी भक्ति और लगन से अत्यंत प्रसन्न हुईं। जब मां ने उन्हें दर्शन दिए, तो महर्षि ने अपनी इच्छा व्यक्त की। भक्तवत्सल देवी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और उन्हें वचन दिया कि उचित समय आने पर वह उनके घर पुत्री रूप में जन्म लेंगी और उनके कुल को अपने जन्म से गौरवान्वित करेंगी।
जिस समय महर्षि कात्यायन तपस्या कर रहे थे और देवी के वचन का समय आ रहा था, उसी समय पृथ्वी लोक से लेकर स्वर्ग लोक तक महिषासुर नामक एक बलवान दैत्य का आतंक फैल चुका था। महिषासुर ने अपनी क्रूरता और बल से देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। दरअसल, महिषासुर को ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि उसे कोई पुरुष या देवता नहीं मार सकेगा। इस वरदान के अहंकार में वह अत्यंत मदोन्मत्त हो गया था और तीनों लोकों में हाहाकार मचा रहा था। देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया गया और वे सभी अपनी रक्षा के लिए सहायता मांगते हुए ब्रह्मा, विष्णु और महेश (त्रिदेव) के पास पहुंचे।
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देवताओं की दयनीय स्थिति देखकर त्रिदेव अत्यंत क्रोधित हुए। उनके और सभी देवताओं के भीतर से एक अद्भुत तेज बाहर निकला। यह तेज इतना प्रचंड और प्रकाशमय था कि उससे संपूर्ण ब्रह्मांड आलोकित हो उठा। यह तेज धीरे-धीरे एकत्र हुआ और एक अत्यंत भव्य, तेजस्वी तथा दिव्य स्त्री शक्ति के रूप में परिवर्तित हो गया। यह स्वरूप साक्षात आदि शक्ति मां दुर्गा का था, जो अब मां कात्यायनी के रूप में प्रकट होने वाली थीं।
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