आखिर क्यों माता दुर्गा की पूजा में नहीं चढ़ाई जाती है दूर्वा घास

सनातन धर्म में माता दुर्गा की पूजा का विशेष महत्व है और उनका पूजन विधि-विधान से किया जाता है। वहीं माता के पूजन में कुछ सामग्रियां अर्पित की जाती हैं जिससे उनकी कृपा बनी रहती है।
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आमतौर पर इसका इस्तेमाल गणपति को प्रसन्न करने में किया जाता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति गणपति पूजन के दौरान गणपति को दूर्वा घास अर्पित करता है उसके जीवन की समस्याएं दूर होती हैं और सदैव आशीर्वाद बना रहता है।

वहीं जब बात आती है माता दुर्गा के पूजन की तो ये घास उनके पूजन में किसी भी रूप में शामिल न करने की सलाह दी जाती है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें कि आखिर क्यों माता के पूजन में नहीं चढ़ाई जाती है दूर्वा घास।

हिंदू पूजा में दूर्वा घास का महत्व

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दूर्वा घास को हिंदू अनुष्ठानों में, विशेषकर भगवान गणेश की पूजा में अत्यधिक शुभ माना जाता है। यह घास पवित्रता, उर्वरता और नवीकरण का प्रतीक मानी जाती है और ऐसा भी माना जाता है कि इसमें नकारात्मक ऊर्जा और बाधाओं को दूर करने की शक्ति होती है।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान गणेश को दूर्वा घास चढ़ाने से स्वास्थ्य, दीर्घायु और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। यह प्रथा प्राचीन परंपराओं में गहराई से निहित है और भक्तों द्वारा व्यापक रूप से अपनाई जाती है। इसी वजह से गणपति का पूजन करते समय इस घर को भेंट के रूप में अर्पित किया जाता है।

दूर्वा घास के ज्योतिषीय संबंध

हिंदू अनुष्ठानों में ज्योतिष एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जहां प्रत्येक भेंट को कुछ ग्रहों की ऊर्जा और ब्रह्मांडीय कंपन से जुड़ा माना जाता है। दूर्वा घास, विशेष रूप से, मंगल ग्रह से संबंधित होती है।

मंगल अपनी उग्र, आक्रामक और मर्दाना ऊर्जा के लिए जाना जाता है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। यह ऊर्जा भगवान गणेश की विघ्नहर्ता, बाधाओं को दूर करने वाली भूमिका के साथ अच्छी तरह से मेल खाती है, जिससे दुर्वा घास उनके लिए एक उपयुक्त प्रसाद मानी जाती है।

वहीं मान्यता यह है कि माता दुर्गा जो कि गणपति की माता पार्वती का ही एक स्वरुप हैं, उन्हें दूर्वा चढ़ाने की मनाही होती है। ऐसा करने से माता रुष्ट हो सकती हैं और पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता है।

माता दुर्गा को दूर्वा चढ़ाने से ऊर्जाएं असंगत होती हैं

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माता दुर्गा, शक्ति की देवी मानी जाती हैं और उनका स्वरूप मां का होता है जो सृजन, पालन और संहार की शक्ति को दर्शाता है। उनकी पूजा में जिन सामग्रियों का उपयोग किया जाता है, वे उनकी दिव्य स्त्री शक्ति और उनके संरक्षणात्मक स्वरूप को दर्शाते हैं।

दूर्वा घास मंगल ग्रह की ऊर्जा से जुड़ी है, जो उग्र और पुरुषत्व से युक्त है। यह ऊर्जा माता दुर्गा की सौम्यता और मातृत्व के विपरीत मानी जाती है। इसलिए, माता दुर्गा की पूजा में दूर्वा घास चढ़ाने से उर्जा का संतुलन बिगड़ सकता है और पूजा का प्रभाव भी कम हो सकता है। इसी वजह से माता दुर्गा को दूर्वा चढ़ाने से मना किया जाता है।

माता दुर्गा को दूर्वा न चढ़ाना पारंपरिक और धार्मिक मान्यता है

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हिंदू धर्म में विभिन्न देवी-देवताओं को अर्पित की जाने वाली सामग्रियों के लिए पारंपरिक नियम बनाए गए हैं। ये नियम प्राचीन शास्त्रों और परंपराओं पर आधारित होते हैं। माता दुर्गा की पूजा में विशेष रूप से लाल रंग के फूल जैसे कि लाल गुड़हलचढ़ाने का विशेष महत्व होता है, जो उनकी उग्रता और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा, हल्दी, कुमकुम, नारियल और अन्य मीठे फल माता को अर्पित किए जाते हैं, जो उनके सौम्य स्वरूप को दर्शाते हैं।

अगर हम पौराणिक कथाओं की बात करें तब भी वहां माता दुर्गा की पूजा में दूर्वा घास का कोई जिक्र नहीं मिलता है। इसका एक मुख्य कारण यह है कि माता दुर्गा कोई कोई भी ऐसी चीज अर्पित नहीं की जाती है जो मंगल ग्रह की उग्र ऊर्जा से मेल खाती हो।

पूजा में प्रतीकात्मकता और भाव का महत्व

हिंदू धर्म में पूजा के दौरान अर्पित की जाने वाली सामग्री का प्रतीकात्मक महत्व होता है। प्रत्येक वस्तु देवी-देवता की विशेषताओं और भक्त की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है। माता दुर्गा के सामने अर्पित की जाने वाली सामग्री का उद्देश्य उनके संरक्षण, शक्ति और कृपा को प्राप्त करना होता है। दूर्वा घास का संबंध गणेश जी की पूजा से है, जो माता दुर्गा की शक्ति के साथ मेल नहीं खाती। माता दुर्गा की पूजा में उन सामग्रियों का उपयोग करना चाहिए, जो उनकी दिव्यता और स्त्री शक्ति के साथ सामंजस्य रखती हों।

इन्हीं कारणों से माता दुर्गा की पूजा में दूर्वा घास नहीं चढ़ाई जाती है, जबकि यह गणपति को अत्यंत प्रिय है। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।

Images:Freepik.com

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