भगवान जगन्नाथ की लीला अपरंपार है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, उन्हें भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है और वे अपनी अद्भुत लीलाओं और अनोखे स्वरूपों के लिए विख्यात हैं। उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर उनका प्रमुख धाम है, जहां हर साल होने वाली रथ यात्रा विश्वभर में प्रसिद्ध है। आज हम बात कर रहे हैं भगवान जगन्नाथ की एक ऐसी लीला के बारे में, जो बेहद रोचक और विस्मयकारी है। वह है- उनका गजानन वेश धारण करना। गजानन वेश में भगवान जगन्नाथ हाथी के मुख वाले रूप में दर्शन देते हैं, जो भगवान गणेश से काफी मिलता-जुलता है। इसके पीछे एक बेहद दिलचस्प पौराणिक कथा छिपी हुई है, जो उनकी भक्तवत्सलता और अलौकिक शक्ति को दर्शाती है। अक्सर लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि आखिर भगवान जगन्नाथ ने ऐसा अद्भुत और अलग रूप कब और क्यों धारण किया था? तो आज हम इसी सवाल का जवाब ज्योतिषाचार्य अरविंद त्रिपाठी जी से जानेंगे। आइए जानते हैं इस अद्भुत लीला और उसके पीछे की पौराणिक कहानी के बारे में...
कब धारण किया था भगवान जगन्नाथ ने गजानन वेश?
भगवान जगन्नाथ का गजानन वेश या गजवेष हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन धारण कराया जाता है। यह दिन स्नान पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को स्नान मंडप में लाया जाता है और 108 घड़ों के सुगंधित जल से उनका भव्य स्नान कराया जाता है। यह स्नान इतना विशाल होता है कि इसके बाद भगवान बीमार पड़ जाते हैं, जिसे 'अनासार काल' कहा जाता है। इसी स्नान पूर्णिमा के दिन, भगवान गजानन वेश में नजर आते हैं।
क्यों धारण किया था भगवान जगन्नाथ ने गजानन वेश?
भगवान जगन्नाथ द्वारा गजानन वेश धारण करने के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक प्रमुख कथा इस प्रकार है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ के एक परम भक्त थे, जिनका नाम गणपति भट्ट था। गणपति भट्ट भगवान गणेश के भी बहुत बड़े उपासक थे। वह दक्षिण भारत से पुरी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आए थे। पुरी पहुंचने पर, उन्होंने भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए, लेकिन उन्हें संतुष्टि नहीं मिली। गणपति भट्ट को लगा कि भगवान जगन्नाथ का रूप भगवान गणेश से अलग है और वह चाहते थे कि भगवान गणेश के मुख वाले रूप में उन्हें दर्शन दें। उनके मन में यह इच्छा थी कि काश भगवान जगन्नाथ उन्हें अपने प्रिय गजानन रूप में दर्शन दें। गणपति भट्ट की यह इच्छा इतनी प्रबल थी कि वह बिना अपने आराध्य के दर्शन किए पुरी से लौटने का मन बना चुके थे। जब भगवान जगन्नाथ को अपने इस परम भक्त की मनोदशा का पता चली, तो वे अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने अपने भक्त की अटूट श्रद्धा और भक्ति को देखकर उसे दर्शन देने का निश्चय किया।
अगले दिन, जब ज्येष्ठ पूर्णिमा का स्नान उत्सव हुआ और भगवान को 108 घड़ों के जल से स्नान कराया गया, तो उसके बाद भगवान जगन्नाथ ने सभी भक्तों को गजानन वेश में दर्शन दिए। भगवान बलभद्र ने भी अपने हाथों में हल-मूसल और एक हाथी का सिर धारण किया, जबकि देवी सुभद्रा को कमल के फूल से सजाया गया। इस रूप को देखकर भक्त गणपति भट्ट भाव-विभोर हो गए। उनकी आंखों से प्रेम के आंसू बहने लगे और उनका मन शांत हो गया। उन्होंने भगवान जगन्नाथ के इस अद्भुत रूप के दर्शन कर स्वयं को धन्य मानने लगा।
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Image credit- Herzindagi
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