बद्रीनाथ भारत के चार धाम में से एक है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यह धाम उत्तराखंड राज्य में स्थित है। हिंदू धर्म में यह महत्वपूर्ण धाम हैं। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति चारधाम की यात्रा कर लेता है। उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। बता दें, चारधाम यात्रा हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र तीर्थ यात्राओं में से एक है। यह यात्रा हर साल लाखों श्रद्धालु करते हैं। चार धाम में बद्रीनाथ के अलावा केदारनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री शामिल हैं। चारधाम यात्रा बेहद कठिन मानी जाती है। वहीं क्या आप इस बात को जानते हैं कि बद्रीनाथ की यात्रा आदि बद्री के बिना पूरी नहीं मानी जाती है। इसलिए अगर आप बद्रीनाथ के दर्शन के लिए जा रहे हैं, तो इस बात का अवश्य ध्यान रखें। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से आदि बद्री और बद्रीनाथ की पौराणिक कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं।
बिना आदि बद्री के दर्शन के अधूरी है बद्रीनाथ की यात्रा
आदि बद्री, जिसे कल्पवृक्ष और नारायण ऋषि के नाम से भी जाना जाता है, भगवान विष्णु का एक प्राचीन मंदिर है जो उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने सृष्टि के आरंभ में आदिबद्री में 12 वर्षों तक तपस्या की थी। इस तपस्या के बाद ही उन्होंने ब्रह्मांड की रचना की थी। इसलिए, आदिबद्री को सृष्टि का आदि स्थान माना जाता है। वहीं दूसरी कथा के अनुसार नारायण ऋषि ने आदिबद्री में कई वर्षों तक तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए थे। उसी समय से, इस स्थान को आदिबद्री के नाम से जाना जाता है। आदिबद्री मोक्ष को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति का स्थान माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि आदिबद्री में दर्शन करने से भक्तों को मोक्ष प्राप्त होता है। इसलिए, आदि बद्री को मोक्ष का द्वार माना जाता है। इसलिए अगर बद्रीनाथ के दर्शन करने के जा रहे हैं, तो आदिबद्री के दर्शन अवश्य करें। इसके बाद ही चारधाम यात्रा पूरी होती है।
बद्रीनाथ धाम की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक कथा ऐसी भी प्रचलित है, कि बदरीनाथ धाम में भगवान शिव सपरिवार निवास करते थे। लेकिन एक बार जब भगवान विष्णु तपस्या के लिए कोई स्थान ढूंढ रहे थे, तो अचानक उन्हें यह स्थान दिखा और उन्हें यह स्थान बेहद पसंद आया। भगवान श्री हरि विष्णु यह जानते थे कि यह जगह उनके आराध्य भगवान शिव का निवास स्थान है। इसलिए उन्होंने भगवान शिव से उनका धाम मांगने के लिए आग्रह किया। उसके बाद भगवान शिव ने यह स्थान भगवान विष्णु को दे दिया। तभी से हरिभूमि बदरीनाथ धाम से जाने जानी लगी।
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वहीं दूसरी कथा के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि एक बाद देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु एक दूसरे से नाराज हो गए। इसके बाद देवी लक्ष्मी अपने पिता समुद्र के घर चली गई और भगवान विष्णु भी आहत होकर नर-नारायण पर्वत के बीच तपस्या करने चले गए। फिर कई सालों के बाद मां लक्ष्मी को अपनी भूल का ज्ञात हुआ, तो वह भगवान विष्णु को ढूंढने के लिए निकल गईं।
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उन्होंने देखा कि पर्वत के बीचों बीच नारायण बर्फ से ढके पर्वत के बीच बैठे तपस्या कर रहे हैं, और उन पर बर्फ गिर रही है। देवी लक्ष्मी यह देखकर बेहद दुखी हुईं। वह बदरी यानी कि बेड़ का पेड़ बन गईं। ताकि तप में लीन नारायण पर बर्फ ना गिरे। वहीं जब भगवान विष्णु का तप पूरा हुआ, तो उन्होंने देवी लक्ष्मी को बेड़ के पेड़ के रूप में देखा। इससे भगवान विष्णु बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि इस स्थान को बद्रीनाथ धाम से जाना जाएगा। तब से लेकर अब तक बद्रीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा यह स्थान तीर्थ बदरी नारायण और बदरी देवी लक्ष्मी का भी स्वरूप है।
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