महाभारत काल के कई सीक्रेट्स में से एक है अर्जुन के गांडीव(गाण्डीव) का रहस्य। आपने महाभारत सीरियल देखा हो या फिर महाभारत के काव्य का अध्ययन किया हो, आपको गांडीव के बारे में पता ही होगा। अर्जुन को विश्व का सबसे महान धनुर्धारी माना जाता था और इसका कारण सिर्फ गांडीव ही था। हालांकि, कर्ण अर्जुन से ज्यादा बेहतर योद्धा थे, लेकिन फिर भी गांडीव की चर्चा ही महाभारत के काव्य में होती है। पार्थ यानी अर्जुन ने महाभारत के युद्ध के दौरान अपने गांडीव के जरिए ही कई महान योद्धाओं को पराजित किया था। माना जाता है कि गांडीव के साथ जो तरकश था उसमें तीर कभी खत्म नहीं होते थे। वो हमेशा भरा रहता था और जब भी अर्जुन को जरूरत होती थी वो अपना तीर चला सकते थे।
अर्जुन उन कुछ योद्धाओं में से एक थे जो ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर सकते थे। अपने तीरों के जरिए पूरी सृष्टी खत्म करने की ताकत थी उनमें। पर इतना शक्तिशाली योद्धा बनने के लिए जो हथियार उनके पास था। वो आखिर अर्जुन को मिला कहां से था? उस गांडीव से जुड़े राज क्या हैं? आखिर किस चीज का बना था वो धनुष? क्या अर्जुन के अलावा उसे कोई और उठा सकता था? चलिए आज हम उसी बारे में बात करते हैं।
माना जाता है कि गांडीव इतना शक्तिशाली था कि देवताओं को भी उससे डर लगता था। यही कारण है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन को रोकने की क्षमता किसी और में नहीं थी।
किस चीज का बना था यह धनुष
गांडीव के सृजन के पीछे कई कहानियां मानी जाती हैं। एक के अनुसार यह मुरा नामक राक्षस के सींग से बना था और इसका वजन 55000 मेट्रिक टन था। इसमें 108 धागे थे जो एक साथ कई तीर मार सकते थे।
एक और कहानी कहती है कि दधीचि ऋषि ने अपनी हड्डियों का दान कर तीन धनुष बनवाए थे। ये धनुष थे गांडीव, पिनाक और सारंग। ऋषि की छाती की हड्डियों से इंद्र का वज्र भी बना था।
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गांडीव धनुष देवताओं ने अर्जुन को दिया था जिसकी मदद से महाभारत का युद्ध जीता गया। पिनाक धनुष जो भगवान शिव के पास था उसे रावण ने ले लिया था। इसके बाद वो भगवान परशुराम के पास गया था और उसी धनुष को भगवान राम ने तोड़कर सीता स्वयंवर को जीता था।
सारंग धनुष भगवान विष्णु के पास था। इसके बाद इस धनुष को कहा जाता है कि श्री राम ने लिया था और उसके बाद यह श्री कृष्ण के पास गया था।
सिर्फ यही नहीं, इंद्र ने अपना वज्र भी महाभारत के युद्ध में कर्ण को दे दिया था जिसके वार से ही भीम का पुत्र घटोत्कच मरा था। महर्षि दधीचि का यह कहना था कि उनकी हड्डियों का उपयोग सिर्फ धर्म की रक्षा के लिए ही हो।
तीसरी कहानी भी कुछ ऐसी ही है। तीसरी कहानी के अनुसार यह धनुष कण्व मुनि की कठोर तपस्या से बने थे। तपस्या करते-करते उन्होंने समाधि ले ली और उनका शरीर दीमक के कारण मिट्टी में तब्दील हो गया। इसी मिट्टी में एक सुंदर बांस का पेड़ उगा। ब्रह्मा जी ने तपस्या से प्रसन्न होकर कण्व मुनि को कुंदन का बना दिया। उन्हें कुछ वरदान भी दिए। पर जब वो जाने लगे तो उन्होंने देखा कि उनके शरीर पर उगा बांस बहुमूल्य हो चुका है। उसके जैसा कुछ भी नहीं। तब उसी बांस को उन्होंने विश्वकर्मा को दिया और उससे पिनाक, सारंग और गांडीव बने।
अर्जुन को कैसे मिला था गांडीव?
पौराणिक कथाओं की मानें तो अर्जुन को गांडीव देवताओं ने ही दिया था। यह आलौकिक धनुष पहले वरुण देव के पास था। इसके बाद इसे उन्होंने अग्निदेव को दिया और अग्निदेव ने इसे अर्जुन को दिया ताकि धर्म की रक्षा की जा सके।
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गांडीव की खासियत क्या थी?
गांडीव धनुष की खासियत यह थी कि इसे कोई अन्य अस्त्र या शस्त्र नष्ट नहीं कर सकता था। यह अकेला धनुष 1 लाख धनुषों के बराबर था। गांडीव धनुष को जो भी धारण करता था उसके शरीर में ऊर्जा का संचार होता था और यही कारण है कि उसे कोई युद्ध में हरा नहीं सकता था।
अर्जुन से पहले गांडीव किसने इस्तेमाल किया था?
कथा के अनुसार अर्जुन से पहले 1000 सालों तक इसे ब्रह्मा ने इस्तेमाल किया था। फिर इसे 3585 सालों तक इंद्र ने इस्तेमाल किया था। फिर 500 सालों तक चंद्र ने इस्तेमाल किया था फिर वरुण के पास यह आया था और उसके बाद ही यह अर्जुन के पास गया था।
अब कहां है गांडीव?
महाभारत की कहानी के अनुसार, पांडव जब स्वर्ग लोक की यात्रा कर रहे थे तब अग्नि देव ने कहा था कि अर्जुन अपने इस हथियार को देवताओं को वापस दे दें। इसलिए अपनी यात्रा के दौरान अर्जुन ने अपना धनुष देवताओं के नाम समर्पित करके समुद्र में फेंक दिया था।
क्या आपको अर्जुन के गांडीव के बारे में इतनी जानकारी पता थी?
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