अहमदाबाद विमान हादसे के बाद लोगों को फ्लाइट में बैठने से डर लगने लगा है। वहीं, जब कोई प्लेन टेक-ऑफ और लैंडिंग करता है, तो जमीन के सबसे पास होता है। इस दौरान आसमान में उड़ रहे पक्षियों का उससे टकराना आम बात है। लेकिन किसी पक्षी का प्लेन से टकराना छोटी बात नहीं होती है, बल्कि विमान को नुकसान भी हो सकता है।
आपको बता दें कि जब प्लेन 350 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरता है, तो मामूली टक्कर भी जानलेवा साबित हो सकती है। कई बार पक्षियों के प्लेन से टकराने पर प्लेन की विंडशील्ड (सामने का शीशा) टूट जाती है और पायलट तक घायल हो जाता है। वहीं, अगर पक्षी प्लेन के इंजन में चला जाए, तो ब्लेड टूट सकते हैं, आग लग सकती है और इंजन बंद हो सकता है, जिसकी वजह से प्लेन क्रैश भी हो सकता है।
ऐसे में, दुनियाभर के विमानन संगठन और सरकारें यह पक्का करती हैं कि प्लेन के उड़ान भरने से पहले बर्ड स्ट्राइक (पक्षी से टकराने) की स्थिति में उसकी मजबूती की पूरी जांच की जाए। आज हम आपको बताने वाले हैं कि प्लेन के उड़ान भरने से पहले इंजन पर मुर्गे फेंके जाते हैं और इसके पीछे की वजह क्या है?
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चिकन गन क्या होता है और क्यों फेंके जाते हैं मुर्गे प्लेन पर?
प्लेन के उड़ान भरने से पहले इंजन को चेक करने के लिए मुर्गा फेंका जाता है। आपको यह अजीब लग सकता है, लेकिन इसका एक वैज्ञानिक कारण है। प्लेन पर पक्षियों के टकराने का असर जानने के लिए इंजीनियर एक ख़ास मशीन का इस्तेमाल करते हैं जिसे चिकन गन (Chicken Gun) कहते हैं। यह एक बड़ी हवा की तोप (Compressed Air Cannon) होती है। फिर, इसे प्लेन की विंडशील्ड, विंग (पंख) और इंजन पर दागा जाता है। इसकी रफ़्तार इतनी होती है जितनी एक असली पक्षी के टकराने की होती है।
ऐसा क्यों किया जाता है?
यह टेस्ट इसलिए किया जाता है क्योंकि प्लेन के ग्लास और इंजन की सही स्थिति को जांचा जा सके। यह टेस्ट आम तौर पर Laboratory में किया जाता है। प्रयोगशाला में मुर्गा टकराने के बाद इंजीनियर हाई-स्पीड कैमरों से रिकॉर्डिंग करते हैं और फिर हुए नुकसान का एनालाइज करते हैं।
असली मुर्गे से टेस्ट क्यों?
चिकन गन टेस्ट असली मुर्गे से किया जाता है, क्योंकि उसका वजन, आकार और टिशू आकाश में उड़ने वाले पक्षी से काफ़ी मिलते-जुलते हैं। आजकल इस तरीके को सभी बड़े एयरक्राफ़्ट बनाने वाले संस्थान अपना रहे हैं।
बर्ड स्ट्राइक टेस्ट में क्या होता है?
- प्लेन के उड़ान भरने से पहले एक खास टेस्ट किया जाता है जिसे बर्ड स्ट्राइक टेस्ट (Bird Strike Test) कहा जाता है।
- इसमें सबसे पहले, प्लेन के जिन हिस्सों को टेस्ट करना होता है, जैसे- इंजन, कॉकपिट की विंडशील्ड और विंग आदि को मजबूत फ्रेम पर फिक्स किया जाता है।
- फिर तय किया जाता है कि इंजन को टेस्ट करने के लिए क्या फेंका जाएगा।
- मरा हुआ मुर्गा या नकली पक्षी या जिलेटिन की बॉल। आम तौर पर असली मुर्गा फेंककर ही जांच की जाती है।
- इसके बाद, एक खास एयर गन या तोप जैसी मशीन को ऐसे सेट किया जाता है कि वह मुर्गे को उड़ान के दौरान प्लेन की रफ्तार (300-500 किमी प्रति घंटे) के बराबर स्पीड से फेंके।
- इसका मकसद यह देखना होता है कि अगर यही टक्कर हवा में हो जाए, तो प्लेन को क्या नुकसान हो सकता है।
- जब मुर्गा प्लेन के अहम हिस्सों पर दागा जाता है, तो हाई-स्पीड कैमरा हर पल को रिकॉर्ड करता है।
- इससे यह देखा जाता है कि कितना नुकसान हुआ और कहां हुआ।
- फिर इंजीनियर और टेक्नीशियन चेक करते हैं कि क्या इंजन का ब्लेड टूट गया है, क्या विंडशील्ड में दरार आ गई है, क्या प्लेन के विंग को नुकसान पहुंचा है।
- अगर कोई गंभीर नुकसान नहीं होता है, तो प्लेन उड़ान भर सकता है।
इंजन टेस्ट के लिए अलग शर्तें होती हैं
आम तौर पर प्लेन के इंजन के टेस्ट में नियम और शर्तें अलग होती हैं।
- अगर प्लेन के इंजन में मुर्गा फँस जाए, तो भी उसे कम से कम 2 मिनट तक 75% थ्रस्ट (पूरी ताक़त का 75%) के साथ काम करना जरूरी है।
- ऐसा इसलिए जरूरी है ताकि पायलट के पास इमरजेंसी लैंडिंग कराने का समय हो।
- आपको बता दें कि यह टेस्ट अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मानकों (International Safety Standards) का हिस्सा है और बिना इसको पास किए कोई भी प्लेन उड़ान नहीं भर सकता है।
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