जहां आप काम करती हैं, वहां ना कहना आसान है? ये सवाल खुद से पूछना बहुत जरूरी है क्योंकि भारत का वर्क कल्चर कुछ ऐसा है जहां हमें जरूरत से ज्यादा काम करने की आदत हो गई है। हमारे देश में बॉस की हर बात को हां कहने का कल्चर है। हमारा वर्क कल्चर कुछ ऐसा है, जहां ऑफिस में लेट होना आम माना जाता है। ऐसा समझा जाता है कि अगर समय पर ऑफिस से बाहर निकलना है, तो हमें पहले से परमिशन लेनी होगी। ओवर टाइम नहीं हम इतना काम करते हैं कि ओवर जॉब लगने लगती है।
तभी तो हैप्पीनेस इंडेक्स की लिस्ट में 136 देशों में से भारत का नंबर 125 है। हम अपनी जिंदगी में इतना व्यस्त हो गए हैं, लेकिन ऐसा करने की जरूरत नहीं है। आज हम उन बातों को बताएंगे जब ऑफिस में ना कहना आपके लिए जरूरी हो जाता है।
कभी-कभी ऑफिस में वर्क लोड बढ़ जाए वो समझ में आता है, लेकिन अगर रोजाना आपके आने का समय बहुत ज्यादा बढ़ रहा है, तो ये गलत है। ऐसा करने पर लोग आपको जरूरी समझेंगे या नहीं यह तो नहीं पता, लेकिन आपकी पर्सनल लाइफ पर असर होगा। आपके वर्किंग हावर्स जितने हैं आपको उतने में ही अपना काम खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए। ओवर अचीवर होना अच्छी बात है, लेकिन अगर वर्किंग हावर्स बढ़ रहे हैं, तो ये भी सोचा जा सकता है कि आप अपना काम तय वक्त में पूरा करने के काबिल नहीं हैं।
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समझने वाली बात है कि अगर रोज ही आप ऑफिस से लेट घर जाएंगे, तो मेंटल स्ट्रेल भी बढ़ेगा। ऐसे मौके पर ना ही आपकी पर्सनल लाइफ ठीक से चल पाएगी और ना ही प्रोफेशनल। आपको यह सोचने की जरूरत है कि क्या आपको एक्स्ट्रा काम दिया जा रहा है या फिर आप ही अपना काम ऑफिस हावर्स में पूरा कर पाने में असमर्थ हैं। दोनों में से कोई भी केस हो आपको अपने वर्क पैटर्न पर काम करने की जरूरत है।
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यारी-दोस्ती में किसी का कोई काम कर देना ठीक है, लेकिन इसे ह्यूमन नेचर कहा जा सकता है कि अगर हमें मदद मिले, तो और मदद चाहिए होती है। किसी कर्मचारी की एक बार मदद करना ठीक है, लेकिन अगर वो खुद का काम आप पर डाल रहा है या फिर अपना काम सीखने की कोशिश ही नहीं कर रहा है, तो आपको उसकी मदद नहीं करनी चाहिए। यह समझने की जरूरत है कि आपको ना कब कहना है। दोस्त आपकी मदद लेंगे ही पर आपको कितनी मदद करनी चाहिए यह भी जानकारी रखें।
मैं समझती हूं कि एक पोजीशन पर आने के बाद आपको जूनियर्स को ट्रेन करने की जरूरत होगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि 6-7 महीने बाद भी उसकी ट्रेनिंग चलती ही रहे। जूनियर्स की ट्रेनिंग का भी एक समय निर्धारित होता है। जूनियर सिर्फ आपकी तारीफ करके या फिर ट्रेनिंग के बहाने से अपना काम आप से नहीं करवा सकता है। आपको उसे ना कहना होगा। उसे ये समझाना होगा कि आपके पास अपना खुद का भी काम है।
कोई क्लाइंट आपको जरूरत से ज्यादा परेशान कर रहा है, बिना किसी समस्या के भी समस्या क्रिएट कर रहा है, दिन या रात देखे बिना ही आपको कॉल कर रहा है, तो उसे ना कहना भी जरूरी है। इसे जॉब डिस्क्रिप्शन का हिस्सा ही मानें कि लोग अपने हिसाब से ही आपको परेशान करेंगे। ऐसा बिल्कुल ना समझें कि आप जॉब कर रहे हैं, तो आपकी ड्यूटी है कि क्लाइंट की खराब डिमांड को भी माना जाए।
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सेल्फ रिस्पेक्ट बहुत जरूरी है। अगर आप अपनी रिस्पेक्ट नहीं करेंगे, तो फिर आपकी रिस्पेक्ट कोई और कैसे करेगा? बार-बार आपकी बेइज्जती हो रही है कि आप ठीक से काम नहीं करते और फिर वही काम आपको दिया जा रहा है, तो आपको भी थोड़ा सोचने की जरूरत है। किसी काम को करते समय आपको मजा आना भी जरूरी है। ऐसे मामलों में वर्क कल्चर बहुत टॉक्सिक हो जाता है। टॉक्सिक वर्कप्लेस में ना तो आप ठीक से काम कर पाएंगे ना ही आपका ध्यान लगेगा।
कुल मिलाकर अपने काम को बेहतर बनाएं, आप अपने काम में कोई कमी ना छोड़ें। ऐसा नहीं है कि कभी ओवरटाइम नहीं किया जाता या फिर कभी ऑफिस में काम ज्यादा नहीं होता। पर आपको इस बात को समझना होगा कि आपकी भी एक लिमिट ही है।
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