बजट 2023 अब आ गया है और फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने अपनी पूरी कोशिश की है कि इस तरह का बजट पेश किया जाए जिससे आम इंसान खुश हो सके। इनकम टैक्स स्लैब में बहुत ज्यादा कटौती की गई है और धीरे-धीरे इसे लेकर कई तरह की बातें भी की जा रही हैं। बजट में एक और चीज है जिसे लेकर बहुत ज्यादा बातें हो रही हैं। ये चीज है हीरा। नहीं-नहीं खदान से निकलने वाला चमकदार हीरा नहीं बल्कि लैब में बनाया हुआ चमकदार हीरा जिसकी क्वालिटी बिल्कुल असली जैसी होती है और कीमत काफी कम।
लैब ग्रोन डायमंड्स को लेकर मार्केट में अब धीरे-धीरे जागरुकता बढ़ रही है और ये भी समझा जा रहा है कि ये हीरे बहुत ही यूनिक होते हैं। पर असल में ये होते क्या हैं और कैसे बनाए जाते हैं इसके बारे में हमने दिल्ली के एक प्रसिद्ध ज्वेलर प्रदीप अग्रवाल से बात की। उन्होंने हमें विस्तार से बताया कि असल में लैब ग्रोन डायमंड्स होते क्या हैं और क्यों इन्हें बनाने के लिए सरकार इतना जोर दे रही है।
क्या होते हैं लैब ग्रोन डायमंड्स?
लैब ग्रोन डायमंड्स असल में CVD कहलाते हैं। सीवीडी का फुल फॉर्म है कैमिकल वेपर डिपोसिशन (Chemical Vapour Deposition), जैसा कि नाम है ये साफ है कि ये हीरे लैब में बनाए जाते हैं और इनके लिए कई तरह की मशीनें इस्तेमाल होती हैं। ये हाई प्रेशर और तापमान में बनाए जाते हैं और लैब में बिल्कुल वैसी ही स्थिति पैदा की जाती है जैसी प्राकृतिक खदानों में होती है।
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इन्हें बनाने के लिए एक सीड की जरूरत होती है जो आमतौर पर चाइना से आता है। ये सीड भी एक तरह से हीरे का कंपोजिशन ही होता है जिसके जरिए लैब में नया हीरा बनाया जाता है। इसकी पूरी की पूरी स्ट्रिप ही इम्पोर्ट की जाती है। जो हीरा लैब में बनाया गया है उसकी कटिंग की जाती है और फिर उसे बेचा जाता है। (डायमंड से जुड़े 5 अनोखे फैक्ट्स)
कीमत में काफी कम होते हैं लैब ग्रोन डायमंड्स
प्रदीप जी का कहना है कि लैब ग्रोन डायमंड्स असल मायने में एक असली बड़े हीरे की तुलना में 5-10% कीमत के ही होते हैं और इसलिए इनकी चर्चा अब बढ़ने लगी है। सूरत आदि में इससे जुड़ी कई मशीनें लग रही हैं और साथ ही साथ इसे लेकर कस्टमर का फायदा भी होता है क्योंकि उन्हें ये हीरा काफी कम दाम में मिल जाता है।
आखिर क्यों सरकार दे रही है इस तरह के बिजनेस को बढ़ावा?
लैब ग्रोन डायमंड्स पर कस्टम ड्यूटी घटाई गई और जो सीड्स इन्हें बनाने के लिए इस्तेमाल होते हैं उन पर भी कस्टम ड्यूटी कम की गई।
प्रदीप जी के अनुसार लैब ग्रोन डायमंड्स की कई मशीनें सूरत में भी लगाई जा रही हैं। इस तरह के डायमंड्स बनाने में कई सारे लेबर फोर्स की जरूरत हो सकती है जिससे नई नौकरियों का जन्म होगा। इसी के साथ, इस तरह के डायमंड्स में माइनिंग की जरूरत भी नहीं होती है जो पर्यावरण के लिए वैसे भी अच्छा है। ये कंज्यूमर के लिए भी अच्छा होता है क्योंकि ये असली हीरे की तुलना में ज्यादा सस्ता होता है।
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क्या असली हीरे और लैब ग्रोन डायमंड में किया जा सकता है फर्क?
इसका जवाब है हां, लेकिन उसके लिए लैब टेस्टिंग की जरूरत होगी। कोई पारखी ज्वेलर भी बिना लैब टेस्टिंग के असली हीरे और लैब ग्रोन डायमंड में फर्क नहीं कर सकता है। इसके लिए उसे सही उपकरणों की जरूरत है। ऐसे में असली हीरे और लैब ग्रोन हीरे को लेकर टेस्ट करने के लिए मशीनों को भी इस्तेमाल किया जाने लगा है।
उम्मीद है कि अब आपको लैब ग्रोन डायमंड्स के बारे में जानकारी मिल गई होगी। अगर आपका कोई सवाल है तो उसे हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।