दुनिया तेजी से बदल रही है। इसी के साथ माता-पिता के सामने कई चुनौतियां भी बढ़ती जा रही हैं। सबसे बड़ी चुनौती है, बच्चों को अनुशासित बनाने की। हर माता-पिता के मन में यह प्रश्न रहता है कि बच्चे को अनुशासन कैसे सिखाया जाए? हाल के दिनों में जिस तरह से बच्चों में अनुशासनहीनता की घटनाएं बढ़ी हैं, उसे देखते हुए यह चिंता जायज भी लगती है। बच्चों को अनुशासित बनाने का प्रयास जितनी जल्दी प्रारंभ कर दिया जाए, उतना सही परिणाम मिल सकता है। दो से पांच साल तक की उम्र बच्चों के व्यवहार को निर्धारित करने में बड़ी भूमिका निभाती है। इसके लिए, आर्टेमिस अस्पताल के मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान के प्रमुख मनोचिकित्सक व प्रमुख सलाहकार डॉ. राहुल चंडोक से जानें, बच्चों को डिसिप्लिन सिखाने के टिप्स।
बच्चे शब्दों से ज्यादा क्रियाओं पर ध्यान देते हैं। इसलिए, उन्हें अनुशासित बनाने की पहली शर्त है- आपका स्वयं अनुशासित होना। अगर आप बातचीत में अपशब्दों का प्रयोग करते हैं, तो बच्चे को यह सिखाना व्यर्थ है कि उसे अच्छा बोलना चाहिए। बच्चे को यह बताने का प्रयास मत कीजिए कि उसे क्या नहीं करना है। बल्कि, उसके समक्ष इस बात का उदाहरण दीजिए कि उसे क्या करना है। आपका संतुलित व्यवहार उसे स्वयं ही आप जैसा बनने के लिए प्रेरित करेगा। बच्चे को चिल्लाकर चुप रहने की सीख नहीं दी जा सकती है।
बच्चों को व्यवहार से जुड़ी कोई सीख देते समय उनके मन में उठने वाले प्रश्नों पर ध्यान दें। यदि वह पलटकर कोई प्रश्न करे, तो आपको उसका तार्किक समाधान देना चाहिए। इससे बच्चा आपकी कही हर बात को आत्मसात कर पाता है। जैसे ही आप उसके प्रश्नों पर उसे डांटकर चुप कराने और बस आपका निर्देश पालन करने के लिए कहते हैं, वह उन बातों को न अपनाने के लिए प्रेरित होता है।
बच्चों के व्यवहार में सबसे बड़ी भूमिका माता-पिता की होती है। कई बार छोटे बच्चे की किसी गलती को माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य ही हंसकर टाल देते हैं। कई बार बच्चे की तोतली आवाज में अपशब्द सुनकर सभी को हंसी आ जाती है। कई बार जिद में जब बच्चा किसी बड़े पर हाथ उठाता है, तब भी यह कहकर टाल दिया जाता है कि बच्चा है, सीख जाएगा। यह गलत है। बच्चे की किसी भी ऐसी बात का समर्थन मत कीजिए, जो आप चाहते हैं कि उसकी आदत का हिस्सा न बने। पहली ही गलती पर उसे रोकें। इसके लिए गुस्सा करने या डांटने की जरूरत नहीं है, लेकिन धीमी आवाज में दृढ़ता से उसे यह अवश्य बताएं कि यह काम सही नहीं है। इससे बच्चा उस गलती को दोहराने से बचता है।
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कई बार माता-पिता अपने बच्चे की हर इच्छा पूरी करने के प्रयास में उसे जिद्दी बना देते हैं। ऐसा न करें। आपको इच्छा और जिद के बीच के अंतर को समझना होगा। बच्चे को यह समझ में आना चाहिए कि उसकी कही हर बात या उसकी हर मांग पूरी नहीं की जा सकती है। उसकी इच्छाएं जिद में न बदले, इसका प्रयास करना जरूरी है।
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बच्चों को गलती करने पर टोकना जितना जरूरी है, अच्छा करने पर प्रशंसा भी उतनी ही जरूरी है। बच्चे को अच्छी आदतों के लिए प्रोत्साहित करें और जब वह कुछ अच्छा करे, तो उसकी प्रशंसा करके उत्साह भी बढ़ाएं। इससे बच्चे को सही और गलत के बीच अंतर समझने में आसानी होती है। वह अपने कार्यों में इस अंतर को समझ पाता है कि क्या करने पर उसे टोका जा रहा है और क्या करने पर प्रशंसा मिल रही है।
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Image credit- Herzindagi
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