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Aruna Desai: 'मां मैं गे हूं..' अपने बेटे को सपोर्ट करने के लिए बना दिया पूरा ग्रुप, मिलिए सुपर मॉम अरुणा देसाई से

भारत में जहां एक ओर सेम सेक्स मैरिज की जंग चल रही है, वहीं बच्चों का साथ देने के लिए रेनबो पेरेंट्स भी आगे बढ़ रहे हैं। आज बात करते हैं उस मां की जिसने रेनबो पेरेंट्स को एक करने की पहल की थी। 
Editorial
Updated:- 2023-05-09, 13:57 IST

एक अच्छी मां का मतलब है कि वह समाज के पैमानों से अपने बच्चों को पाले और उनके लिए सब कुछ छोड़ दे। बच्चा अगर अपने मन की करना चाहे, तो मां उसे समझाए और समाज के हिसाब से ढाले। आपको इसमें कुछ गलत नहीं लगता है? यहां मां अपने बच्चों की इच्छाओं को मारकर समाज के पैमानों को देखे। सोसाइटी की उम्मीदों के परे कुछ ऐसे माता-पिता भी होते हैं जो अपने बच्चों की उड़ान को रोकते नहीं हैं। हरजिंदगी अपने गुड मदर्स प्रोजेक्ट के तहत ऐसी ही कई मदर्स को अपनी स्टोरीज के जरिए सलाम कर रही है जो समाज के हिसाब से नहीं अपने बच्चों के हिसाब से एक अच्छी मां हैं।

ऐसी ही एक मां हैं अरुणा देसाई। 59 साल की अरुणा वैसे तो पेशे से एक एचआर प्रोफेशनल हैं, लेकिन उन्हें लोग स्वीकार ग्रुप के जरिए जानते हैं। LGBTQIA+ बच्चों के पेरेंट्स को एक साथ जोड़कर उन्होंने 'स्वीकार - द रेनबो पेरेंट्स' कम्युनिटी बनाई है। रेनबो रंगों से LGBTQIA+ बच्चों को अरुणा का सफर आसान नहीं था। जहां रेनबो किड्स को भारत में स्वीकृति कम मिलती है वहीं, अरुणा ने एड़ी-चोटी का जोर लगाकर अपने बेटे सहित कई बच्चों के लिए एक ऐसी जगह बना दी जहां वो खुलकर सांस ले सकते हैं।

बेटे के 'मैं गे हूं..' कहने पर बदल गई थी अरुणा की दुनिया

अरुणा ने हमारे साथ अपनी कहानी शेयर की। उन्होंने कहा, "मेरी शादी 24 साल की उम्र में हो गई थी और 27 की उम्र में मेरा एकलौता बेटा अभिषेक पैदा हुआ था। जब मैं 43 साल की थी तब मेरे बेटे ने मुझे बताया कि वो गे है। उस वक्त वो 17 साल का था। उस दिन से दो हफ्ते पहले तक मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि होमेसेक्सुएलिटी क्या होती है। हालांकि, अभिषेक और उसके दोस्त ने मुझे इसके बारे में तैयार करना शुरू कर दिया था।"

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aruna desai rainbow parent

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अरुणा का मानना है कि बच्चे ऐसा करते हैं। वो आपके सामने कुछ क्लू छोड़ देते हैं जिससे आप ऐसी खबर को पढ़ने के लिए तैयार हो सकें। उन्होंने कहा, "अभिषेक और उसके दोस्त ने एक काल्पनिक कहानी बनाई जिसमें उन्होंने मुझे बताया कि कैसे उनके एक दोस्त के माता-पिता ने यह खबर मिलने के बाद उसे घर से निकाल दिया। किस तरह से वो लोग अपने बच्चे को सड़कों पर रहने के लिए मजबूर कर रहे थे। उसके पास ना खाना था, ना ही घर और वो बहुत अकेला हो गया था। मैं उस स्टोरी से काफी प्रभावित हुई। मैंने खुद को होमोसेक्सुएलिटी के बारे में एजुकेट करना शुरू किया। यह था मेरे बेटे की दुनिया में मेरा पहला कदम।"(जानें 9 अलग सेक्सुएलिटी के बारे में)

जब अभिषेक ने आखिरकार इसके बारे में अपनी मां को बताया तब अरुणा शॉक थीं। वह कहती हैं, "मुझे आज भी 3 दिसंबर 2007 की तारीख याद है। उसने मुझे सच्चाई बताई थी और वह सुबह से रो रहा था। यह साफ था कि वो मुझे कुछ बताना चाहता था, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। मैं उसकी मदद करना चाहती थी किसी भी तरह से। मुझे उसकी कहानी याद आई और लगा कि जैसे वो मुझे अपनी कहानी ही बता रहा था। मैंने हिम्मत जुटाई और पूछ लिया.. 'क्या तुम गे हो'?"

डर के बीच अभिषेक को मिला अपनी मां का साथ

अभिषेक ने अपनी मां से बस एक ही सवाल पूछा था, "क्या आप मुझसे नफरत करती हैं? क्या आप मुझे स्वीकार करेंगी?" उस एक पल में अरुणा को समझ आ गया था कि उनकी जिंदगी ऐसी ही होने वाली है। अरुणा इसका नतीजा जानती थीं, लेकिन यह भी जानती थीं कि वो अपने बेटे से बहुत प्यार करती हैं। उन्होंने अपने बेटे को समझाया और उसे डिनर पर ले गईं। उन्होंने कहा कि वह अभिषेक से प्यार करती हैं और करती रहेंगी।

parent aruna desai

बेटे से मिली प्रेरणा

अगर आप LGBTQIA+ से जुड़ी न्यूज को फॉलो करती हैं तो स्वीकार रेनबो पेरेंट्स ग्रुप के बारे में पता ही होगा। कुछ समय पहले इनकी तरफ से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को खुला खत भी लिखा गया था। यह एक ग्रुप है जहां रेनबो पेरेंट्स अपने बच्चों को सपोर्ट करते हैं और अन्य लोगों को अलग-अलग तरह की सेक्सुएलिटी के बारे में जागरुक करते हैं।

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इस ग्रुप को बनाने की कहानी भी अरुणा और अभिषेक की कहानी से शुरू हुई। अरुणा कहती हैं, "शुरुआत मैं हमारे साथ गिने-चुने पेरेंट्स का एक ग्रुप था जिन्होंने अपने बच्चों को एक्सेप्ट कर लिया था। वो पब्लिक इवेंट, रेनबो परेड आदि में जाते थे। यह देखकर कई अन्य बच्चों ने भी साथ आना शुरू किया ताकि उनके पेरेंट्स को सपोर्ट के लिए मनाया जा सके। कई माता-पिता अपने बच्चे को उस तरह से एक्सेप्ट नहीं कर पाते जैसा वे हैं। पर धीरे-धीरे बदलाव आया और नंबर बढ़ना शुरू हुए। कई सालों तक ऐसा ही चलता रहा और 2017 में कुछ पेरेंट्स की मदद से स्वीकार बना। हमें "Evening Shadows" फिल्म के लिए क्राउड फंड भी मिला।"

अरुणा बताती हैं, "मुझे श्रीधर रंगायन ने ईवनिंग शैडोज फिल्म के लिए होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए बुलाया था। वहां श्रीधर ने सपोर्ट ग्रुप को लेकर घोषणा की। हममें से 10 लोग सामने आए और ग्रुप बना दिया। मैं इस कम्युनिटी में 2007 से थी और कई लोगों को जानती थी। इस ग्रुप के नाम से लोगों ने मेरा नाम लेना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे स्वीकार आगे बढ़ा। कोरोना के वक्त भी बहुत से माता-पिता आए। हम उन्हें कहते हैं कि वो बच्चों से लड़ने की जगह इसे एक्सेप्ट करने की कोशिश करें।"

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सेम सेक्स मैरिज को लीगल करने की लड़ाई

अरुणा देसाई और उनके साथ कई माता-पिता की लड़ाई अपने बच्चों को समान अधिकार दिलाने की है। अरुणा के मुताबिक अगर यह लीगल हो जाता है, तो उनके बच्चे शादी कर पाएंगे। उन्हें सभी अधिकार मिलेंगे। वो चैन से जी पाएंगे और खुद के नाम पर प्रॉपर्टी भी खरीद पाएंगे। वो पार्टनर्स के साथ ज्वाइंट अकाउंट खोल पाएंगे। वो इंश्योरेंस खरीद पाएंगे और अपने पार्टनर के लिए अस्पताल में फैसला ले पाएंगे। बच्चों को खुश देखना और एक सफल जिंदगी जीते देखना हर माता-पिता का सपना होता है।

aruna desai and her son

डोमेस्टिक वायलेंस के खिलाफ भी लड़ रही हैं लड़ाई

अरुणा का कहना है कि उन्हें कई कॉल्स आते हैं जहां क्वीर लोगों के साथ घरेलू हिंसा की जाती है। उन्हें कॉल्स पर बताया जाता है कि बच्चों ने अपने माता-पिता से अपनी सच्चाई साझा की पर उन्हें विरोध ही मिला। माता-पिता बच्चों से हेटेरोसेक्सुअल तरीके से बिहेव करने को कहते हैं। ऐसे मामले में कई बार वो अपने बच्चों को हैरेस भी करते हैं।

अरुणा की पहल ने एक ऐसे सफर की शुरुआत की है जहां LGBTQIA+ लोगों को समान अधिकार और स्वीकृति मिल सकती है। अरुणा के जज्बे को हम सलाम करते हैं।

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