कभी स्तन ढंकने के लिए टैक्स चुकाती थीं दलित महिलाएं, जानिए क्या थी ये प्रथा

आपने कई टैक्स के बारे में सुना होगा लेकिन आज हम आपको कुछ अलग प्रकार के टैक्स के बारे में बताने वाले हैं। 

 

What is the story of breast tax in Kerala
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आज हमारे पास पूरे तरीके से आजादी है हम कुछ भी पहन सकते हैं। अपने शरीर को ढक सकते हैं या फिर चाहे तो छोटे कपड़े भी पहन सकते हैं। हालांकि यह चीजें हमेशा से हमारे पास नहीं थी। एक जमाने में महिलाओं को स्तन ढंकने के लिए भी टैक्स चुकाना होता था। जी हां, यह सुनने में भले अजीब हो लेकिन यह सच है। आज हम आपको इसी से जुड़े कई चीजें बताने वाले हैं।

किन महिलाओं को देना होता था ब्रेस्ट टैक्स

आज़ादी से पहले दक्षिण भारत में साल 1729 में मद्रास प्रेसीडेंसी त्रावणकोर की महिलाओं को ब्रेस्ट टैक्स देना पड़ता था। इस नियम का पालन निचले पायदान पर होने के कारण दलित महिलाएं इसका सबसे अधिक शिकार होती थीं। इस प्रथा को ब्रेस्ट टैक्स यानी की स्तन कर कहा जाता था।

कब शुरू हुई यह रूढ़िवादी प्रथा

आज से 200 साल पहले निचली जाती की महिलाएं अपने स्तन ढंकने के लिए टैक्स चुकाती थीं। अगर वह बिना टैक्स चुकाए अपने स्तन को ब्लाउज से ढ़क लेती थी तो उस दौरान चाकू से खींचकर ढका हुआ कपड़ा फाड़ दिया जाता था।

किसने शुरू किया था यह प्रथा

यह टैक्स लगाने का निर्णय उस समय के राजा मार्थंड वर्मा ने लागू किया था। उनका कहना था कि मकान और पानी के साथ महिलाओं को स्तन ढंकने के लिए भी टैक्स देना होगा। टैक्स हर महिलाओं के लिए बराबर नहीं था। यह टैक्स महिलाओं को उनकी ब्रेस्ट की साइज के हिसाब से देना होता था।

क्या था इस प्रथा को शुरु करने की पीछे की सोच

ऐसे में उस जमाने में यह टैक्स लागू करने के पीछे की सोच यह थी कि ऊंची जाति के पुरुषों के सामने महिलाओं को अपने स्तन नहीं ढ़कना चाहिए। उस दौरान दलित समुदाय की महिलाएं टैक्स नहीं चूका पाती थी। क्योंकि उनके पास उतने पैसे नहीं होते थे। वह मजदूरी करके अपना रोजी रोटी चलती थी।

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यह रूढ़िवादी प्रथा कैसे हुई खत्म

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हर बुरी चीज को खत्म करने के लिए किसी ना किसी को सामने आना होता है। ऐसे में उस जमाने में एक बहादुर महिला वीरांगना नंगेली ने यह कदम उठाया कि वह इस प्रथा को खत्म करेगी। आपने नांगेली का नाम नहीं सुना होगा लेकिन उन्होंने उस जमाने में इस प्रथा को खत्म करने के लिए अपने दोनों स्तन को काटकर केले के पत्ते में राजा के सैनिक को सौंप दिया था। जिसके बाद खुद राजा ने इस प्रथा को खत्म कर दिया।

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