हमारे देश के कुछ मुख्य त्योहारों में से एक है मकर संक्रांति । इस पर्व को मनाने का मुख्य कारण यह होता है कि इसी दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं और मौसम में बदलाव शुरू हो जाता है। इस दिन को भी नई फसल के स्वागत के लिए विशेष दिन माना जाता है। मकर संक्रांति को लेकर भारत में विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन किया जाता है। इस पर्व को देश के अलग राज्यों में अलग नाम से जाना जाता है। उत्तर भारत में जहां इसे खिचड़ी के नाम से जाना जाता है, वहीं बिहार में इसे मक्रांत और हिमाचल प्रदेश में माघ साजी कहा जाता है। दक्षिण भारत में इसे पोंगल और गुजरात में उत्तरायण कहा जाता है। ऐसे ही असम में इस पर्व को बीहू के नाम से जाना जाता है। इस साल यह पर्व 14 जनवरी, मंगलवार को मनाया जाएगा। इस दिन प्रातः 8 बजकर 55 मिनट पर सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इस दिन प्रातः 8 बजकर 55 मिनट से लेकर 9 बजकर 29 मिनट तक का समय महापुण्य काल होगा, जो दान-पुण्य और पूजा के लिए बहुत ही शुभ माना जाएगा।
मकर संक्रांति की कई अलग परंपराओं के मध्य एक अलग परंपरा है काली उड़द दाल की खिचड़ी बनाना। इस दिन मुख्य रूप से काली दाल की खिचड़ी का दान किया जाता है और भोजन में भी खिचड़ी खाई जाती है। यही नहीं, इस दिन स्नान-दान का भी विशेष महत्व है और पवित्र नदियों में स्नान करने से सदैव खुशहाली बनी रहती है। आइए, इस पर्व से जुड़ी कई बातों और उनके रहस्यों के बारे में ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें विस्तार से।
इस साल मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी 2025, मंगलवार को मनाया जाएगा। मकर संक्रांति हर साल उस समय होता है जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्य के इसी गोचर को मकर संक्रांति कहा जाता है।
14 जनवरी को प्रातः 8 बजकर 55 मिनट से मकर संक्रांति का पर्व शुरू होगा, क्योंकि इसी समय सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे। 14 जनवरी, प्रातः 8 बजकर 55 मिनट से लेकर दोपहर में 12 बजकर 51 मिनट तक का समय पुण्य काल होगा। वहीं, 14 जनवरी, 8 बजकर 55 मिनट से लेकर प्रातः 9 बजकर 29 मिनट तक का समय महापुण्य काल कहलाएगा।। मकर संक्रांति के दिन ब्रह्म मुहूर्त: 14 जनवरी, प्रातः 05:27 बजे से आरंभ होकर 06:21 बजे तक चलेगा।
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मकर संक्रांति के दिन काली उड़द दाल की खिचड़ी बनाने की परंपरा का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह परंपरा भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित है। मुख्य रूप से उत्तर भारत में मकर संक्रांति के दिन काली उड़द दाल की खिचड़ी बनाई जाती है। काली उड़द दाल और चावल से बनी खिचड़ी को इस दिन के लिए शुभ और पवित्र भोजन माना जाता है। इसका संबंध दान, स्वास्थ्य, और आध्यात्मिक शुद्धता से जोड़ा जाता है। ज्योतिष की मानें तो खिचड़ी में इस्तेमाल होने वाले चावल का संबंध चंद्रमा से है, जबकि काली उड़द दाल का संबंध शनि और राहु से होता है। ऐसे ही यदि आप खिचड़ी बनाते समय उसमें हल्दी का इस्तेमाल करें तो इसका संबंध बृहस्पति ग्रह से होता है। यदि आप मकर संक्रांति के दिन काली उड़द दाल की खिचड़ी बनाते हैं तो इससे आपके चंद्रमा, शनि और बृहस्पति को मजबूत करने में मदद मिलती है। यही नहीं इस दिन काली उड़द दाल और चावल का दान करके शनि दोष को भी कम किया जा सकता है।
मकर संक्रांति के दिन नदियों में स्नान करने की परंपरा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और उत्तरायण होने का प्रतीक होता है, इसी वजह से इसे पवित्र नदी में स्नान करने के लिए बहुत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि मकर संक्रांति पर नदियों में स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है और आत्मा और शरीर की शुद्धि होती है। यही नहीं पवित्र नदियों में स्नान से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। पौराणिक कथाओं की मानें तो इस दिन गंगा जैसी पवित्र नदियों में देवी-देवताओं का वास होता है, जिससे इन नदियों में स्नान करना अत्यधिक पुण्यदायी माना जाता है। यही नहीं एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने मकर संक्रांति के दिन असुरों का वध करके उनका सिर नदी में प्रवाहित किया था। उसी समय से नदी में स्नान करने को पापों से मुक्ति का मार्ग समझा जाता है।
मकर संक्रांति के दिन वैसे तो सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक का समय स्नान और दान के लिए बहुत शुभ माना जाता है, लेकिन यदि आप इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में गंगा जैसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं तो ये आपके लिए बहुत फलदायी हो सकता है।
इस दिन स्नान का सबसे शुभ मुहूर्त-14 जनवरी, मंगलवार, प्रातः 05 बजकर 27 मिनट से प्रातः 06 बजकर 21 मिनट तक होगा। इसी मुहूर्त में स्नान करने से आपको कई पापों से मुक्ति मिल सकती है।
वहीं मकर संक्रांति के दिन दान-पुण्य करना भी बहुत शुभ माना जाता है। यदि आप इस दिन पुण्य काल में प्रातः 9 बजकर 3 मिनट से शाम 05:46 बजे तक दान करते हैं तो विशेष रूप से फलदायी होगा। इसके साथ ही 14 जनवरी को महा पुण्य काल प्रातः 9 बजकर 3 मिनट से प्रातः 10 बजकर 48 मिनट तक रहेगा। इस 1 घंटा 45 मिनट की अवधि में किया गया स्नान-दान भी आपके लिए बहुत शुभ हो सकता है।
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मकर संक्रांति का पर्व पूरे देश में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन ही गंगा नदी का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था और भगीरथ उन्हें धरती पर लाए थे। इसी वजह से मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करना शुभ माना जाता है।
ज्योतिष के अनुसार, मकर संक्रांति को शनि देव और उनके पिता सूर्य की मुलाकात के रूप में भी मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन गुरु की राशि धनु में विचरण करने वाले सूर्य देव शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं और इसे ही पिता पुत्र के मिलान के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व धर्म, ज्योतिष और प्रकृति के सामंजस्य का प्रतीक है, जो पवित्र स्नान, दान और नई ऊर्जा के साथ जीवन में शुभता का संचार करता है।
मकर संक्रांति से जुड़ी पौराणिक कथा है कि इसी दिन गंगाजी भागीरथ के साथ चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई गंगा सागर में जा मिली थीं। तभी से कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले भगीरथ ने अपने पूर्वजों का इस खास दिन तर्पण किया था। भगीरथ का तर्पण स्वीकार करने के बाद मकर संक्रांति के दिन गंगा नदी समुद्र में जाकर मिल गई थी। यही वजह है कि मकर संक्रांति पर गंगा सागर में आज भी भव्य मेला का आयोजन होता है।
महाभारत की एक कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए, सूर्य के मकर राशि मे प्रवेश करने का इंतजार किया था। जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब वे उत्तरायण हो जाते हैं और जो व्यक्ति सूर्य की ऐसी स्थिति में शरीर त्यागता है उसे सीधे देव लोक में स्थान मिलता है और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। चूंकि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान मिला हुआ था, इसलिए उन्होंने अपनी देह त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण में आने का समय चुना, जिसे मकर संक्रांति कहा जाता है। तभी से यह पर्व मनाया जाता है और इसका महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है।
एक और पौराणिक कथा में बताया जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने असुरों को मारकर नकारात्मकता का अंत किया था। उसी समय से इस दिन को अत्यंत शुभ माना जाता है।
मकर संक्रांति भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है जो धार्मिक, ज्योतिषीय और सामाजिक दृष्टि से विशेष स्थान रखता है। यह त्योहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और उत्तरायण होने का प्रतीक माना जाता है, जिसे शुभ और सकारात्मक ऊर्जा का समय माना जाता है। मकर संक्रांति पर गंगा, यमुना और अन्य पवित्र नदियों का स्नान करने से शुभ फल मिलते हैं। वहीं, प्रयागराज में संगम में डुबकी लगाना भी बहुत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं, सूर्य का मकर राशि में प्रवेश शुभ समय की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।
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