श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ था। इस दौरान उन्होंने कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की, तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाया। संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा। आपको बता दें, वाल्मीकि रामायण में श्रीराम के वनवास का विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीराम ने अपने मर्यादित जीवन के कारण मर्यादा पुरुषोत्तम की उपाधि प्राप्त की। भगवान राम ने अपनी वनवास यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की थी। इतना ही नहीं, श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया गया है, जहां आज भी उनसे संबंधित स्मारक स्थल मौजूद हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके थे। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं कि किस जंगल में प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी ने वनवास का समय गुजारा था।
रामायण के अनुसार, भगवान श्री राम को 14 वर्षों का वनवास हुआ था। इस दौरान वे अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या से निकलकर विभिन्न स्थानों पर रहे। उनके वनवास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा दंडकारण्य वन में बीता। दंडकारण्य वन एक विशाल और घना जंगल था, जो वर्तमान में छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश राज्यों में फैला हुआ था। यह क्षेत्र विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों और वनस्पतियों से समृद्ध था। दंडकारण्य का नाम दंडक नामक राक्षस के कारण पड़ा था, जो इस क्षेत्र में रहता था। अपने वनवास के दौरान, श्रीराम, सीता और लक्ष्मण ने दंडकारण्य में प्रवेश किया। यहां उन्होंने कई वर्षों तक निवास किया और विभिन्न ऋषियों और मुनियों से भेंट की। दंडकारण्य में रहते हुए, उन्होंने ताड़का, खर और दूषण जैसे राक्षसों का वध किया, जिन्होंने ऋषि-मुनियों को परेशान कर रखा था। आपको बता दें, दंडकारण्य में ही एक महत्वपूर्ण घटना हुई, जब रावण ने सीता का हरण किया। रावण एक शक्तिशाली राक्षस राजा था, जिसने लंका पर शासन किया था। उसने सीता की सुंदरता के बारे में सुनकर उनका अपहरण करने का निश्चय किया। जब श्रीराम और लक्ष्मण शिकार के लिए बाहर गए हुए थे, तब रावण ने छल से सीता का हरण किया और उन्हें लंका ले गया। सीता के हरण के बाद, श्रीराम और लक्ष्मण व्याकुल हो गए। उन्होंने सीता की खोज में पूरे दंडकारण्य में घूमा। रास्ते में उन्हें जटायु नामक एक गिद्धराज मिला, जिसने सीता हरण के बारे में उन्हें बताया। जटायु ने रावण को रोकने की कोशिश की थी, लेकिन वह उससे पराजित हो गया था।
दंडकारण्य वन रामायण की कथा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह वह स्थान था जहाँ श्रीराम, सीता और लक्ष्मण ने अपने वनवास के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाओं का सामना किया। दंडकारण्य में ही सीता का हरण हुआ था, जिसने रामायण की कहानी को एक नया मोड़ दिया।
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दंडकारण्य का कुछ हिस्सा आज भी मौजूद है और यह छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश राज्यों में फैला हुआ है। यहां के घने जंगल और वन्यजीव पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। दंडकारण्य में कई धार्मिक स्थल भी हैं, जो श्रीराम और रामायण की कथा से जुड़े हुए हैं। यही एकमात्र स्थान है जिसने रामायण की दिशा बदल दी।
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Image Credit- HerZindagi
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