herzindagi
murti and pratima differance astrology

मूर्ति और प्रतिमा में क्या अंतर है?

आपने अक्सर मूर्ति और प्रतिमा जैसे शब्दों को किसी विशेष स्थान पर प्रयोग करते हुए सुना होगा। शायद इनके बीच के अंतर का पता लगा पाना कठिन है। आइए यहां इस अंतर के बारे में जानें।
Editorial
Updated:- 2024-04-01, 19:41 IST

मूर्ति और प्रतिमा दो ऐसे शब्द हैं जिनका इस्तेमाक हिंदू धर्म में पवित्र छवियों जैसे देवी-देवताओं के लिए किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये दोनों ही शब्द ईश्वर से जुड़े होते हैं। वहीं जब बोलचाल में इनके इस्तेमाल की बात आती है यब इन दोनों शब्दों का प्रयोग अलग जगहों पर किया जाता है।

दरअसल ये दोनों ही शब्द अपने अर्थ के रूप में एक जैसे दिखाई देते हैं, लेकिन इनका मतलब सूक्ष्म रूप से अलग होता है और इनके इस्तेमाल का तरीका भी बहुत अलग होता है। जहां मूर्तियों की पूजा का विशेष फल मिलता है और ये दिव्य शक्तियों का ही रूप होती हैं, वहीं प्रतिमा का जुड़ाव दिव्य या अलौकिक शक्तियों से हो ऐसा जरूरी नहीं होता है। आइए ज्योतिषाचार्य अरविन्द त्रिपाठी जी से जानें इन दोनों शब्दों के बीच के अंतर के बारे में।

मूर्ति शब्द का अर्थ क्या है?

idol significance in astrology

जब मूर्ति शब्द के प्रयोग की बात आती है तब इसका शाब्दिक अर्थ अवतार या अभिव्यक्ति होता है। हिंदू धर्म में, मूर्ति आमतौर पर एक पवित्र छवि या मूर्ति को संदर्भित करती है जो किसी देवता या दिव्य अस्तित्व का प्रतिनिधित्व करती है।

मूर्तियां आमतौर पर पत्थर, धातु, लकड़ी या मिट्टी जैसी विभिन्न सामग्रियों से बनाई जाती हैं और प्राण-प्रतिष्ठा के रूप में जाने जाने वाले विस्तृत अनुष्ठानों के माध्यम से प्रतिष्ठित की जाती हैं।

मूर्तियों को सिर्फ एक आकृति के रूप में नहीं देखा जाता है बल्कि ऐसा माना जाता है कि वो जिस देवता का प्रतिनिधित्व करती हैं उसकी उपस्थिति और दिव्य सार का प्रतीक होती हैं।

सदियों से ही मूर्तियों की पूजा हिंदू धार्मिक प्रथा का एक अभिन्न अंग रहा है और भक्त परमात्मा से जुड़ने के एक तरीके के रूप में इन पवित्र छवियों को की पूजा करने के साथ इन्हें प्रसाद अर्पित करते हैं और इनका सीधा संबंध परमात्मा से माना जाता है।

इसे जरूर पढ़ें: Puja Mistakes: मूर्ति और तस्वीर पूजा में होता है गहन अंतर, कहीं आप भी तो नहीं करते आ रहे ये गलतियां

प्रतिमा शब्द का अर्थ क्या है?

प्रतिमा शब्द संस्कृत के 'प्रत' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है 'सदृश होना' या 'प्रतिनिधित्व करना' । ऐसा जरूरी नहीं है कि प्रतिमा हमेशा किसी देवता के रूप में हो, बल्कि ये किसी व्यक्ति विशेष की याद में भी बनाई जा सकती है।

यह भौतिक समाज में किसी भी श्रेष्ठ व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करती है और इसकी पूजा नहीं की जाती है। किसी भी जीवित व्यक्ति के कार्यों को दिखाने के लिए उसकी छवि प्रतिमा के रूप में स्थापित की जा सकती है।

यही नहीं किसी मृत व्यक्ति की याद में भी उसकी प्रतिमा बनाई जा सकती है। इसका संबंध पूजा-पाठ या अध्यात्म से नहीं होता है। प्रतिमा शब्द का उपयोग रूपक के रूप में किसी ऐसी वस्तु का वर्णन करने के लिए भी किया जाता है जो किसी विशेष अवधारणा या विचार से मिलती जुलती हो या उसका प्रतीक हो।

मूर्ति की होती है प्राण प्रतिष्ठा

moorti pran pratishtha

भगवान की मूर्ति की पूजा करने से पहले हमेशा इसकी विधि -विधान से प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम कई दिनों तक चलता है जिसमें मूर्ति में प्राण डाले जाते हैं।

मान्यता है कि प्राण-प्रतिष्ठा के बाद कोई भी मूर्ति जीवंत रूप ले लेती है और उसके भीतर ईश्वर का वास हो जाता है। जब मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हो जाती है उसके बाद इस मूर्ति की पूजा का भक्तों को विशेष फल मिलता है। इस मूर्ति में स्वयं भगवान् का वास हो जाता है और यह अलौकिक शक्तियों से पूर्ण मानी जाती है। प्राण-प्रतिष्ठा वाली मूर्ति की पूजा से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

क्या प्रतिमा की भी होती है प्राण प्रतिष्ठा

प्रतिमा किसी भी व्यक्ति का प्रतिनिधित्व कर सकती है या किसी व्यक्ति की याद में बनाई जा सकती है, इसलिए इसकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है। आमतौर पर यह एक प्रतीक ही मानी जाती है और पूजा इ इसका कोई संबंध नहीं होता है।

मूर्ति पूजा के नियम

ज्योतिष में मूर्ति पूजा को सिद्ध पूजा कहा जाता है और इसकी पूजा विधि-विधान के साथ की जा सकती है। आप जब भी मूर्ति पूजा करते हैं, इसके लिए एक विशेष आसन का होना जरूर माना जाता है। मूर्ति को स्नान कराया जा सकता है और इसकी स्थापना आमतौर पर घर या बाहर मंदिर में की जाती है। यदि आप घर में मूर्ति की स्थापना और प्राण-प्रतिष्ठा करते हैं तो इसका नियमित पूजन जरूर करना चाहिए और ध्यान में रखें कि घर के मंदिर में कभी भी 6 इंच से बड़ी मूर्ति स्थापित न करें।

इस प्रकार मूर्ति और प्रतिमा के बीच एक सूक्ष्म संबंध होता है जिसे समझना जरूरी माना जाता है,जिससे ईश्वर का आशीर्वाद पाया जा सके।

आपकी राय हमारे लिए महत्वपूर्ण है! हमारे इस रीडर सर्वे को भरने के लिए थोड़ा समय जरूर निकालें। इससे हमें आपकी प्राथमिकताओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी। यहां क्लिक करें

 

आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।

Images:Freepik.com   

यह विडियो भी देखें

Herzindagi video

Disclaimer

हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, compliant_gro@jagrannewmedia.com पर हमसे संपर्क करें।