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    शुभ्रा की चीख ने सुमन की नींद तोड़ दी थी, सुमन ने जब उस हालत में उसे देखा तो कुछ बोल नहीं पाई, वो कुछ कर पाती उससे पहले ही अनमोल ने आकर..

    Priya Singh

    सुमन की जिंदगी के सबसे काले दिनों में से एक था आज। उसका खुद का घर अब उसे अजनबी लगने लगा था। पिछले कुछ दिनों से उसने मुस्कुराना छोड़ दिया था। आज उसे अपनी सबसे पक्की सहेली की तेरहवीं में जाना था। उसकी दोस्त जिसने उसे दोबारा उम्मीद दिखाई थी। उसकी दोस्त जिसे पता था कि उसकी जिंदगी में क्या चल रहा है, उसकी दोस्त जो जानती थी कि सुमन अपने घर और अपनी जिंदगी में कितनी परेशान थी। उसकी वही दोस्त जिसे सुमन ने जिंदगी की सबसे गलत सलाह दी थी। सुमन को शुभ्रा की मौत का सबसे बड़ा दुख इसी बात का था।

    सुमन अपनी बालकनी में गई और एक बार फिर से शुभ्रा के घर को देखा। बाहर बैठे दो-चार लोग देखे, लोग हंसी ठहाके लगा रहे थे। अंदर से रोने की आवाज आ रही थी। सुमन बालकनी से कमरे में आ गई और अपने काम में लग गई। थोड़ी देर बाद तैयार होकर शुभ्रा के घर चली गई। वहां जाकर उसने लोगों को देखा। शुभ्रा की सास और उसका पति रो रहे थे। उसकी तस्वीर के ऊपर हार चढ़ा हुआ था। कितनी मासूम लग रही थी वो, बहुत खुश, शादी के कुछ समय पहले की है ये तस्वीर शायद। ये कोई उम्र ही नहीं थी। अभी कल ही की बात लगती है कि शुभ्रा की मुंह दिखाई के लिए सुमन उसके घर गई थी।

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    'भाभी आप चाय लेंगी या ठंडा?' शुभ्रा ने पहली बार यही पूछा था सुमन से। दो दिन पहले ब्याह कर आई लड़की पूरी तरह से थकी हुई लग रही थी। उस दिन शुभ्रा ने शायद पूरे मोहल्ले के लिए चाय बनाई थी। 'मैं तो सिर्फ तुम्हें देखने आई हूं, क्या काकी इतना लंबा घूंघट क्यों करवा रही हो बहु के चेहरे पर?' सुमन ने शुभ्रा की सास शांति देवी से पूछा था। 19 साल की शुभ्रा ने अपना घूंघट उठाया था तब उसके चेहरे की मासूमियत और थकान दोनों देख पाई थी सुमन। उसने समझ लिया था कि शुभ्रा की जिंदगी भी वैसे ही जाने वाली है जैसी सुमन ने जी है।

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    'नई दुल्हन घूंघट के अंदर ही अच्छी लगती है,' काकी ने सीधा सा जवाब दिया। सुमन की बात शुभ्रा को भी पसंद आ गई थी। शुभ्रा ने उसके बाद जैसे अनजान गली और अनजान मोहल्ले के अनजान घर में एक दोस्त ढूंढ लिया था। जब इंसान पूरी तरह से बंधा हुआ हो, तो उसे खुशी जरा से अपनेपन से भी मिल जाती है। शुभ्रा के साथ भी ऐसा ही हो रहा था। शुभ्रा के ससुराल में उसके आने से पहले भी सुमन का आना-जाना था, लेकिन अब थोड़ा बढ़ गया था। सुमन की सास और शुभ्रा की सास दोनों ही अपने घर के सामने चारपाई लगाकर बैठती थीं। शुभ्रा और अनमोल की शादी से पहले सुमन को काकी पसंद थीं, लेकिन उसे नहीं पता था कि वो असल में क्या हैं।

    सुमन और शुभ्रा की जिंदगी जैसे एक ही पटरी पर चल रही थी। बस फर्क सिर्फ इतना था कि सुमन मालगाड़ी की तरह सब कुछ सालों से ढो रही थी और शुभ्रा अपने नए विचारों के साथ आगे बढ़ रही थी। धीरे-धीरे शुभ्रा मोहल्ले की चर्चा का विषय बन गई थी। पर अपने विचारों के लिए नहीं, बल्कि उन आवाजों के लिए जो रोजाना उसके घर से आती थीं। पर ये सब कुछ शुभ्रा के साथ इसलिए ज्यादा हो रहा था क्योंकि उसके विचार थोड़े नए थे। अनमोल और शांति देवी लगभग रोजाना ही किसी ना किसी बात पर उसपर हाथ उठा देते थे।

    रोजाना घर का सारा काम करने के बाद शुभ्रा किसी तरह से अपने लिए दो पल का सुकून पाने हमेशा दोपहर के वक्त छत पर आ जाती थी।

    एक ऐसा ही दिन था जब शुभ्रा छत पर आई थी, सुमन भी उस वक्त किसी काम से ऊपर गई थी। पहली बार उसने शुभ्रा को यूं रोते देखा था। उसके चेहरे के निशान देखे थे। सुमन ने हाल-चाल पूछा, तो शुभ्रा ने अपना दुखड़ा रो दिया... 'मैं क्या करूं भाभी, कितनी मुश्किल से पिता जी ने मुझे पाला है, मैं कैसे उनसे कह दूं कि दो लाख दे जाएं।' उस दिन सुमन को पता चला था कि ससुराल वाले कितनी बुरी तरह से शुभ्रा को दहेज के लिए प्रताड़ित कर रहे थे।

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    'ये लोग अभी बोल रहे हैं शुभ्रा, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा,' सुमन ने कहा था। 'देख मेरे साथ भी तो ऐसा ही हुआ था, मैंने भी तो सहा था,' सुमन ने अपनी बात बताई थी।

    'आखिर कब तक चलता रहेगा ये?' शुभ्रा ने पूछा था।

    'मेरे साथ तो शायद 16 सालों से चल ही रहा है। हर तीज-त्योहार पर जाने पर ऐसा लगता है जैसे अगर घर वालों ने कुछ नहीं दिया, तो ससुराल वाले कितना ताना मारेंगे। पर हां, धीरे-धीरे चीजें बेहतर हुई हैं। शुभ्रा मैं भी शादी के बाद कुछ समय तक बहुत परेशान रही थी, पर बच्चा होने के बाद सब ठीक होने लगा था। अब थोड़ा-थोड़ा ताना मारती हैं मेरी सास, लेकिन पति सुन लेते हैं। बेटा भी अच्छा है। जब भी मेरे पास आता है ना मैं सारे दुख भूल जाती हूं। मैं बस यही कहूंगी कि थोड़ा धैर्य रख। सब ठीक होने लगेगा,' सुमन ने शुभ्रा को ये सलाह दे तो दी थी। शायद यही सुमन की सबसे बड़ी गलती थी।

    उसके बाद से शुभ्रा और सुमन दोनों छत पर रोजाना अपनी बातें एक दूसरे से साझा किया करते थे। दोनों ने एक दूसरे में अपना सुख देख लिया था। सुमन के कहने पर शुभ्रा ने ज्यादा लड़ना भी छोड़ दिया था। वो चुप चाप सब कुछ सहती जा रही थी। एक रोज शुभ्रा ने सुमन को आकर कहा था कि घर में अनमोल की दूसरी शादी की बात चल रही है। इसलिए क्योंकि शादी के 8 महीने बाद भी शुभ्रा ने कोई खुशखबरी नहीं दी। शुभ्रा ने बताया था कि उसने अनमोल से खूब झगड़ा किया। अनमोल ने फिर हाथ उठाया और इस बार शुभ्रा ने पुलिस की धमकी भी दे दी। सुमन को सुनकर अजीब लगा था, लेकिन फिर भी सुमन ने कहा था, 'रहने दे ना, धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो ही जाएगा।'

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    दो दिन बाद शुभ्रा चीख ने सुमन की नींद तोड़ दी थी, सुमन ने जब उस हालत में उसे देखा तो कुछ बोल नहीं पाई, वो कुछ कर पाती उससे पहले ही अनमोल ने आकर सुमन से कहा, 'अरे भाभी आप यहां क्यों आईं हैं। अपने घर जाइए, हमारे मामले में मत पड़िए,' अनमोल की बात सुनकर सुमन ने एक बार शुभ्रा की तरफ देखा। रोती, बिलखती शुभ्रा कमरे के कोने में बैठी थी। उसके सिर और हाथ पर चोट के निशान थे, शायद आज भी अनमोल ने उसे बहुत मारा था। काकी सुमन के आने पर शुभ्रा को उठाने गई थीं। उस रात आखिरी बार सुमन ने शुभ्रा को देखा था।

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    अगले ही दिन पता चला था कि रात को शांति देवी के घर में चोर आए थे। चोरी करके ढेर सारा सामान ले गए, बहु घर में अकेली थी तो उसे इतना मारा कि बेचारी मर गई। जैसे ही सुमन ने ये शब्द सुने थे उसके पैरों तले जमीन खिसक गई थी। उसे यकीन नहीं हुआ था और उसने जब उस घर में जाकर देखने की कोशिश की, तो उसे दिखी शुभ्रा की खून से लथपथ लाश। पुलिस वालों ने सुमन को घर से जाने के लिए कह दिया था। अनमोल ने उन्हें भी पैसे खिला दिए थे। अगले दिन न्यूजपेपर के चौथे पन्ने की दो कॉलम की खबर बन गई थी शुभ्रा। बताया गया था कि सास और अनमोल आधी रात के बाद ही एक रिश्तेदार को देखने अस्पताल चले गए थे, शुभ्रा अकेली थी।

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    कहानियां बनाई जाने लगीं, लेकिन सुमन जानती थी कि शुभ्रा के साथ क्या हुआ था और आधी रात को क्यों शांति देवी और अनमोल बाहर गए थे।

    सुमन अपने मन में सब कुछ सोच रही थी कि तभी किसी के रोने की आवाज ने उसे उसके खयालों से बाहर निकाल लिया। शुभ्रा के माता-पिता और उसकी छोटी बहन थे जो उसकी तस्वीर के सामने रोए जा रहे थे। सुमन ने उन्हें देखा और उठ खड़ी हुई। उसके उठते ही उसकी सास ने उससे पूछा कि वो कहां जा रही है, लेकिन सुमन अब नहीं सह सकती थी। वो शुभ्रा की तस्वीर के पास गई और उसमें से माला हटा दी।

    'इसकी तस्वीर के सामने माला मत चढ़ाओ, तुममें से कोई भी इसके लिए रोने के लायक नहीं है,' सुमन ने इतना बोला और शुभ्रा की तस्वीर को देखने लगी। 'पागल हो गई है क्या, क्या चल घर, दो लप्पड़ लगाऊं तेरे...' सास बोल ही रही थी कि सुमन ने पलट कर जवाब दिया। 'हां मार डालो, छोड़ना मत, जैसे शुभ्रा के पति और सास ने उसे मार दिया,' पूरे कमरे में लोगों की बातें चलने लगी। ये वो बात थी जो सबको पता थी, लेकिन कोई खुलकर बोल नहीं रहा था।

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    'टीवी, फ्रिज, बाइक, सोने की चेन और ना जाने क्या-क्या... शुभ्रा के पिता ने दहेज में सब कुछ दिया था, नहीं दी थी तो सिर्फ एक चीज... भरोसा। अगर उन्होंने अपनी बेटी को भरोसा दिखाया होता कि वो हैं, वो उसका ख्याल रख सकते हैं, वापस आ जाए वो सब कुछ छोड़कर, तो शायद शुभ्रा की ये हालत ना हुई होती,' आज सुमन जिस तरह बोल रही थी उसे लग रहा था कि काश उसने ये काम पहले किया होता।

    'मैंने जिंदगी में सबसे बड़ी गलती की जो शुभ्रा को कहा सह ले, लेकिन अब नहीं सहूंगी। मैं जा रही हूं पुलिस के पास... अगर आपको परेशानी है, तो मुझे भी मार दीजिए। मैं सबको बताऊंगी कि आप लोगों ने दहेज के लालच में शुभ्रा को इतना मारा की वो मर गई। शुभ्रा की इस हालत की जिम्मेदार मैं भी हूं। बचपन से जो खुद के लिए सुना वही मैंने शुभ्रा को भी सिखा दिया कि सह ले, लेकिन ये सही नहीं था। और आप... शुभ्रा के पिता हैं ना, अब क्यों रो रहे हैं, उसने आपको बहुत कुछ बताया होगा, तब क्यों नहीं लेकर गए बेटी को?' सुमन में आज चंडी का रूप था। वो आज सारे दैत्यों का सफाया करने वाली थी।

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    सुमन का 10 साल का बेटी ये सब कुछ रिकॉर्ड कर रहा था। बच्चे भी कई बार कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसके कारण सब कुछ सही हो जाए। सुमन पुलिस स्टेशन के लिए निकल गई और यहां उसके बेटे ने वो वीडियो लाइव कर दिया। देखते ही देखते वीडियो वायरल हो गया। अब पुलिस के पास भी इसे झुठलाने का कोई कारण नहीं था।

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    जिन पुलिस वालों ने रिश्वत देकर शुभ्रा का केस दबाया था उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। सुमन सबके लिए एक आवाज बनकर खड़ी हुई। जो अपने लिए कभी नहीं लड़ पाई, उसने दूसरे के लिए लड़ना शुरू कर दिया। अनमोल और शांति देवी गिरफ्तार हो गए और अब केस चल रहा है।

    सुमन अब अपने बेटे को लेकर अलग रह रही है। शुभ्रा ने इस दुनिया से जाकर भी सुमन की जिंदगी बदल दी थी।

    यह कहानी पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है और इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। यह केवल कहानी के उद्देश्य से लिखी गई है। हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। ऐसी ही कहानी को पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।

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